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भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 5 अनुच्छेद 218 से 224 तक।

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भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 5 अनुच्छेद 218 से 224 तक।
218-उच्चतम न्यायालय से संबंधित कुछ उपबंधों  का उच्च न्यायालयों को लागू होना—अनुच्छेद 124 के खंड (4) और खंड (5) के उपबंध , जहां-जहां उनमें उच्चतम न्यायालय के प्रति निर्देश है वहां-वहां उच्च न्यायालय के प्रति निर्देश प्रतिस्थाफित करके, उच्च न्यायालय के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उच्चतम न्यायालयके संबंध में लागू होते हैं ।
219. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा शपथ  या प्रतिज्ञान–[54]* * * उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए  नियुक्त  प्रत्येक व्यक्ति , अपना  पद  ग्रहण करने से पहले , उस राज्य के राज्यपाल  या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त  व्यक्ति  के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए  दिए  गए प्ररूप  के अनुसार, शपथ  लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर  अपने  हस्ताक्षर करेगा ।
[55][220. स्थायी न्यायाधीश रहने के पश्चात्  विधि–व्यवसाय पर  निर्बंधन—कोई व्यक्ति , जिसने इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात्  किसी उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप  में पद  धारण किया है, उच्चतम न्यायालय और अन्य उच्च न्यायालयों के सिवाय भारत में किसी न्यायालय या किसी प्राधिकारी के समक्ष अभिवचन या कार्य नहीं करेगा ।
स्पष्टीकरण –-इस अनुच्छेद में, “उच्च न्यायालय”पद  के अंतर्गत संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 के प्रारंभ[56] से पहले  विद्यमान पहली  अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट राज्य का उच्च न्यायालय नहीं  है ।]
221. न्यायाधीशों के वेतन आदि–[57][(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे  वेतनों का संदाय किया जाएगा  जो संसद्, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध  नहीं किया जाता है तब तक ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट  हैं ।]
(2) प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे  भत्तों का तथा अनुपस्थिति  छुट्टी और फेंशन के संबंध में ऐसे  अधिकारों का, जो संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर  अवधारित किए  जाएं , और जब तक इस प्रकार अवधारित नहीं किए जाते हैं तब तक ऐसे भत्तों और अधिकारों का जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा ।
परंतु  किसी न्यायाधीश के भत्तों में और अनुपस्थिति  छुट्टी या फेंशन के संबंध में उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात्  उसके लिए  अलाभकारी परिवर्तन  नहीं  किया जाएगा  ।
222. किसी न्यायाधीश का एक  उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को अंतरण–(1) राष्ट्रपति , भारत के मुख्य न्यायमूार्ति से परामर्श  करने के पश्चात्
[58]* * * किसी न्यायाधीश का एक  उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को अंतरण कर सकेगा ।
[59][(2) जब कोई न्यायाधीश इस प्रकार अंतरित किया गया है या किया जाता है तब वह उस अवधि के दौरान, जिसके दौरान वह संविधान (पंद्रह वां संशोधन) अधिनियम, 1963 के प्रारंभ के पश्चात्  दूसरे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप  में सेवा करता है, अपने  वेतन के अतिरिक्त  ऐसा  प्रतिकरात्मक भत्ता, जो संसद् विधि द्वारा अवधारित करे, और जब तक इस प्रकार अवधारित नहीं  किया जाता है तब तक ऐसा  प्रतिकरात्मक भत्ता, जो राष्ट्रपति  आदेश द्वारा नियत करे, प्राप्त करने का हकदार होगा ।]
223. कार्यकारी मुख्य न्यायमूार्ति की नियुक्ति —जब किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूार्ति का पद  रिक्त  है या जब ऐसा  मुख्य न्यायमूार्ति अनुपस्थिति  के कारण या अन्यथा अपने पद  के कर्तव्यों  का पालन  करने में असमर्थ है तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से ऐसा  एक  न्यायाधीश, जिसे राष्ट्रपति  इस प्रयोजन के लिए  नियुक्त  करे, उस पद  के कर्तव्यों  का पालन  करेगा ।
[60][224. अपर  और कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति —(1) यदि किसी उच्च न्यायालय के कार्य में किसी अस्थायी वॄद्धि के कारण या उसमें कार्य की बकाया के कारण राष्ट्रपति  को यह प्रतीत होता है कि उस न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या को तत्समय बढ़ा देना चाहिए  तो राष्ट्रपति  सम्यक् रूप  से अर्हित  व्यक्ति यों को दो वर्ष से अनधिक की ऐसी  अवधि के लिए  जो वह विनिर्दिष्ट  करे, उस न्यायालय के अपर  न्यायाधीश नियुक्त  कर सकेगा ।
(2) जब किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूार्ति से भिन्न कोई न्यायाधीश अनुपस्थिति  के कारण या अन्य कारण से अपने  पद  के कर्तव्यों  का पालन  करने में असमर्थ है या मुख्य न्यायमूार्ति के रूप  में अस्थायी रूप  से कार्य करने के लिए नियुक्त  किया जाता है तब राष्ट्रपति  सम्यक् रूप  से अर्हित  किसी व्यक्ति  को तब तक के लिए उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप  में कार्य करने के लिए नियुक्त कर सकेगा जब तक स्थायी न्यायाधीश अपने  कर्तव्यों  को फिर से नहीं  संभाल लेता है ।
(3) उच्च न्यायालय के अपर या कार्यकारी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कोई व्यक्ति [61][बासठ वर्ष ]की आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात्  पद  धारण नहीं  करेगा ।
[62][224क. उच्च न्यायालयों की बैठकों में सेवानिवॄत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति –इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, किसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूार्ति, किसी भी समय, राष्ट्रपति  की पूर्व  सहमति से किसी व्यक्ति  से, जो उस उच्च न्यायालय या किसी अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद  धारण कर चुका है, उस राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप  में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यक्ति , जिससे इस प्राकर अनुरोध किया जाता है, इस प्रकार बैठने और कार्य करने के दौरान ऐसे  भत्तों का हकदार होगा जो राष्ट्रपति  आदेश द्वारा अवधारित करे और उसको उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्ति यां और विशेषाधिकार होंगे, किंतु  उसे अन्यथा उस उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं  समझा जाएगा  :
परंतु जब तक यथापूर्वोक्त  व्यक्ति  उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप  में बैठने और कार्य करने की सहमति नहीं  दे देता है तब तक इस अनुच्छेद की कोई बात उससे ऐसा  करने की अपेक्षा  करने वाली नहीं समझी जाएगी ।]
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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