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साहेब: निर्मला ये प्याज़ निपटा के नाही? ये पासू कोई काम वाम करता है के नही?
निर्मला: पठान साहेब मदद किये है।
साहेब: निर्मला तुम कमाल हो इमरान को पीट दी हो। उससे भी दूर देश से मंगवा ली हो।
निर्मला। वहां आप अमेरिका में उन्हें पीट रहे थे मेने सोचा मैं भी यहां पीट दू।
साहेव: नासिक वालों को मत पीट आना।
निर्मला: वो तो पिटे पिटाये है साहेब।
साहेब : क्या?
निर्मला : कुछ नही साहेब। आप इमरान को पीटीये।
साहेब:तुम कितनी समझदार हो जनता को इम्पोर्टेड चीजे खिलवा रही हो।
निर्मला:साहेब सब आप से सीखा है।
साहेब: ☺सच
निर्मला:मुच् साहेब।
साहेब: सोच रहा हूँ ये ट्रम्पवा को भी ठोकूँ? बहुत बेपेंदी का लौटा है।
निर्मला: उसको आप ठोक आयें है।
साहेब :कब?
निर्मला: अनजान न बनो साहेब।
साहेब: बोलो तो कब?
निर्मला:नेतन्याहू को जैसे ठोका?
साहेब:कब कैसे?
निर्मला: साहेब जिस जिस से गलबहियां की उनकी वाट लगी।अब की बार.......समझे सर।
साहेब: सच।
निर्मला:मुच् साहेब।
साहेब: तो ट्रम्पवा ठुक गवा।
निर्मला: जी मालिक महाभियोग लग्गवा है। आप से व्योपार नही करेगा तो येही होगा।
साहेब: ये तो मुझे पता न था।
निर्मला: क्या बात करते हो साहेब वो जितेंद्र आप को सब का बाप बता रहा था।अब इतने भी अनजान न बनिये।
साहेब:सच्ची।
निर्मला: मुची।
साहेब: चलो बाप वैसे न बना ऐसे ही सही।
निर्मला: मैंने तो ये भी सुना है अगला नंबर मैक्रो का है।
साहेब:ये कौन कह रहा था।
निर्मला: अभी रास्ते के अजीत मिला था। बोलता जा रहा था अब तीसरे की बारी है।
साहेब: बहुत शैतान है अजीत।
निर्मला: साहेब सब आप के ही छात्र है। अध्यापक हेडमास्टर आप ही है।बाकी सब छात्र।
साहेब:सच।
निर्मला: मुच्।
साहेब: आज प्याज़ खाने का दिल कर रहा है।
निर्मला: नाशिक निगोड़ा या अफगानी लाल।
साहेब: घर का तो रोज खाते है आज बाहर का स्वाद लिया जाये।
निर्मला: जो हुकुम साहेब।
साहेब: निर्मला जरा सुनो पीयूष को बुला लाना ।यही कहीं छुपा होगा।
निर्मला: अरे साहेब मीडिया वाले ढूंढ रहे थे सो मैंने आप के बेड की नीचे घुसा दिया।
साहेब: ओह बच्चा है डर गया होगा।
निर्मला: आप के सानिध्य में रह के सब सीख जायेगा।
साहेब: क्या?
निर्मला: जो मन मे आये बोलो किसी के बाप का क्या जाता है।लोगों को याद कहाँ रहता है।ऐसा ही कुछ।
साहेब: सच्ची।
निर्मला: मुची। ट्रम्प भी तो आप से ही सीखा है।
साहेब; पीयूष बाहर आ जा।
पीयूष: मीडिया।
साहेब: बालक बाप कौन?
पीयूष; जितेंद्र ने बताया आप साहेब।
साहेब: आजा बाहर प्याज़ खिलाता हूँ वो भी अफगानी।
पीयूष: जी साहेब आप तो बाप है।
साहेब : सच्ची।
पीयूष: मुची।
निर्मला: प्याज़ लाती हूँ साहेब। निम्बू मार के।
जय हिंद।
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शुभ दिवस।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
बहुत उम्दा व्यंग्य है, सुंदर अति सुंदर। Hats off
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