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कभी कभी याद आ जाती है कुछ भूली बिसरी सी यादें।
और मंद मंद मुस्कुरा जाती है ये भूली बिसरी यादें।
न जाने कितनी उम्मीदों से भरी थी ये भूली बिसरी यादें।
वक्त गुजर गया उम्मीद गुजर गई बस रही तो ये भूली बिसरी यादें।
हर दौर में कुछ चमन खिले कुछ गुल बने।
वक्त गुजरा तब्दील हुई कुछ भूली बिसरी यादें।
कुछ एहसास जो जिए थे इन सांस के साथ।
गुजरे वक्त ने बना दिया इन्हे कुछ भूली बिसरी यादें।
वक्त की स्याही से लिखे कुछ पल सहेजे थे।
समय दौड़ता गया रह गई कुछ भूली बिसरी यादें।
कुछ रिश्ते बने कुछ टूटे कुछ रूठे कुछ माने।
वक्त ने इन्हे भुला दिया बनाकर कुछ भूली बिसरी यादें।
कुछ नजरों के इशारे थे कुछ ख्वाब हमारे थे।
समय बदला रहने दिया तो बस कुछ भूली बिसरी यादें।
उड़ने का शौक बहुत था छलांगे भी मारी थी।
बोझिल कदमों ने दबा दिया रही ये मेरी भूली बिसरी यादें।
मिलने और बिछड़ने के गम बहुत बार हुए।
वक्त की मलहम ने बना दिए इसे मेरी भूली बिसरी यादें।
बहुत से खब्वाबों की कब्र गाह बनती रही ये गहराइयां।
वक्त की धूल ने इसे भी तब्दील दिया रही तो बस भूली बिसरी यादें।
आज फिर इस धूल को हटाने निकला हूं।
लो लौट आई एक बार फिर से आज ये भूली बिसरी यादें।
फिर आज कुछ गुनगुनाने को मन करता है।
क्योंकि ये पल जो जी रहा हूं ताजा हुई है ये कुछ भूली बिसरी यादें।
धन्यवाद।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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