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मौत ने कहा मैं तो एक सच हूँ।
झुठलाते किसे जाते हो।
जब तक में सामने न आऊं भुलाये रहते हो।
अपने कर्मो से सदा हम बेपरवाह बन जाते हो।
किस और जीवन जायेगा अनजान बने रहते हो।
हर वक़्त अपने को चकमा दे इससे टलते हो।
हर रोज अपना दिन तुम कम करते जाते हो।
मगर अपने को बड़ा कहलाने में इतराते हो।
तो सुनो...तुम्हारी
उम्र गुजरती तिकड़में लड़ाते ।
किसी के जख्मों पे नमक छिड़कते।
किसी के मन को जलाते।
किसी की आह लेते।
किसी की बर्बादी का प्लान बनाते।
किसी को रुलाते।
किसी को झूठ से खुश करते।
किसी का तमाशा देखते।
किसी को मतलब से अपनाते।
किसी को नीचा दिखाते।
कभी ईश्वर को ठगते।
कभी अपनी आस को परखते।
कभी अपनी कुंठा को ढोते।
कभी ईश्वर को विनम्रता देते।
कभी कभी अपनो को प्यार देते।
तो बहुत गुजरी कुछ गुजर रही।
जो थोड़ी बची उसमे ये समझ आयी।
किसे ठगता है ए बन्दे।
अंत समय सब का हिसाब होगा।
अब तक तू राजा था मगर अंत मेरे मुताबिक होगा।
रोज तून मौत के करीब आता है।
कभी तू जवान कहलाता।
कभी अधेड़।
कभी बुजुर्ग।
और अंत वेले कब्र में पांव लटकाता है।
सारी माफी मांगता मेरे पास आता।
मैं भी तो मौत हूँ अब क्यों मुझे है याद करता।
येही दिन निर्णायक है।
जिसके जैसे कर्म वो सिर्फ उसी के लायक है।
दुनिया मे और सब तो बहुत झूठ है।
मैं अटल हूँ।
मुझे तो आना है तुझे साथ ले जाना है।
अब तू समझ जितनी मिली उसमे कैसे निभाना है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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