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सोच रहा हूं "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"।
कुछ विचार करता हू तो कुछ समय ठहर सी जाती है।
फिर जाने अंजाने बिना बताए लौट आती है।
मेरी बुद्धि को अपना घर समझ कब्जा जमा लेती है।
फिर वही "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"।
देखा...
ऑफिस में बॉस सदन में नेता सब उसके अधीन है।
मंदिर में पुजारी गिरजा में पादरी भी इसके मुरीद है।
स्कूल में मास्टर कॉलेज में प्रोफेसर भी फैन है।
तो लगा "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"।
गाड़ी का मैकेनिक और गाड़ी का ड्राइवर भी इसके शौकीन है।
अमीर की अमीरी और गरीब की गरीबी भी इसकी मुरीद है।
लाला सेठ व्योपारी की जेब भी इससे भरी हुई है।
क्या करू अब" मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"।
आज कल तो होनहार में भी ये घर करी हुई है।
जिधर देखो यहां वहां जहां तहां बिखरी हुई है।
जिसे देखो इसे लूट रहा है और इससे सबकी जेब भरी हुई है।
बेशर्म हो कहता हूं "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"।
बचपन से जवानी तक हर और ये देखी जा रही है।
शालीनता का पाठ पढ़ाने वालों को भी ये लीले जा रही है।
कुछ भी बचा नही सब कुछ तो लिए जा रही है।
सोचता हू "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"।
जिंदगी इसी के रंग में रंगी हुई झूम रही है।
तेरी मैं से मेरी मैं बड़ी यही होड़ हर और लगी हुई है।
मैं का भी मेला लगा हुआ है ये भी बेची खरीदी जा रही है।
ओह क्या सोच रहा "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"।
इसके शरार में नफरतें पालते मुस्कुराहट बिखेरी जा रही है।
अपनी ही नाक ऊपर रहे ये ही आजमाइश की जा रही है।
नफरतों के दौर में इसकी ही कमाई खाई जा रही है।
अभी भी सोच रहा "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"।
मुक्ति इतनी मुश्किल भी नहीं जो हो न पा रही है।
जरा यत्न तो करो महसूस करो देख ये तुम्हे छोड़े जा रही है।
साथ छोड़ते ही ये तुम्हे कुंदन किए जा रही है।
अभी भी सोच ही रहा हू "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"।
ए मालिक एक राह दिखा इस मैं से मेरा तलाक करा दे।
मुझे भी बस तो अपना सा कुंदन बना दे।
"मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है" इन शब्दों को मेरी किताब से मिटा दे।
धन्यवाद।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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Good one
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