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आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिसे दस्तार भी कहते हैं) बाँधी जाती है। क्योंकि पगड़ी इस क्षेत्र के समाज में इज़्जत का प्रतीक है, इसलिए इस रस्म से दर्शाया जाता है। परिवार के मान- सम्मान और कल्याण की जिम्मेदारी अब इस पुरुष के कन्धों पर है। साथ ही जो लोग पगड़ी पहनाते हैं, वे आश्वासन देते हैं कि भले ही घर के सबसे मह्त्वपूर्ण व्यक्ति का सहारा घर से छूट गया हो, अब इस घर के दुःख में, आवश्यकता में हम लोग साथ खड़े होंगे। इससे घर के जिम्मेदार व्यक्ति को खोने का शोक कम होता है। रस्म पगड़ी का संस्कार या तो अन्तिम संस्कार के तीसरे, चौथे दिन या फिर तेहरवीं को आयोजित किया जाता है। वैसे समयाभाव के कारण रस्म पगड़ी से पूर्व घर में तर्पण यज्ञादि का क्रम भी पूरा कर लेना चाहिए। पुरातन शास्त्रों में भी तीसरे- चौथे दिन आशौच शुद्धि हो जाती है। आने- जाने वाले परिजनों- परिवारीजनों को भी इस सामाजिक बन्धन से मुक्ति मिल जाती है। समय और परिस्थिति के अनुसार भी यही अनुकूल रहता है।
इसके यज्ञ- कर्मकाण्ड प्रकरण में दिये गये मन्त्रों का उपयोग करा जाता है।
मङ्गलाचरण, षट्कर्म, पृथ्वीपूजन, तिलक, कलावा, कलश व दीपपूजन, गुरु- गायत्री का आवाहन एवं स्वस्तिवाचन करें-
यम आवाहन-
ॐ सुगन्नुपन्थां प्रदिशन्नऽएहि ज्योतिष्मध्येह्यजरन्नऽआयुः।
अपैतु मृत्युममृतं मऽआगाद् वैवस्वतो नोऽ अभयं कृणोतु।
ॐ यमाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
पितृ आवाहन- (दिवङ्गत आत्मा का चित्र)
ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः
पिता महेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः
प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः अक्षन्न पितरो मीमदन्तपितरो
तीतृपन्त पितरः पितरः सुन्धध्वम्। ॐ पितृभ्यो नमः॥
सर्वदेव नमस्कारः, पञ्चोपचार / षोडशोपचारपूजनम्, स्वस्तिवाचनम् के। बाद सामूहिक गायत्री मन्त्र का पाठ (१२ या २४ बार) कर इस रस्म को पूरा किया जाता है।फिर भोज के साथ सब विदा लेते है।
मगर आज कल समय के अभाव में बहुत कुछ सिमट गया है।रस्म पगड़ी से पहले श्रद्धांजलि सभा होती है।दोस्त मित्र सखा सहेलियां रिश्तेदार ज्ञानसागर व्यक्तित्व और ब्राह्मणगण अपने शब्दों से दिवगंत आत्मा को विदा कर परिवार की व्याख्या पगड़ी पहनने वाले के लिये होती है।हमारे जीवन मे एक महिला कितना बड़ा स्थान रखती है?ये माँ बहन बीवी दोस्त कितने रूपों में हमारे आस पास हमेशा बनी रहती है।आज भी इसी पे शिक्षा हो रही थी।बच्चे को विधवा माँ की देखभाल के लिए समझाया जा रहा था।एक घर मे और महिला है।दिवंगत की माता और पगड़ी धारण करने वाले की दादी।हम सारा ज्ञान एक जगह पे सिमटा देते है।बहुत से व्याख्यानों से कहीं की बात कहीं मार देते है।परिवार को समाज ही एक जगह सिमटा देता है।आज इसी का दर्शन हुआ।ज्ञान और संवाद वाक्य सिमट गया है।परिवार का मुखिया बहुत बजुर्गों के अभ्यासित अनुभव भरे संदेश से वंचित हो गया है।पगड़ी धारणा अब महज एक रस्म रह गयी है।आप संवेदनशील है तो सही है अन्यथा पगड़ी सिर्फ सिर पे ही रखी है वो भी तात्कालिक।संदेश ये है के हम अब परिवार और समाजिक व्याख्या में फेल से हुए लगते है।सांत्वना ने दायरा छोटे होते परिवारों की तरह सिमटा लिया है। अगर परिवार में बड़ा भाई है और कई छोटे तो पिता की पूरी जिम्मेवारी का निर्वाह तह उम्र रिश्तों तो सहेजते उन्हें सींचतें हुए सामाजिक मान मर्यादाओं के साथ किया जाता था।जिसपे पगड़ी बंधती थी वो ही मां और घर के सारे बजुर्ग और छोटों के लिये हर रिश्ते का मान होता था।आज बहुत कुछ याद आया और अपनी पगड़ी के नौं साल एक पल में जी लिए।आज एक दिवंगत को श्रद्धांजलि भी दी अपने को कुछ पगड़ी की याद भी दिलाई और जहां भूल हुई उसे सुधार भी लिया।आखिर मेरा अपना भी एक संसार है जिसमे रंग सब रिश्तों ने भरे है और मुझे पूरा भावनात्मक आश्रय दिया है।मैं उन सब को नतमस्तक भी हूँ और अपने हर कृत्य के लिए जिम्मेवार भी हूँ।पगड़ी बांधी है तो हर रिश्ते से पूरी तरह निभाई जायेगी महज रस्म अदायगी नही रहेगी।याद के आंसू कमबख्त कभी भी कहा से भी आ टपकते है।कामना ये रहेगी ये रस्म अदायगी न हो बस।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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सुंदर ज्ञान का रिमाइंडर
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