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वक़्त यू ही गुजरता रहा हम किनारे बैठे रहे।
जिंदगी की लहरें टकराती रही हम निहारते रहे।
कुछ उछल के छू जाती हम महसूस करते रहे।
जब बापिस जाती तो ओझल होती देखते रहे।
कुछ मस्ती करती उछाल मारती खुश होते रहे।
किनारों से मिलके बिखरते अस्तित्व देखते रहे।
किनारों पे आ आवाज करती ये शोर सुनते रहे।
लहरों को दिया वो सब लौटा जाती समझते रहे।
लहरों की हर हलचल को जीवन से जोड़ते रहे।
जीवन मृत्यु के सफर को लहरों से समझते रहे।
कहाँ से उठी कब खत्म ये अनुमान लगाते रहे।
न आरंभ न अंत येही निरंतरता है समझते रहे।
फिर सपनो की नाव बना जीवन लहरों पे सवार हुए।
शुरू में हिचकोले खाते आगे बढ़ते झूंझते रहे।
अथाह जीवन राशि को लांघने को प्रयत्नशील रहे।
क्या जीवन की भोर क्या शब पार जाने को आतुर रहे।
लहरों की नज़र से जीवन देखते और समझते रहे।
वक़्त यू ही गुजरता रहा हम किनारे बैठे रहे।
जिंदगी की लहरें टकराती रही हम निहारते रहे।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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