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बहुत बार हम मन और दिमाग की शांति के नाम पे अपने आप को अशांत किये रहते है।शांति ढूंढते है और मन को आंदोलित रखते है। जो भीतर है उसे बाहर तलाशते है।मन की शांति के नाम पे अपने चारों और के वातावरण को दूषित भी किये रहते है।और इसका ज्ञान संज्ञान कभी न कर पाते है ना ले पाते है।अपने को अशांत रख दूसरे को शांति के नाम पे अशांत कर देते है।करें क्या? बस ये ही न समझ आता है ना हम समझना चाहते है।साधुत्व शायद इसी की बेहतर तलाश है।अपने चित्त को शान्तं रखो और पहले खुद को आनंद की अनुभूति से ओतप्रोत करो और फिर इसे इत्र की तरह अपने आस पास छिड़क दो।वातावरण महका दो।बोलने में शायद आसान है।है ना?पर मुश्किल भी नही।इसके लिए दो नियम जीवन मे बनाओ। पहला चित को विवाद से दूर रखने के लिये सामने वाले को सुना जाये। चाहे वो मनुष्य हो पालतू जानवर हो पेड़ पौधे हो धरती माँ हो। ये सब अपनी खास भाषा बोलते है।बस सुनने की चाह और आदत इन्हें अपनी बात बोलने का मौका दे देती है। धरती को माँ का दर्जा है।माँ से बेहतर इस दुनिया मे न कोई बोलता है ना ही सुनता है।खैर लंबा विषय है फिर कभी लिखा जायेगा।पहला नियम सुनिए आराम से सुनिए प्रेम से सुनिए बिना प्रश्न किये सुनिए जब तक सुनिए जब तक सामने वाला मन भर सुना न ले।विवेक से तोलते चलिये।सुनते सुनते क्रोध रहित मन मे विवेचना कीजिये। मन कंप्यूटर से अनगिनत गुणा तेज़ है।ये बात जान लीजिए।जब सामने वाला कह ले तो विवेक से हुई मन से बातचित को अनुग्रह के रूप में ले आइए।दूसरा नियम अपने विचार को अनुग्रह का रूप दीजिये। वाद विवाद में न उलझे न उलझाये। अनुग्रह सामने वाले को शांत करती है।अनुग्रह सामने प्रतिपक्षी को उसके सुने जाने का एहसास कराती है।ये एहसास ही अनुग्रह के रास्ते सहमति का रास्ता तलाशता है।रास्ता न भी मिला तो शांति बरकरार रखता है।अनुग्रह आप के विचार को एक पटल देता है।आप के मन मे उत्तम भाव है इसकी छवि सामने स्थापित करता है।
सुनना और अनुग्रह बंद रास्ते दरवाजे की बेहतरीन चाबी है।ये दो नियम आप के आस पास के माहौल को सुखद और बेहतरीन बना आप को भी शांत रखते है और आस पास भी शांति बनाये रखते है।अपना के देखिये। बहुत सी बिगड़ी बातें शायद बन जाये।
जय हिंद।
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शुभ दिवस।
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