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पार्क।

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मेरे बचपन का अधिकांश समय एक सरकारी कॉलोनी में बीता। जहां हर पॉकेट में एक छोटा पार्क और छह पॉकेट के बीच एक बड़ा पार्क था। झूले थे खेलने की जगह थी। फूलों के पौधे थे खूबसूरत पेड़ पौधों वनस्पतियों की भरमार  थी। हम हॉकी क्रिकेट फुटबाल सब खेलते दौड़ लगाते थे। पार्क की सेवा भी करते थे। पानी लगा कर। खूब शरीर की वर्जित होती थी पसीने निकलते थे और आनंद होता था। अब शहरों के आवास के विकास ने पार्क खत्म कर दिए है। दिल्ली भी सुकड़ गई है। फरीदाबाद में तो हाल बेहद खराब है। सरकार इनके प्रति बहुत असंवेदनशील है।पार्क के विषय में सोचते सोचते बहुत कुछ लिखने को दिल किया। तो चलो पार्क के मूलभाव से शुरुआत करते है।
एक पार्क मूल रूप से लोगों के आने और आराम करने, आनंद लेने और अपने घरों और काम की दिनचर्या से कुछ समय बिताने के लिए बनाई गई भूमि का एक अच्छी तरह से कटा हुआ और संरक्षित क्षेत्र है। *ये मूलभावना मानसिक संकुचन के चलते आज कल मर गई है।* 
एक अच्छे पार्क के तौर पर उदाहरण के लिए इंडिया गेट का चिल्ड्रन पार्क।
जैसा कि नाम से ही संकेत मिलता है, एक ऐसा पार्क है जहां बच्चे सुबह और शाम को आते हैं और पार्क की खुली और ताजी हवा में अपना खाली समय बिताते हैं, अपने भीड़भाड़ वाले घरों और व्यस्त वातावरण से दूर।एक चिल्ड्रन पार्क में उनके खेलने और आनंद लेने के लिए कई खेल की चीज़ें होती हैं।झूले, स्लाइड, व्यायाम के लिए लटकने की छड़ें और ऐसी कई अन्य वस्तुएं हैं जो बच्चों को उनके स्कूल और घर के व्यस्त कार्यक्रम से दूर उनके आवश्यक व्यायाम, आनंद और ताज़गी प्रदान करती हैं।सुबह इन जैसे पार्कों में बच्चे अपने माता-पिता या बड़ों के साथ टहलने, व्यायाम और जॉगिंग के लिए आते हैं, जबकि शाम के समय वे फिर से स्कूल की भारी दिनचर्या के बाद खेलने और अच्छा समय बिताने के लिए आते हैं। एक पार्क में खुली जगह पर, हम बच्चों को देख सकते हैं, जिनमें बड़े बच्चे बैडमिंटन, क्रिकेट और हॉकी जैसे खेल खेलते हैं, जबकि छोटे बच्चे स्लाइड और झूलों का आनंद लेते हैं।
पार्क के एकाकी कोने में छोटे- छोटे बच्चे अपनी शिशु देखभाल वाली के साथ या माता पिता के साथ चक्कर लगा रहे होते हैं। अब, जब बच्चे सो रहे होते हैं, या बस नीले आसमान को निहार रहे होते हैं, तो शिशु देखभाल वाली भी एक साथ गपशप के लिए मिलती हैं। शिशु देखभाल वाली अपनी गपशप जारी रखती हैं, जबकि कई बार बच्चों को उनके प्रैम में जोर से रोते हुए सुना जा सकता है।
कभी-कभी, एकांत कोने में हम कुछ बड़े बच्चों को भी देख सकते हैं जो अपनी किताबों के साथ बैठे हैं और दुनिया की परवाह किए बिना अध्ययन कर रहे होते हैं। 
कही काम वाली काम से फुर्सत पाकर सुस्ता रही होती है।
गली गली समान बेचने वाले भी थक कर किसी कोने में पेड़ की छांव में सुस्ता रहे होते है।
हां काम वाली बाई घरों के काम से समय निकाल कर लंच भी  पार्क में कर रही होती है।
पार्क का नजारा बस एक उत्साहपूर्ण उत्साह है, क्योंकि यह छोटे बच्चों, सभी रंग और आकार के लड़कों और लड़कियों से भरा हुआ होता है।
यहां जो उल्लास और उत्साह है, वह और कहीं आसानी से नहीं मिल सकता- क्योंकि युवा यहां आनंद लेने आते हैं और उनके साथ बड़े-बुजुर्ग आनंद लेने आते हैं ताश पत्ती भी खेलते है। कविता पाठ बांसुरी वादन गीत संगीत की महफिल भी लगती है- 
ओह, यहां विविध आनंद का क्या सम्मेलन है।
युवा मन की चहचहाट की आवाज के साथ मिश्रित ताजी हवा किसी भी बुजुर्ग के आनंद लेने के लिए एक ऐसा प्यारा नशा है। 
एक  पार्क एक दर्शक को वातावरण और वातावरण में व्याप्त पूर्ण और पूर्ण आनंद की छाप देता है।
मेरा मानना है *पार्क सबका अधिकार है।* इससे वंचित किसी को नही किया जाना चाहिए। हर उम्र हर वर्ग को ताजगी देता ये पार्क अपने आप में देश की आत्मा समाता है।और बड़े वृक्ष की साथ नई पौध पनपाता है।
" *इसपर सबका समान अधिकार है यही सच्चा विहार है"* 
धन्यवाद।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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