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व्हाट्सएप्प ज्ञानी।

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युवा पीढ़ी में बहुत जोश है पढ़ने का जरा कम होश है।
एक लाइन शुरू करे के इससे पहले खत्म करने की जल्दी है।
किताबें बहुत पड़ी है किसको इन्हें पढ़ने की पड़ी है।
ज्ञान बहुत है गूगल में जरा सी उंगली मारो दुनिया सामने खड़ी है।
क्या कमी है किताबों में इसकी सारी जंग दिमाग मे छिड़ी है।
गूगल बाबा के बाद व्हाट्सएप्प बाबा भी मैदान में है।
जो गूगल पे न मिले उसे कहीं से घूमता घुमाता आपके सामने ले आये।
अब ज्ञानी नये दौर से गुजर रहे हैं व्हाट्सएप्प से ज्ञान अर्जन कर रहे है।
कहते है ना के देखा कभी भूलता नही येही ज्ञान ले रहे है।
जो कुछ भी दिखाया जाये सच्ची सच्ची सच मान रहे है।
जो कूड़ा कचरा वहां बिखरा है सब दिमाग मे डाल रहे है।
जिसे साफ सुथरा होना चाहिए था कूड़ा घर बना रहे है।
किताबे पड़ने से आंखे दुखती है ये मन ही मन जान रहे है।
हर सहज को और सहज समझ सहजता से भीतर समा रहे है।
एक नया दौर है जहां व्हाट्सएप्प बाबा अपना ज्ञान धड़ल्ले से बांट रहे है।
पहले क्लास में एक आधा कुशाग्र ब मुश्किल मिला करता था।
अब एकसौ दो प्रतिशत व्हाट्सएप्प छात्र कुशाग्र बुद्धि के पाये जा रहे है।
प्रोफेसर भी हैरान है लोग गायों से ऑक्सीजन निकलवा रहे है।
ऐसे ज्ञानियो के चरण अनेक ग्रुपों एक साथ पाये जा रहे है।
उनके चेले चमचे भक्त उनकी महिमा का गुणगान गा रहे है।
हम भी चले थे ज्ञानी बनने भीड़ देख के रुक गये भाई।
सोचा किताबों को भी तो किसी मूर्ख की जरूरत है मेरे भाई।
चल इस भीड़ से कुछ दूर हटते है बड़े भाई  खाली जगह भरते है ।
असल कहाँ छुपा है चल उठा किताब ढूंढते है।
कुछ ग्रुप हम भी बना उसे पढ़वाने का यत्न करते है ।
देखो न न कहना चूंकि हमारा दिल टूटे कोई बात नही।
किताब जो रूठी फिर न मानी तो होगी बड़ी हानि व्हाट्सएप्प ज्ञानी।
चल फिर सही राह पकड़ते है फेसबुक व्हाट्सएप्प को कवित सुनाते है।
वहां भी सही ज्ञान की राह कुछ भटकों को हो सके तो दिखाते है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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