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पंजाब में बहुत अच्छे अच्छे शहर है।सब की अपनी अपनी खूबियां है।कुछ के नाम दुनिया जानती है। लुधियाना जालंधर अमृतसर दुनिया मे जाने जाते है।और एक चीज़ भारत वर्ष में पंजाब ने मशहूर कर दी है वो है ढाबा। ढाबा शब्द पंजाब से निकल कर पूरे भारतवर्ष में फैल गया।इसका श्रेय यहां के मेहनती ट्रक चालकों को जाता है।खैर आज जालंधर के सफर पे था।खाना पीना आदतन नई जगह देखता है।तो आज भी सोच कोई नई जगह खाना खाया जाये। दोपहर के डेढ़ बजे रहे थे। नाश्ता सुबह 7 बजे किया था।चूहे पेट मे दौड़ रहे थे।तो जालंधर स्टेशन के आसपास कोई अच्छी जगह जाया जाये।हमारे सहकर्मी हमे एक ढाबे पे ले गये। सेंट्रल टाउन जालंधर।जगह थी सैनिकस मणी वेजेटेरियन ढाबा।ये यहां की लोकल चेन समझ लीजिए। शायद चार पांच आउटलेट है।वहां पहुंचे तो साफ सुथरा छोटा सा बैठने का स्थान।सामने बुफे लगा हुआ।आप अपनी पसंद से मेनू में भी ले सकते है।खैर अपनी आदत हमेशा मशहूर को लेती है।वहां का बुफे मशहूर है। मात्र 120 रुपए प्रति थाली। अब आप पर्ची कटवाओ और थाली प्राप्त करो।सामने खीरा प्याज़ सलाद हरी मिर्च और आचार। अब बुफे पे आ जाईये । जीरा राइस , कढ़ी पकोड़ा , दाल मखनी , गोभी मसाला , पंजाबी छोले , शाही पनीर , फिर और आगे बढ़ो दही भल्ले। ओए बल्ले बल्ले । प्लेट शादी पे भोज की तरह भरी।और छकने लगे। दाल चावल ने आनंद ला दिया।
स्वाद मशाहलह मजा आ गया। तभी गरम गरम रोटी लच्छा परांठा और नान ।क्या बात है भाई। दही भल्ले लाजबाब। छोले बनाने पंजाबी ही जानते है।पकोड़ों वाली कड़ी चावल की प्लेट ही साफ हो गयी। जी भर खाओ।जिनता भी खाओ कोई रोक नही।गजब मजा आया जनाब।सभी का आनंद लिया।उत्तम खाना। सफाई वाली जगह। आज फिर तृप्ति का आभास हुआ।आनंद कहने को मन हुआ।हाथ धोये और सामने सौंफ और नारियल मिली गुड़ शक्कर।जनाब टेस्ट आ गया। बीस मिनट में फटाफट लंच हो गया और हम अपने काम पे निकल पड़े।जालंधर खान पान के मुकाबले में उत्तम शहर है।पंजाब में कुछ कहावत भी है " रहना खाना जालंधर दा कमाना लुधियाने दा" । तो दोस्तो आप समझ ही गये होंगे। जालंधर आये तो पंजाबी खाने का पूर्ण लुत्फ ले और ढाबे की तमीज़ जरूर समझे। पैसे बचें सो अलग। आइये कभी जालंधर और पंजाबी खाने का लुत्फ लीजिये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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