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काहे मन पे इतना कुछ लगाते हो।
काहे किसी के लिये दिल जलाते हो।
काहे किसी से उम्मीद लगाते हो।
काहे किसी को दिल की सुनाते हो।
कौन है जो तुम्हें कभी सुनेगा?
कौन है जो तुम्हारी परवाह करेगा?
कौन है जो तेरे संग तेरा हो चलेगा?
कौन है जो तेरी राह तेरे लिये तकेगा?
प्रश्नों से झूंझ रहा था मन बैरागी है।
काम से निकला था दिमाग कहीं और चला है।
मन रह रह मुझपे ही गजब ढा रहा है।
मुझे ही इन सबका कारण बता रहा है।
सोच भी बहुत गहरी हो चुकी थी।
कहीं तो कुछ गलत हो रहा था।
मैं भी गलत जगह शायद हाथ मार रहा था।
अपनी सोच पे क्रोध आ रहा था।
इतने में फिर कुछ मन शांत हुआ।
अपना दिल मुश्किल से काबू हुआ।
वैरागी मन बोला "संसार माया है"।
जो ईश्वर की भी समझ मे कभी न आया है।
रिश्ते मतलब के ज्यादा हुए जाते है।
प्रेम अधिकार लग्न अर्पण अब बेमानी है।
आत्मा शुद्ध रहे येही तेरी कहानी है।
सब आशाओं को छोड़ अपनी राह पकड़।
दिल का शांत मन को वैराग दे कर्म का मार्ग प्रशस्त कर।
अपनी आशा अपनी आस अपने से बस कर।
दुनिया यू ही चलती रहेगी तू अपनी राह पकड़।
तेरी मंजिल तुझे पता है।
बाकी तेरे साथी कुछ पड़ाव भर है।
उन्हें भी अपने हर सफर के अंत से पहले खुश करता चल।
जय हिंद।
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सुप्रभात।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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