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दर्शक जब तुम बहुत कलात्मक दिखतेे हो तो जोश दिलाते हो।
दर्शक जब तुम बहुत नकारत्मक दिखते हो तो उत्साह गिराते हो।
दर्शक जब तुम बहुत भावात्मक दिखते तो उमंग से भर जाते हो।
दर्शक जब तुम बहुत आलोचक होते तो गलती करते दौड़ा बाहर करते हो।
दर्शक जब तुम हो बहुत गम्भीर नज़र आते तो घबराहट ले लाते हो।
दर्शक जब तुम हो बडे उतेजक शोर शोर कर न जाने किसका दिल दहलाते हो।
दर्शक जब तुम मार्गदर्शक बनते हो मन को बड़े सुहाते हो।
दर्शक जब तुम घोतक होते हो तो कभी लक्ष्य बन सामने आते हो।
दर्शक तुम जब शांत हो जाते हो तूफान आने अंदेशा बन जाते हो ।
दर्शक जब तुम गम्भीर सोच मुद्रा में जाते हो न जाने क्या कर जाते हो।
दर्शक जब तुम दुघर्टना के समय होते हो तो मृत्यु तुल्य से हो आते हो।
दर्शक तुम संगरक्ष क्यों नही हो जाते हो कुछ हिस्सा बन जाते हो।
दर्शक तुम मूक वाणी की परिभाषा से क्यों बाहर नही आते हो।
आज दर्शक दर्शक रहेगा येही रोज़ रोज अपने को कहलवाते हो।
दर्शक चलो हृदय परिवर्तन से तुम्हे जीवंत करते है और दर्शक से योग्य तुम्हे बनाते है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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