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भारतीय संविधान भाग 5 अध्याय 4 अनुच्छेद 136 से 143 तक।

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भारतीय संविधान भाग 5 अध्याय 4 अनुच्छेद 136 से 143  में उच्चतम न्यायालय में विधि से समाहित शक्तियों की विवेचना की गई है। चलिये जाने इसे....
136. अपील के लिए उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाजत--(1) इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय अपने विवेकानुसार भारत के राज्यक्षेत्र में किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा किसी वाद या मामले में पारित किए गए या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री , अवधारण, दंडादेश या आदेश की अपील  के लिए विशेष इजाजत दे सकेगा ।
(2) खंड (1) की कोई बात सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा पारित किए गए या दिए गए किसी निर्णय, अवधारण, दंडादेश या आदेश को लागू नहीं होगी ।
137. निर्णयों या आदेशों का उच्चतम न्यायालयों द्वारा पुनार्विलोकन--संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाएं गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाएं गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनार्विलोकन करने की शक्ति होगी।
138. उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता की वॄद्धि--(1) उच्चतम न्यायालय को संघ सूची के विषयों में से किसी के संबंध में ऐसी अतिरिक्त अधिकारिता और शक्तियां होंगी जो संसद विधि द्वारा प्रदान करे ।
(2) यदि संसद विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसी अधिकारिता और शक्तियों के प्रयोग का उपबंध करती है तो उच्चतम न्यायालय को किसी विषय के संबंध में ऐसी अतिरिक्त अधिकारिता और शक्ति यां होंगी जो भारत सरकार और किसी राज्य की सरकार विशेष करार द्वारा प्रदान करे ।
139. कुछ रिट निकालने की शक्तियों का उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त किया जाना--संसद विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद 32 के खंड (2) में वार्णित प्रयोजनों से भिन्न किन्हीं प्रयोजनों के लिए ऐसे निदेश, आदेश या रिट, जिनके अंतर्गतबंदी प्रत्यक्षीकरण, पर मादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, या उनमें से कोई निकालने की शक्ति प्रदान कर सकेगी ।
[62][139क. कुछ मामलों का अंतरण—[63][(1) यदि ऐसे मामले, जिनमें विधि के समान या सारतः समान प्रश्न अंतर्वलित हैं, उच्चतम न्यायालय के और एक या अधिक उच्च न्यायालयों के अथवा दो या अधिक उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित हैं और उच्चतम न्यायालय का स्वप्रेरणा से अथवा भारत के महान्यायवादी द्वारा या ऐसे किसी मामले के किसी पक्षकार द्वारा किए गए आवेदन पर यह समाधान हो जाता है कि ऐसे प्रश्न व्याफक महत्व के सारवान् प्रश्न हैं तो, उच्चतम न्यायालय उस उच्च न्यायालय या उन उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित मामले या मामलों को अपने  पास मंगा सकेगा और उन सभी मामलों को स्वंय निपटा सकेगा :
परन्तु उच्चतम न्यायालय इस प्रकार मंगाए गए मामले को उक्त विधि के प्रश्नों का अवधारण करने के पश्चात् ऐसे   प्रश्नों पर अपने निर्णय की प्रतिलिपि सहित उस उच्च न्यायालय को, जिससे मामला मंगा लिया गया है, लौटा सकेगा और वह उच्च न्यायालय उसके प्राप्त होने पर उस मामले को ऐसे निर्णय के अनुरूप निफटाने के लिए आगे कार्यवाही करेगा । ]
(2) यदि उच्चतम न्यायालय न्याय के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऐसा करना समीचीन समझता है तो वह किसी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित किसी मामले, अपील  या अन्य कार्यवाहीका अंतरण किसी अन्य उच्च न्यायालय को कर सकेगा।]
140. उच्चतम न्यायालय की आनुषंगिक शक्तियां--संसद, विधि द्वारा, उच्चतम न्यायालय को ऐसी अनुपूरक शक्तियां प्रदान करने के लिए उपबंध कर सकेगी जो इस संविधान के उपबंधों में से किसी से असंगत न हों और जो उस न्यायालय को इस संविधान द्वारा या इसके अधीन प्रदत्त अधिकारिता का अधिक प्रभावी रूप से प्रयोग करने के योग्य बनाने के लिए आवश्यक या वांछनीय प्रतीत हों ।
141. उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होना--उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होगी ।
142. उच्चतम न्यायालय की डिक्रीयों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश--(1) उच्चतम न्यायालय अपनी  अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित  कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाएं, और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश[64] द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा ।
(2) संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों  के अधीन रहते हुए , उच्चतम न्यायालयको भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र के बारे में किसी व्यक्ति को हाजिर कराने के, किन्हीं दस्तावेजों के प्रकटीकरण या पेश कराने के अथवा अपने किसी अवमान का अन्वेषण करने या दंड देने के प्रयोजन के लिए कोई आदेश करने की समस्त और प्रत्येक शक्ति होगी ।
143. उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति --(1) यदि किसी समय राष्ट्रपति को प्रतीत होता है कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की संभावना है, जो ऐसी प्रकॄति का और ऐसे   व्यापक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है, तो वह उस प्रश्न को विचार करने के लिए उस न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और वह न्यायालय, ऐसी सुनवाई के पश्चात् जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित कर सकेगा ।
(2) राष्ट्रपति अनुच्छेद 131 [65]* * * के परन्तुक में किसी बात के होते हुए भी, इस प्रकार के विवाद को, जो [66][उक्त   परन्तुक ] में वार्णित है, राय देने के लिए उच्चतम न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और उच्चतम न्यायालय, ऐसी  सुनवाई के पश्चात् जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित करेगा ।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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