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दुनिया आनंद का बाजार है। हर तरफ खुशी की दुकानें सजी है। कोई इनसे महक लेता है और कोई मुँह फेर के निकल लेता है। आनंद ढूंढने की जरूरत नही हर और फैला पड़ा है।बुरा न मानो दोस्तों कभी कभी बहकी बहकी बाते भी करनी चाहिए।दोस्तों को भी लगना चाहिए भाई बिन पिये ही टल्ली हुआ पड़ा है।मगर दिल से कहूं ये जीवन का सबसे हसीन सच्चा जीवन दर्शन है।आनंद लूटने वाला इसे हर कहीं ढूंढ लेता है। सोचते रहने वाला किसी नुकड़ पे खड़ा हो बस तमाशा देखता रहता है। दूसरे के आनंद पे दुखी हो अपना ही सोक मनाता रहता है। बड़ी अजीब बात है ना हर और आनंद का बाजार लगा पड़ा है फिर भी खुशी कम और गम ज्यादा भरा पड़ा है। हर और द्वेष जलन क्रोध पीड़ा धम्भ मुफ्त में बंट रहा है। रोज सुबह होती है मगर रातभर दिमाग मे पकी सुबह होते ही धधकती जलती धू धू ही लेती है।दिन के अठारह घण्टे पहले पकते घर से आफिस आफिस से घर और फिर घर घर ।फिर खूब सिकते मलाल भर लेते । आनंद बाजार तो आँख खुलने से ही लग जाता है। मगर खरीदार कोई कोई निकलता है। बाकी सब कंफ्यूजियाये आते है आनंद की पूछताछ जरूर करते है और निकल जाते है। मन में हमेशा उलझन इधर उधर की लिए आनंद बाजार में घूमते मंडराते है। आनंद की चकाचोंध में उलझी सोई आंखें चुंधिया भी जाती है। तभी आनंद के विचार की बत्ती बन्द कर दी जाती है। जिंदगी फिर उलझ जाती है।ना ये उलझने कभी कम होती है न सकून के पल कभी आते नज़र आते हैं। दिमाग सदा लगता नही और सदा दिमाग साथ देता भी नही। एक अजीब सी दौड़ चारों और लगी है।हर कोई दौड़ रहा है। मजे की बात है आनंद बाजार भी रोज की तरह सजा है। ये अजीब से दौड़ वालों का झुंड हर रोज आता है। एक दूसरे की तरफ देखते आगे निकलने के चक्र में आनंद बाजार कब छूटा इनको कब पता चला है।आनंद बाजार को देखने का आनंद कब निकल गया इन दोड़ाकों को कब पता न चला। दौड़ कोई जीता न जीता या कौन जीता ये भी कभी पता न चला है। सब कमाया पर आनंद बाजार से कुछ कभी खरीद न पाया ये अंत समय मे पता चला। हम भी मुस्कुरा रहे थे ईश्वर को और मक्खन लगा रहे थे।ये भगवान तेरा बहुत बहुत शुक्र है आज आनंद बाजार की एक दुकान पे मैं कुछ खरीदने को खड़ा है। दोड़ाकों कि भीड़ फिर दिखी पर मैंने भी मुह मोड़ा और आनंद बाजार की इक दुकान पे आज का आनंद समान खरीद फिर एक हसीन रात गुजारने अपने घर की और चल पड़ा है। घर पहुंचा तो मुझे देख हर और खुशी सी छा गयी। हमने मुस्कुराकर कहा अ ह जिंदगी तेरा आनंद बाजार वाक्य ही बहुत बड़ा है। आप भी कुछ ले आइये आनंद बाजार सजा पड़ा है और भीड़ भी बहुत कम है हर और आनंद ही आनंद हर और बिखरा पड़ा है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी'
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