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इलेक्शन अनाउंस हो चुके है।
सब पहाड़ चढ़ने को चल चुके है।
गुजरात में भी गुज्जू भाई फॉर्म में आ चुके है।
हिमाचली हिमाचलियत की डपली बजा चुके है।
केजरीवाल दौड़ हिमाचल से लगा अब गुजरात भाग चुके है।
कांग्रेसी अपनी विरासत के मोह को गले लगा चुके है।
भाजपा सब पैंतरे जा अजमा रही है।
गुज्जू गोल गोल है सब पार्टियां फिसल रही है।
हिमाचली पहाड़ सा अडिग है सब पार्टियां अपनी चढ़ाई चढ़ रही है।
खूब चर्चा हो रही है पार्टियां में और पप्पू की ढूंढ लगी हुई है।
गुड लक है ये हमारा कहीं खो न जाएं मित्रो?
यही डर आप भाजप को बस सुबह से शाम लगा हुआ है।
पत्रकार भी अब तो हताश से होने लगे है ।
पप्पू के चलते पैसे न मिलने का डर इन्हे भी अब सताने लगा है।
अरे देखो पप्पू की अपनी खोज यात्रा झंडे गाड़ती चल रही है।
मगर इधर चुनावी समर हो रहा है और वर्चस्व की तालाश सबको लगी हुई है।
विश्व को सबसे बड़ी पार्टी आजादी दिला रही है।
पप्पू मंद मंद मुस्कुरा रहा है।
भारत को सबसे पुरानी पार्टी इतिहास गिना रही है।
पप्पू अभी भी मंद मंद मुस्कुरा रहा है ।
चोर तो सब है भाई बड़ा कोन है एक दूसरे को ये सब बता रहे है।
लांछन एक दूसरे पे लगा महिला शक्ति को आदर्श की बंदूकें थमाई जा रही है।
चरित्र हनन की गोलियां बरसी और बरसाई जा रही है।
धर्म तो इस युद्ध में सबसे उपर है इसकी चरस पिलाई जा रही है।
क्या बच्चे क्या युवा क्या वृद्ध सबको ये नशा अफीम सा परोसा जा रहा है।
अब ये धर्म रूपी नशा पीने पिलाने का दौर चल पड़ा है ।
मत पूछो मोरबी के झूलों पे क्या हो रहा है?
मोतों का हिसाब तो केवल केबल दे रहा है।
ये प्राकृतिक है या भ्रष्टाचार जादूगर का नशा तो चढ़ा हुआ है।
गुज्जू भाई की गोल वॉल पे सब फिसल गए है।
एक उनका प्रभु उनके दिलों दिमाग पे चड़ा हुआ है।
ये चुनाव है भाई इक्कीसवीं सदी का अब लड़े नही लड़ाए जा रहे है।
झूठ विकृति भ्रष्टाचार काम के बम यहां जहां तहां गिराए जा रहे है।
सत्ता रहेगी तो हम रहेंगे यही डर अब सबको सताए जा रहें है।
उधर एक यात्रा चल रही है सत्ता के गलियारों से दूर।
शायद चुनाव के मायने जाने अंजाने हमको समझा रही है।
फिर याद आया.. ..🤪
इलेक्शन अनाउंस हो चुके है।
सब पहाड़ चढ़ने को बस चल चुके है।
आपका विवेक हरने की बस तैयारी है ।
पांच साल अब किसकी बारी है?
यही तो तह होना है आपको अगले पांच साल किसको झेलना है?
इलेक्शन अनाउंस हो चुके है।
सब पहाड़ चढ़ने को बस चल चुके है।
विवेक आपका है मशवरा हमारा है ये लोकतंत्र बहुत प्यारा है।
वोट का अधिकार है इस्तेमाल करना जरूर है।
सत्ता किसी की आए आपका मत देना जरूर है।
जनता सबको खूब परखती है सो इसके विवेक पे सबको नाज है।
इलेक्शन अनाउंस हो चुके है।
सब पहाड़ चढ़ने को बस अब चल चुके है।
न कोई इसे अपनी बपौती समझे कुछ इनके चलते जा चुके है ।
आगे समझ लीजिए शायद आपकी ही बारी है।
इलेक्शन अनाउंस हो चुके है।
सब पहाड़ चढ़ने को बस चल चुके है।
बातों को बात अभी तो इन सब पर बस जनता ही भारी है।
धन्यवाद।
शुभप्रभात।
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जय हिंद।
"निर्गुणी"
आपकी कविता में वास्तविकता झलकती है आप सर्व संपन्न तथा बहु आयामी प्रतिभा के धनी हैं, आपको सहृदय शुभ कामनाएं।
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