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आज का लोकतंत्र कुछ खास हो गया है।
लोगों का समझने का अंदाज भी बदल गया है।
जैसे भैंस के आगे बीन बजाना हो गया है।
पढ़ते पढ़ाते न जाने कहां खो गया है।
कानून की उलझन भरी किताब में गुम हो गया है।
जिसने इसे लिखा था शायद वो भी गम गया है।
चंद शख्सियतों की मुट्ठी में कही दब गया है।
आम भी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से इसे पढ़ गया है।
फिर भी लगता है परिपक्व हो गया है।
आम बैठे बिठाए ही बहुत समझदार हो गया है।
एक के नाम पे भी तिलमिला जाता सा गया है।
दूसरे के नाम पे मखौल बहुत उड़ाता पाया गया है।
चूंकि संविधान और लोकतंत्र को बराबर समझ गया है।
मुद्दे गौण हो गए है शख्शियतें बड़ी कर गया है।
"पाइड पाइपर ऑफ हमलिन" की कहानी सा हो गया है।
चूहे की समझ को संगीत में कहीं गुम कर गया है।
मैं मैं का प्रचार हर तरफ शायद बहुत ज्यादा हो गया है।
मैं के बढ़या कद लोकतंत्र का चीर हरण कर गया है।
हे बापू तेरे तीन बंदर कहां है अब?
आज इन्हे कुछ देर सबकी आंखों के सामने बिठा तो दे।
शायद कोई एक सबक सीख जाए या सीखा दे।
और किसी को आजादी या मतलब समझ आ जाए या समझा दे।
कितनी कीमती है ये आजादी इसकी कीमत समझ जाए या समझा दे।
राजनीति का खेल है तो रोज ही खेला जाएगा।
जब घुटन होगी ,जनता द्वारा राजा बाहर किया जाएगा।
परीक्षा तो घुटन की होनी है बस।
ये सचमुच है भी या नही है?
आदमी तो कल भी मजे में था आज भी मजे में है।
देखना ये है" तुम घुटन में हो" ये एहसास कब होता कौन दिलाता है?
हारी हुई जनता को कौन जगाता है?
असली मुद्दे कौन बताता है ?
लोकतंत्र को बहुत से पहलू तुमको हमको समझाता है।
जिंदा तो इसे रहना ही है बस देखते जाओ गद्दी कौन बचाता है?
ये पब्लिक है प्यारे ये सब जानती है।
पढ़ती भले आजकल व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से है।
मगर अपना फायदा खूब पहचानती है।
फिर भी एक शौर सुनाई दे रहा है"लोकतंत्र खतरे में है"।
शायद कुछ चेतवानी है?
मगर जरा रुको भाई अभी मैं सो रहा हूं।
नींद में भी भला कोई लोकतंत्र जगाता है।
उठने तो दो फिर इस मेहनत से मिली आजादी का मतलब समझाता हूं।
कल तुझे देखा आज इसे देख रहा हूं तोलना मुझे भी है आता है।
ये न सोचो जनता सो रही है मैं हूं लोकतंत्र का असली जमाता।
मुझे पूजने हर कोई मेरे दर है आता।
फिर भी आजकल..
आज का लोकतंत्र कुछ खास हो गया है।
लोगों का समझने का अंदाज भी बदल गया है।
जैसे भैंस के आगे बीन बजाना हो गया है।
धन्यवाद।
जी हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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