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उन्माद।

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आज कुछ मन विचलित हुआ। घटनाएं हमारे विचारों पर बेहद गम्भीर प्रभाव डालती है।पिछले कुछ दिनों से जो कुछ आसपास घट रहा है उससे एक ही शब्द ने पूरा कहा जा सकता है वो है "उन्माद"। एक विकट मानसिक स्तिथि जो कई रूपों में सामने आता है। जो आज सड़को पे हो रहा है वो इस विकृति को इंसानी लिहाज़ में दिखा रहा है।तो आज इसपे ही पढ़ा। आप भी पढ़िये और सोचिये।
उन्माद असामान्य रूप से ऊंचा या चिड़चिड़ा मूड, उत्तेजना और / या ऊर्जा के स्तर की स्थिती है।
उन्माद (mania/मेनिया) एक प्रकार का मानसिक रोग है जिसको मनस्ताप के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता है। इसमे व्यक्ति की भावनाओं तथा संवेग में कुछ समय के लिए असामान्य परिवर्तन आ जाते है, जिनका प्रभाव उसके व्यवहार, सोच, निद्रा, तथा सामाजिक मेल जोल पर पड़ने लगता है। यदि इस बीमारी का उपचार नहीं कराया जाए तो इसके बार-बार होने की संभावना बहुत हो जाती है।
यह रोग ऐसे व्यक्तियों को होता है जिनमें मानसिक दुर्बलता होती है और जिसके कारण वे बाह्य तथा संवेगात्मक परिस्थितियों से सहज ही उद्वेलित हो जाते हैं। वर्तमान अनुसंधानों द्वारा प्रमाणित हो गया है कि यह मानसिक रोग स्त्री और पुरुष दोनों में होता है। प्राचीन तथा मध्यकालीन युग में इस रोग का कारण भूत-प्रेत माना जाता था। इसके उपचार के लिए झाड़ फूँक, गंडे ताबीज आदि का उपयोग होता था। आधुनिक काल में शारकों, जैने, मॉटर्न प्रिंस और फ्रॉयड इत्यादि मनोवैज्ञानिकों ने इसका कारण मानसिक बतलाया है। उन्माद में प्राय: मानसिक विकार का परिवर्तन शारीरिक विकार में हो जाता है। 
 उन्माद के रोग में दो बातें प्रमुखत: मिलती हैं :
(1) इसमें काम प्रवृत्ति का प्राधान्य रहता है,
(2) इसमें बचपन की अनुभूतियों का विशेष महत्व होता है।
उन्माद प्राय: कामवृत्ति संबंधी अनुभूतियों का पुन:स्फुरण होता है। अक्सर वे ही व्यक्ति उन्माद रोग के शिकार होते हैं जिनकी कामशक्ति का उचित विकास नहीं हो पाता। वस्तुत: उन्माद के रोगी की क्रियाओं और सम्मोहनावस्था तथा कामविपरीतीकरण की क्रियाओं में पर्याप्त समानता मिलती है। विकृत कामभाव होने के कारण जब उन्माद के रोगी से कुछ पूछा जाता है तो वह यही कहता है : ""मैं नहीं जानता, मुझे ऐसी कुछ बातें स्मरण नहीं हैं"" - इसका अर्थ यह है कि वह कुछ कहना नहीं चाहता क्योंकि इससे उसके अज्ञात अचेतन मन में पड़ी भावनग्रंथि को ठेस पहुँचती है।
इस बीमारी के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि-
दिमाग में रसायनों का असंतुलित होना,
ऐसी किसी घटना का होना जिसका रोगी के जीवन पर गहरा असर पड़ा हो,
किसी तरह का मानसिक दबाव होना,
परन्तु किसी एक कारण को इस बीमारी के होने के लिए दोष नहीं दिया जा सकता है। यह रोग किसी भी वर्ग, जाति, धर्म, लिंग या उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। जिनके परिवार में किसी सदस्य को यह रोग हो या हो चुका हो उनमें मेनिया होने की संभावना कुछ अधिक होती है। अत्याधिक तनाव, सामाजिक दबाव, तथा परेशानियाँ भी बीमारी को बनाये रखने या ठीक न होने का कारण बन सकती हैं।
बिना कारण हँसना, बोलना, नाचना, गाना,सामान्य से अधिक खुश रहना,
सोने की इच्छा में कमी,
बड़े-बड़े दावे (बातें) करना, खुद को बड़ा बताना,
अपने अन्दर अत्यधिक शक्ति का अनुभव करना, बहुत सारे काम एक साथ करने की कोशिश करना, परन्तु किसी भी काम को सही से न कर पाना,यौन इच्छा में वृद्वि,
अपनी क्षमता से परे खर्चे करने की इच्छा करना,छोटी-छोटी बातों पर या बेवजह गुस्सा हो जाना, विवादो या झगडों में पड़ जाना.
इस रोग के उपचार की सबसे उपयुक्त विधि मुक्त साहचर्य है। प्रारंभ में सम्मोहन का प्रयोग होता था। किंतु यह सफल नहीं रहा। मुक्त साहचर्य से रोगी का रुख जीवन के प्रति परिवर्तित हो जाता है और वह स्थायी रूप से, अल्प अथवा दीर्घकाल में रोग से मुक्त हो जाता है। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण तथा मानसिक स्वास्थ्य के नियमों से अवगत कराने से लाभ होता है। इसमें औषधि, प्रघात चिकित्सा तथा शल्य उपचार का प्रयोग नहीं किया जाता।
कृपया अपने आसपास ऐसे रोगियों को उत्तम सलाह से मानसिक रूप से स्वस्थ करें। विक्षिप्तता से बाहर लायें। उन्माद का अंत करने में सहायक बने और शांति स्थापित करे।
जय हिंद
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शुभ रात्रि।
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