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भारतीय संविधान भाग 5 अध्याय 4 अनुच्छेद 144 से 147 तक।

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भारतीय संविधान भाग 5 अध्याय 4 अनुच्छेद 144 से 147 तक। यहां न्यायपालिका के उच्चतम न्यायालय में  संविधानिक वैद्यता को चुनौती देती याचिकाएं उनके लिए बनती खंडपीठ उनके अधिकार क्षेत्र और सारी व्यवस्था को चलाने के लिए सहायक सेवक का पूरा लेखा जोखा है।न्याय पालिकांक अध्याय इन्ही अनुच्छेदों के साथ समाप्त होता है।चलिये पढ़ें...
144. सिविल और न्यायिक प्राधिकारियों द्वारा उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य किया जाना--भारत के राज्यक्षेत्र के सभी सिविल और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य करेंगे ।
[67]144क. [विधियों की सांविधानिक वैधता से संबंधित प्रश्नों के निपटारे के बारे में विशेष उपबंध ।]  संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 5 द्वारा (13-4-1978 से) निरसित ।
145. न्यायालय के नियम आदि--(1) संसद  द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय-समय पर, राष्ट्रपति के अनुमोदन से न्यायालय की पद्धति और प्रक्रिया के, साधारणतया, विनियमन के लिए  नियम बना सकेगा जिसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं, अर्थात्  :--
(क) उस न्यायालय में विधि-व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों के बारे में नियम ;
(ख) अपीलें सुनने के लिए प्रक्रिया के बारे में और अपीलों संबंधी अन्य विषयों के बारे में, जिनके अंतर्गत वह समय भी है।
जिसके भीतर अफीलें उस न्यायालय में ग्रहण की जानी हैं, नियम ;
(ग) भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी का प्रवर्तन कराने के लिए उस न्यायालय में कार्यवाहियों के बारे में नियम ;
[68][(गग) [69][अनुच्छेद 139कटके अधीन उस न्यायालय में कार्यवाहियों के बारे में नियम ;]
(घ) अनुच्छेद 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) के अधीन अपीलों को ग्रहण किए जाने के बारे में नियम ;
(ङ) उस न्यायालय द्वारा सुनाए गए किसी निर्णय या किए गए आदेश का जिन शर्तों के अधीन रहते हुए पुनार्विलोकन किया जा सकेगा उनके बारे में और ऐसे पुनर्विलोकन के लिए प्रक्रिया के बारे में, जिसके अतंर्गत वह समय भी है जिसके भीतर ऐसे पुनर्विलोकन के लिए आवेदन उस न्यायालय में ग्रहण किए जाने हैं, नियम ;
(च) उस न्यायालय में किन्हीं  कार्यवाहियों के और उनके आनुषंगिक  खर्चे के बारे में, तथा उसमें कार्यवाहियों के संबंध में प्रभारित की जाने वाली फीसों के बारे में नियम ;
(छ) जमानत मंजूर करने के बारे में नियम ;
(ज) कार्यवाहियों को रोकने के बारे में नियम ;
(झ) जिस अपील  के बारे में उस न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि वह तुच्छ या तंग करने वाली है अथवा विलंब करने के प्रयोजन से की गई है, उसके संक्षिप्त अवधारण के लिए उपबंध करने वाले नियम ;
(ञ) अनुच्छेद 317 के खंड (1) में निर्दिष्ट  जांचों के लिए  प्रक्रिया  के बारे में नियम ।
(2) [70][[71]* * * खंड (3) के उपबंधों ] के अधीन रहते हुए, इस अनुच्छेद के अधीन बनाएं गए नियम, उन न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या नियत कर सकेंगे जो किसी प्रयोजन के लिए बैठेंगे तथा एक ल न्यायाधीशों और खंड न्यायालयों की शक्ति के लिए उपबंध कर सकेंगे ।
(3) जिस मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अतंर्वलितहै उसका विनिश्चय करने के प्रयोजन के लिए  या इस संविधान के अनुच्छेद 143 के अधीन निर्देश की सुनवाई करने के प्रयोजन के लिए  बैठने वाले न्यायाधीशों की [72][2* * * न्यूनतम संख्या ] पांच होगी :
