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मर्यादा पुरुषोत्तम - श्री राम।

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कुछ दिन पूर्व हमारे अनुज समान प्रिय बंधु ने हमसे एक आवेदन किया। जो बेहतरीन लिखा गया..उसे यहां लिखे बिना रहा नही गया। आप भी पढ़िये।

आदरणीय बॉबी भैया, 
आशा करता हूं आज आपने रामायण धारावाहिक का अंतिम चलचित्र का दर्शन किया होगा. मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि रामायण से हमें शिक्षा मिलती हे की सदाचार, आदर्श जीवन, सेवा भाव एवम् धरम को अपनी जीवन शेली में समिलित करना चाहिए. 

भगवान राम हम सब के लिए एक आदर्श हे जिन्होंने अपना समस्त जीवन त्याग, बलिदान एवं धरम को ही समर्पित किया।

आपसे एक अनुरोध है कि भगवान राम के इस चरित्र वर्णन को समस्त विश्व में आलोकी करे ताकि हम सब मनुष्य जाति का कल्याण हो।।।।

जो प्रिय अनुज ने लिखा इससे ज्यादा की आवश्यकता ही नही है।

फिर कुछ संकलन का प्रयास किया जिससे थोड़ा और समझा जा सके।

हमारा हिन्दू धर्म बहुत ही समृद्घ है। हमारे जितने भी ग्रंथों महाकाव्यों की रचना की गई वे सब मनुष्य के लिए कल्याणकारी है।हमारे समाज को इनके माध्यम से जीने की राह दिखाई गई है। मैं आस्था से ज्यादा इन्हें ज्ञान का माध्यम मानता हूँ।हमे स्कूल से लेकर घर तक इसकी शिक्षा मिलती रही है और आज भी जारी है। मनुष्य का अस्तित्व खो सकता है पर ज्ञान का कभी नही। श्री राम बहुतों के आराध्य है और जीवन का विस्तार है।
उनके चित्रित चरित्र को जी पाना और अपनाना बहुत कठिन है। मगर जितना हो सकेगा अपने विवेक अनुसार संक्षिप्त में विवेचना करने का यत्न करूँगा। 

श्री राम जी की स्तुति जिसे हम घर मे करते है पहले उसका भाव जान लें।

श्रीरामचंद्र कृपालु भज मन अथवा राम स्तुति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित 16 वीं शताब्दी का एक भजन है। ईसमे श्रीराम प्रभु के अदभुत गुण एवं शौर्य का वर्णन है। मनुष्य के मन को नियंत्रित करनेवाली ये यह स्तुति संस्कृतमय अवधी में है। नीचे की तीन पंक्तियाँ अवधी में लिखी गयी है। इसमें कई अलंकारों का प्रयोग हुआ है। भक्तिरस से ओत-प्रोत यह कविता, साहित्यिक तौर पर भी अद्भुत है। यह जगती छंद में लिखी गयी है।

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन हरणभवभयदारुणं। नवकंजलोचन कंजमुख करकंज पदकंजारुणं ॥१॥

व्याख्या: हे मन कृपालु श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर। वे संसार के जन्म-मरण रूपी दारुण भय को दूर करने वाले हैं। उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान हैं। मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥1॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि नवनीलनीरदसुन्दरं। पटपीतमानहु तडित रूचिशुचि नौमिजनकसुतावरं 
॥2॥

व्याख्या: उनके सौन्दर्य की छ्टा अगणित कामदेवों से बढ़कर है। उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर्ण है। पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है। ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥2॥

भजदीनबन्धु दिनेश दानवदैत्यवंशनिकन्दनं। रघुनन्द आनन्दकन्द कोशलचन्द्र दशरथनन्दनं ॥3॥

व्याख्या: हे मन दीनों के बन्धु, सूर्य के समान तेजस्वी, दानव और दैत्यों के वंश का समूल नाश करने वाले, आनन्दकन्द कोशल-देशरूपी आकाश में निर्मल चन्द्रमा के समान दशरथनन्दन श्रीराम का भजन कर ॥3॥

शिरमुकुटकुण्डल तिलकचारू उदारुअंगविभूषणं। आजानुभुज शरचापधर संग्रामजितखरदूषणं ॥4॥

व्याख्या: जिनके मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट, कानों में कुण्डल भाल पर तिलक, और प्रत्येक अंग मे सुन्दर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं। जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैं। जो धनुष-बाण लिये हुए हैं, जिन्होनें संग्राम में खर-दूषण को जीत लिया है ॥4॥

इति वदति तुलसीदास शङकरशेषमुनिमनरंजनं। ममहृदयकंजनिवासकुरु कामादिखलदलगञजनं ॥५॥

व्याख्या: जो शिव, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले और काम, क्रोध, लोभादि शत्रुओं का नाश करने वाले हैं, तुलसीदास प्रार्थना करते हैं कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे हृदय कमल में सदा निवास करें ॥5॥

मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सावरो। करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥6॥

