Skip to main content

कलिंग का युद्ध- एक जीत या हार।

🌺🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹✍️🌺
युद्ध की विभीषिका को हम सब भली भांति जानते है।पूरी दुनिया का इतिहास युद्धों से ही भरा पड़ा है। राजा कहीं भी हुऐ राज्य बढ़ाने के लिए लड़ते रहे। युद्ध के अंत मे विजय उत्सव के बाद जान माल का नुकसान जानने से होता है।हर कोम में इसकी विभीषिका और उसका चित्रण मिलता है।हर धर्म उसे अपने धर्म की लड़ाई से जोड़ने का प्रयत्न करता रहा है जो आज भी जारी है।हमारे भारत के इतिहास में सबसे बड़ा राज्य अशोक का रहा।सीमाएं मयमार से ईरान और नीचे आंध्र तक फैली थी।जब अशोक लड़ने से हटा तो भारी जान माल का अंत कर चुका था।आज अशोक के विषय मे पढा। उसके हृदय परिवर्तन को जानने का प्रयास किया।युद्ध से क्या हाँसिल किया उसकी नज़र से जाना।काफी कुछ संकलित किया आप के लिये। जानते है कलिंग का युद्ध।अशोक का इतिहास शिलालेखों के माध्यम से जाना गया।तेहरवां शिलालेख कलिंग के युद्ध को बताता है।अशोक का इतिहास हमें मुख्यतः उसके अभिलेखों से ही ज्ञात होता है। अब तक अशोक के 150 से ज्यादा अभिलेख 45 स्थानों से प्राप्त हो चुके हैं, जो देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बिखरे हुए हैं। जहाँ एक ओर ये अभिलेख उसकी साम्राज्य-सीमा के निर्धारण में हमारी मदद करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे उसके धर्म एवं प्रशासन संबंधी अनेक महत्त्वपूर्ण बातों की सूचना मिलती है।अशोक के अधिकांश अभिलेखों की लिपि ब्राह्मी लिपि है।तथा अभिलेखों की भाषा प्राकृत मिलती है।कुछ अभिलेख विशेषकर उत्तर पश्चिमी क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं, जिनकी लिपि अरेमाइका एवं खरोष्ठी है। जैसे-
शरेकुता,
मानसेहरा, (तेहरवां शिलालेख यहीं है)
शाहबाजगढी।
पाकिस्तान के हजारा जिले में स्थित है । यहां से प्राप्त तीन शिलाओं में पहली पर प्रथम आठ शिलालेख, दूसरी पर नवें से बारहवां तक तथा तीसरी पर, तेरहवां और चौदहवां लेख उत्कीर्ण हैं । पहली दो शिलाये जनरल कनिंघम द्वारा खोजी गयीं जबकि तीसरी का पता पंजाब पुरातत्व विभाग के एक भारतीय अधिकारी ने लगाया था ।
अन्य लेखों के विपरीत उपर्युक्त दोनों लेख खरोष्ठी लिपि में लिखे गये हैं जो ईरानी अरामेइक से उत्पन्न हुई थी । इन लेखों के अक्षर बड़े तथा खुदाई में अधिक सुस्पष्ट हैं ।
इन स्थानों में बारहवें लेख का अंकन संभवतः विभिन्न सम्प्रदायों के बीच सामंजस्य बनाये रखने के उद्देश्य से ही किया गया होगा जो अशोक के शासनकाल का एक मान्य सिद्धान्त था ।तेहरवां कलिंग के युद्ध के नाम है।
भारतीय इतिहास में कलिंग के युद्ध का एक प्रमुख स्थान है इस युद्ध में सबसे ज्यादा खून खराबा हुआ था। यह युद्ध महान मौर्य सम्राट अशोक और राजा अनंत पद्मनाभन के बीच 262 ईसा पूर्व में कलिंग (जो आज ओडिशा राज्य है) लड़ा गया था।
अशोक ने युद्ध में राजा अनंत पद्मनाभन को पराजित किया, जिसके परिणामस्वरूप कलिंग पर विजय प्राप्त की और मौर्य साम्राज्य में इसको मिला लिया। इस युद्ध के परिणाम विनाशकारी थे मौर्य सम्राट अशोक ने अंततः शांति का मार्ग चुना और बौद्ध धर्म को अपनाया।तब कलिंग को एक गौरवशाली और समृद्ध क्षेत्र कहा गया जिसमें आजादी, प्यार और कलात्मक कुशल लोगों का समावेश था। कलिंग पर हमला करने के मुख्य दो राजनीतिक और आर्थिक कारण थे।