परन्तु जहां अनुच्छेद 132 से भिन्न इस अध्याय के उपबंधों के अधीन अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय पांच  से कम न्यायाधीशों से मिलकर बना है और अपील की सुनवाई के दौरान उस न्यायालय का समाधान हो जाता है कि अपील में संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का ऐसा सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है जिसका अवधारण अपील के निपटारे के लिए आवश्यक है वहां वह न्यायालय ऐसे प्रश्न को उस न्यायालय को, जो ऐसे प्रश्न को अंतर्वलित करने वाले किसी मामले के विनिश्चय के लिए इस खंड की अपेक्षानुसार गठित किया जाता है, उसकी राय केलिए  निर्देशित करेगा और ऐसी राय की प्राप्ति पर उस अपील को उस राय के अनुरूप निफटाएगा ।
(4) उच्चतम न्यायालय प्रत्येक निर्णय खुले न्यायालय में ही सुनाएगा, अन्यथा नहीं और अनुच्छेद 143 के अधीन प्रत्येक प्रतिवेदन खुले न्यायालय में सुनाई गई राय के अनुसार ही दिया जाएगा, अन्यथा नहीं   ।
(5) उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रत्येक निर्णय और ऐसी प्रत्येक राय, मामले की सुनवाई में उपस्थित न्यायाधीशों की बहुसंख्या की सहमति से ही दी जाएगी, अन्यथा नहीं, किन्तु इस खंड की कोई बात किसी ऐसे न्यायाधीश को, जो सहमत नहीं है, अपना विसम्मत निर्णय या राय देने से निवारित नहीं करेगी ।
146. उच्चतम न्यायालय के अधिकार और सेवक तथा व्यय --(1) उच्चतम न्यायालय केअधिकारियों और सेवकों की नियुक्तियां भारत का मुख्य न्यायमूार्ति करेगा या उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या अधिकारी करेगा जिसे वह निदिष्ट करे :
परन्तु राष्ट्रपति नियम द्वारा यह अपेक्षा कर सकेगा कि ऐसी किन्हीं दशाओं में, जो नियम में विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो पहले से ही न्यायालय से संलग्न नहीं है, न्यायालय से संबंधित किसी पद पर संघ लोक सेवा आयोग से परामर्श करके ही नियुक्त किया जाएगा, अन्यथा नहीं ।
(2) संसद द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की सेवा की शर्तें ऐसी होंगी जो भारत के मुख्य न्यायमूार्ति या उस न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीश या अधिकारी द्वारा, जिसे भारत के मुख्य न्यायमूार्ति ने इस प्रयोजन के लिए  नियम बनाने के लिए प्राधिकॄत किया है, बनाएं गए नियमों द्वारा विहित की जाएं  :
परन्तु इस खंड के अधीन बनाएं गए  नियमों के लिए , जहां तक वे वेतनों, भत्तों, छुट्टी या पेंशनों से संबंधित हैं, राष्ट्रपति के अनुमोदन की अपेक्षा  होगी।
(3) उच्चतम न्यायालय के प्रशासनिक व्यय, जिनके अतंर्गत उस न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों को या उनके संबंध में संदेय सभी वेतन, भत्ते और पेंशन हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होंगे और उस न्यायालय द्वारा ली गई फीसें और अन्य धनराशियां उस निधि का भाग होंगी ।
147. निर्वचन--इस अध्याय में और भाग 6 के अध्याय 5 में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अतंर्गत भारत शासन अधिनियम, 1935 के (जिसके अंतर्गत उस अधिनियम की संशोधक या अनुपूरक  कोई अधिनियमिति है) अथवा किसी सपरिषद् आदेश या उसके अधीन बनाएं गए किसी आदेश के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के या उसके अधीन बनाएं गए किसी आदेश के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न के प्रति निर्देश हैं ।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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