Skip to main content

आनंद बाजार।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹
दुनिया आनंद का बाजार है। हर तरफ खुशी की दुकानें सजी है। कोई इनसे महक लेता है और कोई मुँह फेर के निकल लेता है। आनंद ढूंढने की जरूरत नही हर और फैला पड़ा है।बुरा न मानो दोस्तों कभी कभी बहकी बहकी बाते भी करनी चाहिए।दोस्तों को भी लगना चाहिए भाई बिन पिये ही टल्ली हुआ पड़ा है।मगर दिल से कहूं ये जीवन का सबसे हसीन सच्चा जीवन दर्शन है।आनंद लूटने वाला इसे हर कहीं ढूंढ लेता है। सोचते रहने वाला किसी नुकड़ पे खड़ा हो बस तमाशा देखता रहता है। दूसरे के आनंद पे दुखी हो अपना ही सोक मनाता रहता है। बड़ी अजीब बात है ना हर और आनंद का बाजार लगा पड़ा है फिर भी खुशी कम और गम ज्यादा भरा पड़ा है। हर और द्वेष जलन क्रोध पीड़ा धम्भ मुफ्त में बंट रहा है। रोज सुबह होती है मगर रातभर दिमाग मे पकी सुबह होते ही धधकती जलती धू धू ही लेती है।दिन के अठारह घण्टे पहले पकते घर से आफिस आफिस से घर और फिर घर घर ।फिर खूब सिकते मलाल भर लेते । आनंद बाजार तो आँख खुलने से ही लग जाता है। मगर खरीदार कोई कोई निकलता है। बाकी सब कंफ्यूजियाये आते है आनंद की पूछताछ जरूर करते है और निकल जाते है। मन में हमेशा उलझन इधर उधर की लिए आनंद बाजार में घूमते मंडराते है। आनंद की चकाचोंध में उलझी सोई आंखें चुंधिया भी जाती है। तभी आनंद के विचार की बत्ती बन्द कर दी जाती है। जिंदगी फिर उलझ जाती है।ना ये उलझने कभी कम होती है न सकून के पल कभी आते नज़र आते हैं। दिमाग सदा लगता नही और सदा दिमाग साथ देता भी नही। एक अजीब सी दौड़ चारों और लगी है।हर कोई दौड़ रहा है। मजे की बात है आनंद बाजार भी रोज की तरह सजा है। ये अजीब से दौड़ वालों का झुंड हर  रोज आता है। एक दूसरे की तरफ देखते आगे निकलने के चक्र में आनंद बाजार कब छूटा इनको कब पता चला है।आनंद बाजार को देखने का आनंद कब निकल गया इन दोड़ाकों को कब पता न चला। दौड़ कोई जीता न जीता या कौन जीता ये भी कभी पता न चला है। सब  कमाया पर आनंद बाजार से कुछ कभी खरीद न पाया ये अंत समय मे पता चला। हम भी मुस्कुरा रहे थे ईश्वर को और मक्खन लगा रहे थे।ये भगवान तेरा बहुत बहुत शुक्र है आज आनंद बाजार की एक दुकान पे मैं कुछ खरीदने को खड़ा है। दोड़ाकों कि भीड़ फिर दिखी पर मैंने भी मुह मोड़ा और आनंद बाजार की इक दुकान पे आज का आनंद समान खरीद फिर एक हसीन रात गुजारने अपने घर की और चल पड़ा है। घर पहुंचा तो मुझे देख हर और खुशी सी छा गयी। हमने मुस्कुराकर कहा अ ह  जिंदगी तेरा आनंद बाजार वाक्य ही बहुत बड़ा है। आप भी कुछ ले आइये आनंद बाजार सजा पड़ा  है और भीड़ भी बहुत कम है हर और आनंद ही आनंद हर और बिखरा पड़ा है।
जय हिंद।
****🙏****✍️
शुभ रात्रि।

"निर्गुणी'
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌹🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

Comments

Popular posts from this blog

रस्म पगड़ी।

🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक  समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस

भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया का वर्णन करता है। ये  सरकार की वित्तीय प्रणाली का महत्वपूर्ण अंग है।हमारे संघ प्रमुख हमारे माननीय राष्ट्रपति इस हर वर्ष संसद के पटल पर रखवाते है।प्रस्तुति।बहस और निवारण के साथ पास किया जाता है।चलो जरा विस्तार से जाने। यहां अनुच्छेद 112. वार्षिक वित्तीय विवरण--(1) राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में संसद के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित  प्राप्ति यों और व्यय  का विवरण रखवाएगा जिसे इस भाग में “वार्षिक  वित्तीय विवरण”कहा गया है । (2) वार्षिक  वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्राक्कलनों में-- (क) इस संविधान में भारत की संचित निधि पर  भारित व्यय के रूप में वार्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित   राशियां, और (ख) भारत की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थाफित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां, पृथक –पृथक दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा   । (3) निम्नलिखित व्यय भारत की संचित निधि पर भार

दीपावली की शुभकामनाएं २०२३।

🌹🙏🏿🔥❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🔥🌹🙏🏿 आज बहुत शुभ दिन है। कार्तिक मास की अमावस की रात है। आज की रात दीपावली की रात है। अंधेरे को रोशनी से मिटाने का समय है। दीपावली की शुभकानाओं के साथ दीपवाली शब्द की उत्पत्ति भी समझ लेते है। दीपावली शब्द की उत्पत्ति  संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। कुछ लोग "दीपावली" तो कुछ "दिपावली" ; वही कुछ लोग "दिवाली" तो कुछ लोग "दीवाली" का प्रयोग करते है । स्थानिक प्रयोग दिवारी है और 'दिपाली'-'दीपालि' भी। इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली जिसे दिवाली भी कहते हैं उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकार जाता है जैसे : 'दीपावली' (उड़िया), दीपाबॉली'(बंगाली), 'दीपावली' (असमी, कन्नड़, मलयालम:ദീപാവലി, तमिल:தீபாவளி और तेलुगू), 'दिवाली' (गुजराती:દિવાળી, हिन्दी, दिवाली,  मराठी:दिवाळी, कोंकणी:दिवाळी,पंजाबी),