अशोक के दादा, सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने एक बार कलिंग को जीतने  की कोशिश की लेकिन वह असफल रहे। सम्राट अशोक के पिता सम्राट बिंदुसारा क्षेत्रीय विस्तार की प्रक्रिया में थे और कलिंग को जीतने की कोशिश कर रहे थे और सम्राट बिंदुसारा की मृत्यु के बाद, सम्राट अशोक ने कलिंग राज्य को हड़प कर उसे अपने राज्य में मिला लिया।लड़ाई शुरू होने से पहले, अशोक ने कलिंग के राजा (राजा अनंत पद्मनाभन) को एक पत्र भेजा था, जिसमें अशोक ने कलिंग को मौर्य साम्राज्य में मिलाने को कहा था। जब राजा अनंत पद्मनाभन ने मौर्य साम्राज्य के साथ मिलने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, तो सम्राट अशोक ने कलिंग के खिलाफ एक विशाल सेना का नेतृत्व किया।
कलिंग की एक स्वतंत्र सामूदाय गणराज्य की सेना का नेतृत्व राजा अनंत पद्मनाभन ने भी किया था। लड़ाई धौली की पहाड़ी पर लड़ी गई थी। अशोक और उनकी सेना ने राजा अनंत पद्मनाभन की सेना के साथ एक खतरनाक लड़ाई लड़ी।
उन्होंने मौर्य सेना के लिए कड़ा विरोध का प्रदर्शन किया। कलिंग का पूरा शहर युद्ध मैदान में बदल गया और हर कोई मौर्य सेना के खिलाफ लड़ने के लिए आगे आया। हालांकि, उन्होंने विरोध किया और बहादुरी से लड़ाई लड़ी।वास्तव में, कई उदाहरणों में, कलिंग के राजा अनंत पद्मनाभन की अगुवाई वाली सेना विजयी होने के नजदीक थी। आखिरी सांस तक, वे महान वीरता से लड़े परन्तु अंत में कलिंग के लोग युद्ध के मैदान में मारे गए।अंत में सम्राट अशोक महान ने कलिंग की लड़ाई जीती। यह एक भयंकर युद्ध था जिसमें कलिंग के 150,000 योद्धाओं और 100,000 मौर्य योद्धाओं का जीवन दाव पर लग गया था। युद्ध का दृश्य एक भयानक दृष्टि प्रस्तुत कर रहा था, पूरे इलाके सैनिकों की लाशों के साथ भरे हुए थे, गंभीर दर्द में घायल सैनिक पड़े हुए थे, गिद्धों ने उनके मृत शरीर पर आश्रय कर लिया था, बच्चे अनाथ हो गए थे वे अपने सगे सम्बन्धियों को खो चुके थे।विधवा शांत और निराश दिखाई दे रही थी। युद्ध के मैदान के आगे बहने वाली दया नदी बहते रक्त के कारण पूरी तरह से लाल हो गई। हालांकि, विजय के बाद कलिंग को मौर्य साम्राज्य में शामिल किया गया परन्तु यह एक दुखद दृश्य बन चुका था।इसने अशोक को भीतर तक भींध दिया। अशोक बोद्ध धर्म की और झुकाव रखता है था जो उज्जैन के विद्रोह को दबाने के दौरान पनपा था।
सम्राट अशोक और बौद्ध धर्म 
यह मौखिक इतिहास में कहा जाता है कि कलिंग की एक महिला युद्ध के बाद अशोक के पास गई और उसने कहा कि इस लड़ाई ने उसके पति, पिता और पुत्र को उससे छीन लिया है और अब उसके पास ज़िन्दा रहने के लिए कुछ भी नहीं बचा है।इतिहास में यह युद्ध एकमात्र उदाहरण है जो अशोक जैसे कठोर शासक के दिल में पूरी तरह से बदलाव लाया। उन्हें एहसास हुआ कि किसी कीमत पर उनकी जीत सार्थक नहीं है।
इस घटना का सम्राट अशोक पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया और आचार्य उपगुप्त के शरण में अहिंसा के रास्ते पर चले गए और सम्राट अशोक ने अपने सैन्य विजय को समाप्त कर दिया। साथ ही मौर्य साम्राज्य की क्षेत्रीय विस्तार नीति को पूरी तरह से रोक दिया और अपना पूरा जीवन बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में व्यतीत किये। अशोक को युद्ध की विभीषिका को देख कर अपने अंदर पनप चुके युद्ध उन्माद का एहसास कराया। कहा जाता है।युद्ध और युद्ध के बाद तीन लाख से ज्यादा जाने गयी। इतिहास राजाओ का है और राजाओं के युद्धों का है।इसे समझने की जरूरत है।कोई समाज किसी भी काल मे इससे अछूता नही रहा।ये हम सब के भीतर ही है।रोज कुछ ज्यादा की उम्मीद।न जाने क्या क्या कुचल जाते है।उन्माद में पता ही नही चलता। ये हर युग मे था और आगे भी रहेगा।कोमें कभी लड़ना नही छोड़ती।कितना समय इससे दूर रहा जा सकता है यही हमारी सफलता है।उन्माद का पनपने से जितना रोका जा सकेगा शांतिकाल लम्बा होगा।बाकी आप पे छोड़ा।
जय हिंद।
****🙏****✍️
शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
🌺🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌺

