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कहानी बड़ी सुनी अनजानी थी कलयुग की जुवानी थी।
महिमा देखी कलयुग की हर और इसकी कहानी लिखी।
झूठ फरेब धोखे का बोलबाला है कलयुग का हवाला है।
अच्छे बाबू तेरा मुह सचमुच् सच लिए कलयुग काला है।
कलयुग में अचार विचार कब के लोग भूले।
कलयुग में आदर एतबार कब का साथ छोड़े।
कलयुग में इज़्ज़त विज़्ज़त कब की सब भूले।
कलयुग में दया इंसानियत कब की सब रूठी।
कलयुग में जलन घृणा ने कब का मन कब्जाया।
कलयुग में द्वेष ने मर्यादाओं की सब सीमा लांघी।
कलयुग में रिश्ते रोज रात को बनते नीलाम होते।
कलयुग में रात कही सोते सुबह को मुह कही धोते।
कलयुग में व्यभचारों ने सब सीमा तमाम लो लांघी।
कलयुग में झूठ का हुआ बोलबाला सच मरजांदी।
कलयुग में नफरत की दुनिया हुई पैसे पे लूटजांदी।
कलयुग में मैं मैं मैं करती दुनिया मैं से ही मिटजांदी।
ये कलयुग के घोर से पहले का बड़ा घोर सा दृश्य है।
कुछ तो संभलो बुरा अंत होना तो मुह बाके खड़ा है।
छल से बाहर झूठ से दूर कर्म के पास मात्र विकल्प है।
वर्ना दोस्तो कलयुग में पतन तो मानुष का निश्चित है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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