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कुछ इल्म की दुनिया में मुझे भी इल्म बक्श दे ए खुदा ।
कुछ मैं काबिल हो जाऊं कुछ मेरा मुक़द्दर भी बदल जाये ए खुदा।
कुछ इल्म की दुनिया में मुझे भी इल्म बक्श दे ए खुदा ।
कुछ सलीके मैं समझ जाऊं कुछ बेहतर बन सकूं ए खुदा।
कुछ इल्म की दुनिया में मुझे भी इल्म बक्श दे ए खुदा ।
कुछ तखसीस हममें रोशन हों और ह कुछ महक भी जायें ए खुदा।
कुछ इल्म की दुनिया में मुझे भी इल्म बक्श दे ए खुदा ।
कुछ एहसास जमीर के हममें जगे और कुछ हम बेपरवाह न हों ए खुदा।
कुछ इल्म की दुनिया में मुझे भी इल्म बक्श दे ए खुदा ।
कुछ बुराइयों से लड़ सकें कुछ बुराइयां वाशरा दफन कर सकें ए खुदा।
कुछ इल्म की दुनिया में मुझे भी इल्म बक्श दे ए खुदा ।
कुछ इस नस्ल को बेहतरी बक्श सकें कुछ आने वाली को बेहतर दे सकें ए खुदा।
कुछ इल्म की दुनिया में मुझे भी इल्म बक्श दे ए खुदा ।
कुछ नफरतों का दौर खत्म कर सकें कुछ आने वाला बेहतर बना सकें ए खुदा।
कुछ इल्म की दुनिया में मुझे भी इल्म बक्श दे ए खुदा ।
कुछ तेरी खुदाई समझ सकें कुछ दुनिया को खुदा से इश्क़ समझा सकें ए खुदा।
कुछ इल्म की दुनिया में मुझे भी इल्म बक्श दे ए खुदा ।
कुछ इल्म की ख्वाइशें तो है ए खुदा कुछ उस्ताद से मुलाक़ात भी करा दे ए खुदा।
कुछ इल्म की दुनिया में मुझे भी इल्म बक्श दे ए खुदा ।
कुछ मुझे बिन उस्ताद इल्म पाने की मिली नही कोई और जगह ए खुदा।
कुछ इल्म की दुनिया में मुझे भी इल्म बक्श दे ए खुदा ।
कुछ तुझसे क्या कहूँ क्याव मांगू और बस एक उस्ताद से मुलाक़ात करा दे ए खुदा।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि
शब्बा खैर
"निर्गुणी"
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