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इश्क़ मोहब्बत सौ पैगाम लाती है।
दिल से दिल को बाखुदा मिलाती है।।
हर हसरतों का मुक्कमल जहां है ये।
हर और फूल खिलते दिल बहलते हैं।।
तेरी सूरत में अपना गुलसितां मयस्सर होता है।
जहन में तुम बसी हो जो सारा जहां जन्नत होता है।।
यादें भी इतनी खूबसूरत है तन्हाईयों में साथ होती है।
उलझाये रखती है अपने मे खलिश गुसार करती हुई सी।।
इश्क़ की दास्तान रिवायतों में कब किससे बंधी है।
हुआ तो तोड़ दी न हुआ तो बस मोहज़्ज़ब कहलाये।।
इश्क़ भी बड़ी बेमुरव्वत आरज़ूयों की फेहरिस्त है।
ख़्वावों की महफ़िल है रोज़ सजती है जी जाती है।।
इश्क़ की महक भी दिलोबाग़ को रोशन किये है।
सोचों पे काबिज़ हो वक्त के तक़ाज़े शहीद किये है।।
मसरूफियत इतनी की सब काम नाकाम किये है।
जानो हाले दिल तो ये कलाम नज़र हम तेरी किये हैं।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।।
"निर्गुणी"
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Wah wah...
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