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सुना है नफरतों का दौर फिर से हवा ले रहा है।
कुछ कौम के रखवाले इस हवा को गर्म कर रहे है।
इक अधूरी शिक्षा का बखूबी प्रदर्शन कर रहे है ।
प्रशासन चेत सचेत होने का जबरदस्त ढोंग कर रहे है।
शासक राजनेतिक रोटियां जम कर सेक रहे है।
तथाकथित राजनेतिक विश्लेषक इसे जानकर हवा दे रहे है।
अलगाववादियों को भी मंचों पे जगह दे रहे है।
जुर्रत ऐसी की हर जगह खुले हथियार लहराए जा रहे है।
कुछ पड़ोसी का तो कुछ विदेशी कनेक्शन ढूंढ रहे है।
शतरंज की बिसात पर दोनो और से चालें चली जा रही है।
आम आदमी को ठगा सा महसूस कराए जा रही है।
एक डर काले दौर का फिर दिखाई जा रही है।
सरकार तो सरकार है धर्म पे चढ़कर मदहोश हुए जा रही है।
एक सुनामी की आहट को नजरंदाज किए जा रही है।
कुछ बड़ा होने वाला है ये एहसास कराए जा रही है।
आजादी के दौर में नफरतें पनपाए जा रही है।
चलो कुछ देर बैठता हूं चिंतन करता हू।
क्योंकि
सुना है नफरतों का दौर फिर से हवा ले रहा है।
कुछ कौम के रखवाले इस हवा को और गर्म कर रहे है।
आम आदमी कुछ डर रहा है और रिश्ते मर रहे है।
सुना है नफरतों का दौर फिर से हवा ले रहा है।
एकता की मूर्ति पे शायद कोई आंसू बहा रहा है।
सुना है नफरतों का दौर फिर से हवा ले रहा है।
धन्यवाद।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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जी हां, बिल्कुल सही फरमाया
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