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साहेब: निर्मले आज मै बहुत खुश हूँ!
निर्मला: जी साहेब।
साहेब :निर्मले आज मैं बहुत खुश हूँ!
निर्मला :जी साहेब।
साहेब: पूछो गी नही क्यों?
निर्मला:क्यों साहेब?
साहेब: आज मैंने एक तीर से कई मार डाले।
निर्मला: किसे मार आये साहेब?
साहेब: ये न पूछो निर्मले।
निर्मला: बता दो न साहेब वकील भी तो गुनाह के हिसाब से करना होगा।
साहेब: निर्मले तुम समझी नही?
निर्मला: लगता तो ऐसा ही है साहेब। आप को कोन समझ पाया।मेरी क्या हैसियत।
साहेब: नही निर्मले ऐसी बात नही।आओ बैठो बताता हूँ।
निर्मला : शाह गडु में से किसी को बुलाऊँ?
साहेब: अरे न न उनको काम पे भेजा है।
निर्मला: सुनाओ साहेब।
साहेब: तरकश में एक ही तीर था।
निर्मला: हैं? वो कैसे?
साहेब: सुनती जाओ।
निर्मला: जी साहेब।
साहेब: तीर धनुष पे चढ़ाया। धनुष माथे पे लगाया।इसे ब्रह्मास्त्र बनाया।और चलाया।
निर्मला: साहेब कहाँ चला आये? मुझे तो पता नही चला।
साहेब: तुम रही न वही....
निर्मला: क्या साहेब?
साहेब: छोड़ो जाने दो।वित्त का धित कर चुकी हो इसी के चलते।सुनो अब।
निर्मला: जी जी साहेब बोलते जाईये।कहानी सुनाते जाईये।
साहेब: कहानी? कोन सी?
निर्मला: कुछ नही साहेब ब्रह्मास्त्र चलाइये।
साहेब: तीर छोड़ा ठाकरे को मोड़ा तोड़ा..फंडनू को फंडू बना सीधा सिधू को फोड़ा।
निर्मला : जे बात साहेब की जय साहेब की जय।
साहेब: अरे सुनो आगे बजेंगे बहुत बाजे।
निर्मला: सर आप तो बस 56 छोड़ो 156 हो गए हों।
साहेब: अरे इतनी तारीफ न करो!हमे भी शर्म आती है।
निर्मला : आप भी न साहेब..
साहेब: तीर चलते सिधू को फोड़ते ठाकरे को ठोकते सीधा गुगु के मुख से अयोध्या में गिरा।
निर्मला : है? रास्ते मे अमरिंदर नही मिला क्या तीर को?
साहेब: पगली बगल में बैठ के लंगर छक रहा था बाबे की कृपा से बच गया।
निर्मला: है? अच्छा..जलानी..उबासी?
साहेब: ब्रह्मास्त्र है पगली?
निर्मला: समझी नही?
साहेब: समझ जाती तो वित्त का धित नही करती।
निर्मला: कुछ समझी नही?
साहेब: देख निर्मले आज मैं बहुत खुश हूं रंग में भंग न कर।
निर्मला: जी साहेब।चाय लाऊं?
साहेब: न आज तो जश्न मनेगा!
निर्मला: प्रश्न पूछों साहेब?
साहेब: पूछो।
निर्मला:आप मिसाइल के जमाने मे भी तीर चलाते हो?
समझ नहीं आया साहेब?
साहेब: निर्मले अब तुम निकलो।।।निकलो बस..
निर्मला: क्या हुआ साहेब?
साहेब: धित..अब जाती हो या एस पी जी बुलाऊँ?
निर्मला: चाय लाती हूँ साहेब।
साहेब: मूड खराब न करो निर्मले अब। चलती बनो।
निर्मला:जी साहेब।जब दुबारा खुश हो तो फिर बुला लेना।
साहेब: इसे लेके जाओ भाई कोई?
निर्मला: गाड़ी है मेरे पास ...चली जाती हूँ।
साहेब: सारा मूड खराब कर दिया।
निर्मला : कुछ बोला साहेब।
साहेब: हाँ?
निर्मला: क्या?
साहेब: प्याज़....प्याज़ ...समझी कुछ।
निर्मला: जी....
जब से निर्मला प्याज़ और तीर का संबंध ढूंढ रही है।आप को मिला हो तो लिखिये।
जय हिंद।
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जय श्री राम।
शुभ दिवस।
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हाहाहा।। बढ़िया है।।
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