व्याख्या: जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से सुन्दर साँवला वर (श्रीरामन्द्रजी) तुमको मिलेगा। वह जो दया का खजाना और सुजान (सर्वज्ञ) है, तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है ॥6॥

एही भाँति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषींअली। तुलसी भवानी पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥7॥

व्याख्या: इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ हृदय मे हर्षित हुईं। तुलसीदासजी कहते हैं, भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं ॥7॥

जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥8॥

व्याख्या: गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के हृदय में जो हर्ष हुआ वह कहा नही जा सकता। सुन्दर मंगलों के मूल उनके बाँये अंग फड़कने लगे ॥8॥

यहां श्री राम जी के शौर्य उनकी काम क्रोध लोभ पर विजय उनकी सर्वज्ञता और दया का एहसास होता है।जिन्हें धारने की इच्छा सीता माता को प्रफुलित कर देती है। भजते हुए मुझे।

राम सिर्फ एक नाम नहीं हैं। राम हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत हैं राम हिन्दुओं की एकता और अखंडता का प्रतीक हैं। राम सनातन धर्म की पहचान है। मैं हर धर्म और समाज को उसकी शिक्षाओं के माध्यम से ही बेहतर समझने में यत्नशील हूँ।ये आगे संकलन उसी की कड़ी है। 

राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि।

राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है| बाद में तुलसीदास ने भी भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस की रचनाकर राम को आदर्श पुरुष बताया। राम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था।

भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। राम का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है। राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे। भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श, विनय, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम का नाम राम है। जो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है, निःस्वार्थ भाव से उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित हो सकती है। राम के आदर्श लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन।

राम जाति वर्ग से परे हैं। नर हों या वानर, मानव हों या दानव सभी से उनका करीबी रिश्ता है। अगड़े पिछड़े सब उनके करीब हैं। निषादराज हों या सुग्रीव, शबरी हों या जटायु सभी को साथ ले चलने वाले वे देव हैं। भरत के लिए आदर्श भाई। हनुमान के लिए स्वामी। प्रजा के लिए नीतिकुशल न्यायप्रिय राजा हैं। परिवार नाम की संस्था में उन्होंने नए संस्कार जोड़े। पति पत्नी के प्रेम की नई परिभाषा दी। ऐसे वक्त जब खुद उनके पिता ने तीन विवाह किए थे। लेकिन राम ने अपनी दृष्टि सिर्फ एक महिला तक सीमित रखी। उस निगाह से किसी दूसरी महिला को कभी देखा नहीं।

 त्रेतायुग में भगवान श्रीराम से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं, उनसे उत्तम कोई व्रत नहीं, कोई श्रेष्ठ योग नहीं, कोई उत्कृष्ट अनुष्ठान नहीं। उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियाँ जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं। 

राजपाठ असीम ताकत अहंकार को जन्म देती है। लेकिन अपार शक्ति के बावजूद राम संयमित हैं। वे सामाजिक हैं, लोकतांत्रिक हैं। वे मानवीय करुणा जानते हैं। 

राम का जीवन आम आदमी का जीवन है। आम आदमी की मुश्किल उनकी मुश्किल है। वे हर उस समस्या का  शिकार हुए जिन समस्याओं से आज का इंसान जूझ रहा है। बाकि देवता हर क्षण चमत्कार करते हैं। लेकिन जब राम की पत्नी का अपहरण हुआ तो उसे वापस पाने के लिए उन्होंने कोई चमत्कार नहीं किया अपितु रणनीति बनाई। लंका जाने के लिए उनकी सेना ने कोई चमत्कार नहीं किया बल्कि एक-एक पत्थर जोड़कर पुल बनाया। यह उनकी कुशल प्रबन्धक क्षमता को दिखाती है। जब राम अयोध्या से चले तो साथ में सीता और लक्ष्मण थे। जब लौटे तो पूरी सेना के साथ। एक साम्राज्य को नष्ट कर और एक साम्राज्य का निर्माण करके। 

राम अगम हैं संसार के कण-कण में विराजते हैं। सगुण भी हैं निर्गुण भी। तभी कबीर कहते हैं “निर्गुण राम जपहुं रे भाई।”

आदिकवि ने उनके संबंध में लिखा है कि वे गाम्भीर्य में उदधि (सागर) के समान और धैर्य में हिमालय के समान हैं। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसीलिए तो भगवान राम के चित्रित आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा।

जब ज्ञान को ज्ञान ही समझा जाये तो समाज और धर्म समृद्ध होता है। यही मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का सही चरित्र वर्णन है। मैं रोज सीखने का यत्न करता हूँ और फेल हो जाता हूँ।फिर भी यत्नशील हूँ। कुछ संयम धीरज सीखा है बहुत सीखना बाकी है। बाकी जो सब राम रची राखा।

जय हिन्द।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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Comments

  1. राम से बड़ा राम का नाम 🙏🙏🙏

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