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कुछ अजीब सा चलन हो गया है यहां।
जब हम पढ़ते थे तो सरकारी स्कूल भी अच्छे थे।
अब अपने बच्चे है तो पब्लिक स्कूल अच्छे है।
सरकारी स्कूल सर्वांगीण विकास का आधार थे।
पब्लिक स्कूल केवल किताबी विकास का स्तंभ है।
सरकारी ने संस्कारों को खूब संजोया हुआ था।
पब्लिक ने इन्हे अच्छे से धोया हुआ है।
सरकारी में भाव है शिक्षार्थ आईऐ सेवार्थ जाईए।
पब्लिक में है शिक्षार्थ तो जरूर आईए सेवा भाव कभी न पाइये।
सरकारी अभी भी राष्ट्र भक्ति के स्तंभ बने हुए है।
पब्लिक वाले तो राष्ट्र गान भी बैठ कर सुन रहे है।
सरकारी कुछ मास्टर शायद आजकल फर्जी हो गए है।
पब्लिक तो फार्जियों की फौज खड़ी किए हुए है।
सरकारी में हिंदी अभी भी हिंदी में ही पढ़ाई जाती है।
पब्लिक में हिंदी भी आधी अंग्रेजी में ही पढ़ाई जाती है।
सरकारी को उन्तालीस का मतलब अभी भी पता है।
पब्लिक वाला पूछता है इसे इंग्लिश में बताओ भाई।
सरकारी की उन्यासी बेहतर पता है।
पब्लिक वाला बगले झांकता है।
पढ़ाई तो पढ़ाई है सरकारी में हिंदी में कराई जाती है।
पब्लिक में इंग्लिश में कराई जाती है।
अभिभावक समझते है पब्लिक में बच्चा अच्छा पढ़ रहा।
इसलिए पैसा खर्च रहा है।
अन्हे क्या पता वो कुछ और ही समझ रहा।
सरकारी में पैसे तो कम दिए मगर आजाद हो लिए।
पब्लिक वाले में पैसे भी दिए और होम वर्क भी किए।
वाह क्या बात है सरकारी बेचारा पूरा जिम्मेदार।
पब्लिक वाला पूछे आप की घर में भी तो जिम्मेदारी है।
सरकारी ने तो जिम्मेदारी खुद उठा रखी है।
बच्चे को मुफ्त में बहुत सैर भी करा रखी है।
कुछ को खिलाड़ी कुछ को कवि कुछ को लेखक बना दिया है।
बाकी को उनके जीवन यापन लायक तो बना ही दिया है।
जो बहुत आजाद हुए उनको कम से कम उनतालिस समझना सीखा दिया है।
मुफ्त में मिली शिक्षा में भी जीवन बदलाव ला दिया है।
पब्लिक में जो कल थे वो ही आज है जरा बस मॉडर्न सांस्कृतिक बदलाव ला दिया है।
जरा सा अंग्रेजी बोलना अच्छा सीखा दिया है।
कुछ को घमंडी अकडू और एकांतवासी बना दिया है।
ये नही कहते सब बुरा ही हुआ है।
पर जो हुआ है वो अच्छा भी नही हुआ है।
बच्चों का शायद एकतरफा विकास हुआ है।
कुछ को पूरी मशीन बना दिया है।
एक में बहुत अच्छे हो गए है।
बाकी सब पीछे छूट गए है।
ऐसा लगता है हमे?
सरकारी अभी भी पांव हाथ लगाते है।
पब्लिक वाले हेलो बोलते पाए जाते है।
कहने पे ही सिर झुकाते मुश्किल से पाए जाते है।
पांव की जगह घुटने को हाथ लगाए जाते है।
ये अभी भी नही कहते के बेहतर कुछ नहीं हुआ है।
कुछ तो हुआ है पर पूरा नहीं हुआ है।
यात्रा लंबी है समय कम है।
दूरी सिमटा दी जाए तो शायद कुछ हल निकल जाए।
पर ये दूर की कोड़ी है।
धन्य है प्रभु हम फिर भी सबसे महान कहलाए जाते है।
ऐसा आजकल हम सोचते पाए जाते है।
धन्यवाद।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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Very true, well said
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