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ओ महाराज सुनो!
कहो मोटू..
आज कल दिल्ली के दिल में संग्राम छिड़ा बड़ा है।
एक कट्टर ईमानदार भ्रष्टाचार में लिप्त पड़ा है।
ओह ये ईमानदार भी सुना है नेता बना बड़ा है।
जहां नेता वहां भ्रष्टाचार का झाड़ बड़ा पड़ा है।
आज राजनीति में जो इंसान ईमान बेचे वही बड़ा है।
वो साफ सुथरा दिखता पाप का घड़ा बड़ा पड़ा है।
उसके सफेद कुर्ते के नीचे काला धब्बा पड़ा बड़ा है।
बाहर से खुशबू बखेरता अंदर से सड़ांधे पड़ा है।
ये विशेष कोयले की दलाली में काला पड़ा है।
इनकी नसों में खून के पानी सवाल बड़ा है।
देश की कसमें खाने वाले लो दारू दलाली में पड़ा है।
अब देखो आम आदमी से भी कोई नासमझ बड़ा है।
क्योंकि ये राष्ट्रवाद की घुट्टी पिए पड़ा है।
एक का भ्रष्टाचार दूसरे का अचार विचार बड़ा है।
उलझन बस इतनी सी है नेता को अपना समझा पड़ा है।
ये कब क्या किसी के हुए सवाल बड़ा है?
सत्ता के खेल में मैदान भ्रष्टाचार से भरा पड़ा है।
लांछनो का दौर अब बहुतों से बहुत बड़ा है।
अब हर और एक नेता बद से बदनाम हुआ पड़ा है।
फिर एक कोई रोशनी की लहर और विश्वास बड़ा है।
इस बदनाम शहर में कोई न कोई तो ईमानदार पड़ा है।
जिसको ढूंढ के जिताना मुश्किल लक्ष्य बड़ा है।
हर सदन में मैं का दौर और न्याय मृत पड़ा है।
चौथे सतंभ की दरारों में तीसरे का ढहना बड़ा है।
नफरतों का दौर सस्ते से सस्ता हुआ पड़ा है।
धर्म की लड़ाई में तू छोटा मैं बड़ा बड़ा है।
बुलडोजर सियासत में अब मासूम की जान पे पड़ा है।
जिधर देखो राष्ट्रवाद और भ्रष्टाचार का मेला बड़ा है।
ओ महाराज सुनो!
ओ महाराज सुनो!
कहो मोटू..
आज कल दिल्ली के दिल में संग्राम छिड़ा बड़ा है।
एक कट्टर ईमानदार भ्रष्टाचार में लिप्त पड़ा है।
ओह ये ईमानदार भी सुना है नेता बना बड़ा है।
आज कल दुनिया में बस नेता और भ्रष्टाचार बड़ा पड़ा है।
कलयुग में ही घोर कलयुग आन पड़ा बड़ा है।
आज कल दुनिया में बस नेता और भ्रष्टाचार बड़ा पड़ा है।
धन्यवाद।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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