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दंगा या बल्वा।

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पत्रकारिता मेरे जीवन मे जब से मुझे होश है उसके निचले स्तर पर है। कहाँ तक गिरेगी पता नही।पिछले कुछ दिनों से जो माहौल है बेहद गम्भीर है।
हर और शब्द गूंज रहा है दंगा। चलो आज उसी पे कुछ बात करते है।समाचार का विश्लेषण तभी कर सकते है जब विषय साफ रूप में दिमाग मे हो। दंगा  उन्माद का ही हिस्सा है। 
दंगा सामाजिक विकार का एक रूप है जिसमें सामान्यतः एक हिंसक समूह प्रशासन, संपत्ति या लोगों के खिलाफ सार्वजनिक अशांति का माहौल पैदा कर देता है। दंगों में आम तौर पर बर्बरता और सार्वजानिक या निजी संपत्ति का विनाश देखने को मिलता है। संपत्ति का प्रकार इसमें शामिल लोगों के हठ पर निर्भर करता है। लक्ष्य में दुकानें, कारें, रेस्तरां, राज्य के स्वामित्व वाली संस्थाओं और धार्मिक इमारतों भी शामिल हो सकतीं हैं।
दंगे के  लिए सरकार के पास बेहतर कानून मौजूद है।उसका पालन करना या न करना प्रशासन और कानून व्यवस्था के हाथ मे है। किसी भी शहर की कमिशनरी इससे निपटने के लिए पूर्ण अधिकार के साथ स्वतन्त्र है।कहीं  मुहँ ताकने की जरूरत नही।
इस आर्टिकल में मै आपको भारतीय दंड संहिता की बहुत ही महत्वपूर्ण धारा 159 दंगा के बारे में बताने जा रहा हूँ।
दंगा क्या होता है ?
धारा –  159 – जब की दो या अधिक व्यक्ति लोक स्थान में लड़कर लोक शांति में विघ्न डालते हैं , तब यह कहा जाता है की वे दंगा करते हैं .
दंगा के आवश्यक तत्व –
१ –  दो या अधिक व्यक्ति – धारा 159 के लागू होने के लिए दो या अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक है , क्योंकि दंगा के अपराध का मुख्य तत्व आपस में लड़ाई है , अकेला व्यक्ति अपने आप से लड़ाई नहीं कर सकता .
यदि दो व्यक्तियों पर दंगा का आरोप और उनमे से एक को दोषमुक्त कर दिया जाता है , तो दुसरे व्यक्ति को दण्डित नहीं किया जा सकता ।
२ – सार्वजनिक स्थान पर लड़ाई – दंगा के अपराध का मुख्य तत्व आपस में लड़ाई है और यह लड़ाई सार्वजानिक स्थान पर होनी चाहिए ।
सार्वजनिक स्थान से तात्पर्य – जहाँ जन साधारण बिना रोक टोक के आ सके।
३ – सार्वजानिक शांति भंग हो – दंगा सार्वजानिक शांति के विरुद्ध अपराध है अतः आपस में लड़ाई से सार्वजानिक शांति भंग होनी चाहिए ।
दंगा के लिए दंड –
धारा – 160 – जो कोई दंगा करेगा वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि एक मास तक हो सकेगी , या जुर्माने से , जो 100 रुपये तक हो सकेगा या दोनों से न दण्डित किया जायेगा ।
हम जो देखते है वो दंगा न होकर बल्वा है।इसका अंतर भी जान लीजिये--
दंगा और बल्वा में अंतर
दंगा बल्वा
१ - दंगा का अपराध केवल सार्वजनिक स्थान पर ही किया जा सकता है बल्वा सार्वजनिक स्थान के साथ-साथ निजी स्थानों पर भी किया जा सकता है।
२ - दंगा दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है बल्वे के लिए व्यक्तियों की संख्या कम से कम पांच होनी चाहिए।
३ - दंगा के अपराध में वास्तविक रूप से लड़ाई करने वाले व्यक्ति ही उत्तरदायी होते हैं बल्वे में सभी व्यक्ति उत्तरदायी होते हैं जो विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य होते हैं चाहे उन्होंने हिंसा या बल का प्रयोग किया हो या नहीं।
४ - दंगा कम दंड से दंडनीय अपराध है बल्वा अधिक दंड से दंडनीय अपराध है।
कानून है भी और नही भी वो कानून में परिभाषित सजा से ही समझ आ जाता है।प्रशासन का सख्त होना दंगे को रोकने का सबसे बड़ा हथियार है।दंगे में कराने वाले निकल जाते है करने वाले फस जाते है। समाज अगर विकृत है व्यवस्था भी कहीं कम नही।हमे मानसिकता की ट्रेनिंग भी देनी चाहिए कानून व्यवस्था कायम रखने वालों को।दूसरा हमे सयम को बचपन से ही सब कोंमों मे पनपाना होगा।तभी हमारा खूबसूरत लोकतंत्र समृद्ध होगा। हमे सब को सयम दान देना होगा। पत्रकारिता को सम्भलना होगा।समय अभी है संभलने का हमारे पास।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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