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चाट कोन कौन खाये हो भाई। ये उत्तर पूर्व और पश्चिम भारत मे किसी न किसी रूप में या यूं कहें बहुत रूपों में खाई जाती है।मसलन आलू चाट समोसा चैट टिक्की चाट भल्ला पापड़ी चाट मटर टिक्की चाट आलू टिक्की चाट फ्रूट चाट आलू फ्राई चाट न जाने कितनी तरह की चाट बनाई खाई जाती है। चाट शब्द बहुत साधारण है समझने में। जब कोई चीज़ स्वादिष्ट लगती है तो परोसने वाली थाली जीभ से चाट ली जाती है।मतलब अत्यंत स्वादिष्ट जिसके बाद प्लेट भी चाटने का दिल करें। इसी तरह बहुत से मसालों चटनियों संग ऐसा मिश्रण तैयार किया जाता है जिसे खाने वाले को आनंद आ जाये और जीभ का स्वाद उत्तम हो जाये।येही चाट है।मसाले दार बातें चटपटी बातें सब इन्ही चटनियों के रास्ते संज्ञा पाती है।खैर आज यहां शाम ढल चली। रेल भवन से निकलते ही शीतल बहती हवा ने दिल छू लिया। पटेल चौक पार्किंग तक पैदल चलने का मजा आ गया। लखनऊ वाले हमे बहुत चाट खिलाये है।आज उनको भी दिल्ली की चाट खिलाने के मौका मिला अलबत्ता पैसे मैंने नही खर्चे। हंसिये मत। कॉलेज के समय से इंडिया गेट के सामने शाहजहां रोड है।उसपे यू पी एस सी भवन है।साथ मे गली है।और वहां प्रभु ने अपनी चाट की दुकान डाली है।अंधेरा हो आया। गाड़ी घूम के पहुंच गई गली में। बड़े बड़े अफसरों की गाड़ियां लगती है वहां।आज तो वकीलों का झुंड भी था। प्रभु चाट भंडार। दूर से टिक्की की महक उठ रही थी।आलू तले जा रहे थे। भल्ले बर्फ लगे दही में ठंडे हो रहे थे। पापडी की टोकरी भरी थी।और बगल में गोलगप्पों की टोकरी।फिर क्या था। सब के टोकन लिए गए। पहले भल्ला पापडी चाट उड़ाई गयी। मस्त चाट थी। फिर गोलगप्पों का भोग लगा। करारे करारे । फिर बारी आई टिक्की की । खूब मसालेदार बनवाई।उसके बाद आये आलू फ्राई। करारे मसाले दार। पिछले 25 सालों से स्वाद बरकरार। बहुत खूब। 25 साल से तो मैं देख रहा हूँ।फिर बरबस नज़र गयी 2 फोटुओं पर।जिनसे हम कुछ बरस पहले टोकन लेते थे।वो प्रभु अब नही रहे। उनकी अगली पीढ़ी ने काम संभाल लिया। शाम को चाट खाने का मजा ही अलग है।खूब स्वाद आया। प्लेट कागज की हो गयी सो चाटी नही।नही तो रीयल चाट हों जाती।घर मे तो अक्सर में प्लेट चाट लेता हूँ।तो दोस्तो दिल्ली आये और इंडिया गेट देखने पहुंचे तो प्रभु की चाट का स्वाद और आनंद जरूर ले। चाट का मजा लेते हुए...
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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