Comments

Popular posts from this blog

रस्म पगड़ी।

🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक  समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस

भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया का वर्णन करता है। ये  सरकार की वित्तीय प्रणाली का महत्वपूर्ण अंग है।हमारे संघ प्रमुख हमारे माननीय राष्ट्रपति इस हर वर्ष संसद के पटल पर रखवाते है।प्रस्तुति।बहस और निवारण के साथ पास किया जाता है।चलो जरा विस्तार से जाने। यहां अनुच्छेद 112. वार्षिक वित्तीय विवरण--(1) राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में संसद के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित  प्राप्ति यों और व्यय  का विवरण रखवाएगा जिसे इस भाग में “वार्षिक  वित्तीय विवरण”कहा गया है । (2) वार्षिक  वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्राक्कलनों में-- (क) इस संविधान में भारत की संचित निधि पर  भारित व्यय के रूप में वार्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित   राशियां, और (ख) भारत की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थाफित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां, पृथक –पृथक दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा   । (3) निम्नलिखित व्यय भारत की संचित निधि पर भार

दीपावली की शुभकामनाएं २०२३।

🌹🙏🏿🔥❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🔥🌹🙏🏿 आज बहुत शुभ दिन है। कार्तिक मास की अमावस की रात है। आज की रात दीपावली की रात है। अंधेरे को रोशनी से मिटाने का समय है। दीपावली की शुभकानाओं के साथ दीपवाली शब्द की उत्पत्ति भी समझ लेते है। दीपावली शब्द की उत्पत्ति  संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। कुछ लोग "दीपावली" तो कुछ "दिपावली" ; वही कुछ लोग "दिवाली" तो कुछ लोग "दीवाली" का प्रयोग करते है । स्थानिक प्रयोग दिवारी है और 'दिपाली'-'दीपालि' भी। इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली जिसे दिवाली भी कहते हैं उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकार जाता है जैसे : 'दीपावली' (उड़िया), दीपाबॉली'(बंगाली), 'दीपावली' (असमी, कन्नड़, मलयालम:ദീപാവലി, तमिल:தீபாவளி और तेलुगू), 'दिवाली' (गुजराती:દિવાળી, हिन्दी, दिवाली,  मराठी:दिवाळी, कोंकणी:दिवाळी,पंजाबी),