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जीभ , जिह्वा।

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जीभ या जिह्वा बहुत ही खास इंद्री है।भोजन और जीवन दोनो का स्वाद सही रूप में समझाती है। हम समझे न समझे अलग बात है।
छुरी से तेज कांटों से नुकीली और रबड़ से ज्यादा लचीली होती है। जब चलती है तो खाते हुए खाने का स्वाद देती है और बोलते हुए शब्दों के बाण छोड़ने की ताकत रखती है। कुछ भी भेद सकने के क्षमता रखती है। यही प्रेम द्वेष दोष का कारण है। संपूर्ण जगत इसकी धार पे नाचता है। पूरी मनुष्य योनि इसके इशारों पे चलती है।ये मनुष्य वाणी को जगत से रूबरू करवाती है। बहुत महत्व की इंद्री है दोस्तो। 
इसके सही गुण अगर समझ में आ जाएं जो हम अक्सर जानते हुए  भी अंजान बने रहते है तो हमारा उद्धार ही हो जाए।
इसका एक बहुत सुंदर प्रसंग रामायण में है। 
एक बार विभीषण जी "प्रभु राम "के पास आए और पूछने लगे हे प्रभु! लौकिक और पारलौकिक सफलता का साधन क्या है? 
तब भगवान ने कहा ये तो बड़ा ही सरल प्रश्न है इसको तो आपको "श्री हनुमान जी" से ही पूछ लेना चाहिए था।ये कहकर "श्री राम जी" ने विभीषण को "हनुमान जी" के पास भेज दिया।यही प्रश्न विभीषण जी ने "श्री हनुमान जी "के पास जाकर पूछा तो "हनुमान जी" ने कुछ उत्तर नही दिया और जीभ को पकड़ कर बैठ गए।विभीषण जी ने ये प्रश्न कई बार "श्री हनुमान जी" से किया मगर कोई उत्तर नही मिला और विभाषण जी नाराज हो "प्रभु राम" के पास बापिस आ गए। बोले हे भगवन! आप ने मुझे कहां भेज दिया? "प्रभु राम" बोले क्या "श्री हनुमान जी" ने कोई उत्तर नही दिया? विभीषण बोले मैंने कई बार "श्री हनुमान जी" से प्रश्न किया मगर उन्होंने कोई उत्तर नही दिया मगर अपनी जिह्वा पकड़ कर बैठ गए।
भगवान बोले विभीषण "श्री हनुमान जी" ने आपको सब कुछ तो बतला दिया और क्या कहते?
विभीषण तुम्हारे प्रश्न का केवल यही उत्तर है की अपनी जीभ को अपने वश में रखो।यही लौकिक और पारलौकिक सफलता का सबसे सुंदर साधन है।
इससे उत्तम व्याख्या इसकी शक्तियों की नही हो सकती।
त्रेता से कलयुग तक की यात्रा में ये ज्ञान विलुप्त हो गया है। आजकल के संतजन राजनेता गुरु सब इसे भूल गए है और यही हमारे समाज में विकृति और  पत्तन का कारण बना हुआ है।
कुछ तो है जो जो ये इंद्री बहुत बेलगाम हुई जाती है। हर नए दिन कुछ विशिष्ट के मुख से नए आयाम बनाती है। लौकिक सफलता के नए पैमाने बनाती है। हम कुछ गड़ते जाते है ये इठलाती है।पारलौकिक सफलता को झुठलाती जाती है।शायद यही कलयुग में इसकी सफलता है जो हमे समझ नही आती है।
आप की समझ में आई हो तो?
धन्यवाद।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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