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कविता की कल्पना शीलता में कमाल की जान है।
कभी किसी की दाढ़ी तो कभी किसी की मूछ समझाती है।
जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि कहलवाती है।
बहुत लॉजिकल बन कर हंसी ठठे भी लगवाती है।
कभी नेता को जमीन पे ले आती है।
कभी अभिनेता की उड़ान रद्द करवाती है।
आम आदमी से उसकी सही पहचान भी कराती है।
कहती है आम आदमी ही रहो ज्यादा न उछलो समझाती है।
खुद से ही अपनी तारीफ करती करवाती है।
जो आस पास घट रहा चीख चीख सुनाती है।
कही ये वीभत्स रस में घृणा, हास्य रस में हास, करुण रस में शोक , रौद्र रस में क्रोध , वीर रस में उत्साह , भयानक रस में भय ,शृंगार रस में रति ,अद्भुत रस में आश्चर्य , शांत रस में निर्वेद ,
वात्सल्य रस में संतान और भक्ति रस में अनुराग और ईश्वर आराधना के दर्शन कराती है।
ये कविता समुंद्र को कूजे में समाती है।
चुनिंदा शब्दो से हाले जहां बताती है।
आसानी से दिल में कहीं भी उतर जाती है।
एक बार को उसके रस से दिल को निहलाती है।
गहरी निराशा में मार्ग प्रशस्त के दर्शन करवाती है।
लिखने वाले के ज्ञान की भी थाह बताती है।
वाह वाही हुई तो मंजिल मिल गई बताती है।
शब्दो के बाणों से संघर्ष मार्ग में चेतना जगाती है।
जो सो रहा उसे क्या पता कविता ने क्या कहा?
जो सोवत है सो खोवत है यही बस बताती है।
जो जागत है सोई पावत है यही साकार कराती है।
राजनीति में पिछड़ रहे को ढांढस बंधाती जीतते को चेताती है।
हर और हर रस में सकारात्मक खोज ही लाती है।
मान भी लीजिए भाई..
कविता की कल्पना शीलता में कमाल की जान है।
कभी किसी की दाढ़ी कभी किसी की मूछ समझाती है।
जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि कहलवाती है।
धन्यवाद।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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👍👍👍
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