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यादों के झरोखों से कभी कभी जिंदगी को झांकते है।
कुछ भूले रिश्ते वक़्त की कब्र में दफन नज़र आते है।
कुछ टूटे सपने कब के स्वाह हुए है दिखने लगते है।
कुछ गैर जरूरी तकल्लुफ जो निभाये समझ आते है।
जो इरादें नेक तो थे उनकी दुआ मिलती सी लगती है।
जो दिल तोड़े उनकी आंच आज भी दिल पे लगती है।
जो झूठ बोले उनसे रिश्तों की तबाही नज़र आती है।
जो चोटें लगी और मिली उनके दर्द की टीस उठती है।
मूक गवाही आज कुछ कृत्यों पे रोती सिसकती दिखती है।
यादें हमेशा हसीन भी नही होती मन टटोलती रहती है।
मगर आज यादें बहुत से किस्से छिपाये नज़र आती है।
आज एल्बम खुली तो बहुत सी तस्वीरें नज़र आती है।
ऐसा नही कुछ अच्छा नही बहुत अच्छा भी नज़र आया है।
अच्छे की यादें रोज सुबह शाम मन बहला के निकल लेती है।
यादों में कल की तरह ही सदा आगे पीछे बनी रहती है।
बस अपने को और भीतर देखने की इच्छा भी कभी होती है।
जब जब मैं अपनी और देखता हूँ कुछ गलतियों से रूबरू होता हूँ।
कुछ पिछली यादों से कुछ अपनी गलतियां सुधार लेता हूँ।
बस इसलिये यादों के झोरखों से अपने आप को देख लेता हूँ।
कुछ बेमतलब हुई जिंदगी आगे के लिए संवार लेता हूँ।
सोचा फिर आज कुछ दिल की कह सुन लू किसने रोका है।
रात अपनी है वक़्त को किसने रोका है जिंदगी महीन झरोखा है।
इसलिये यादों के झरोखों से कभी कभी जिंदगी को झांकते है।
कुछ दिल की दिल से सुनते है कुछ अपनी कह लेते है।
यादों के झरोखों से कभी कभी जिंदगी को झांकते है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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