आज सुबह हर बार की तरह एक यात्रा फिर शुरू हुई। टैक्सी बुलाई गई। आज मौसम बहुत हि सुहाना हुआ जाता था। सारी रात बारिश होती रही बादल गरजते रहे बिजलियाँ गिरती रही और धरा शीतलता ग्रहण करती रही। सो रिमझिम बरसात में यात्रा का आरम्भ हुआ। जैसे ही टैक्सी से पास पहुंचा ड्राइवर लपक के बाहर आया और बड़ी ही तमीज़ से दरवाज़ा खोला और बैठने के लिए आग्रह किया। जवान लड़का था। अच्छा लगा जिस तरीके से उसने स्वागत किया। गाड़ी सरपट दौड़ पड़ी। हमने भी भाई से पूछ लिया कहाँ से इतना आदर सत्कार सीखा। जबाब था साहब आप सब से और गलतियां कर के सीखा। मेरी उत्सुकता बाद गयी।मैन कहा कैसे। कहा साहब हम पड़े लिखे नही है तो जो सीखा देख देख सीखा। हमने कहा कहाँ से हो। बोला लखनऊ से। फोर भी अनपढ़। कहा हैं बोला सरकारी विद्यालय में शुरू की थी। मास्टर को पढ़ाई से ज्यादा मारना पसंद था तो मारने से बुद्धि मजबूत तो नही होती पर हैं शरीर जरूर मजबूत हो जाता है। कुछ धक्का लगा। कहा स्कूल छोड़ दिये। छोटी उम्र में घर की व्यवस्था और जरूरतों के लिए माँ बाप ने भी पढ़ने में न जोर देकर कमाई पे लगा दिया। पर हम खुश हैं। कमा रहे है।मोटर साईकल की छह किश्त बाकी है बस। बड़ा खुशमिजाज लड़का था। हमने कहा काम में ही ऐसे हो या हमेशा ही खुश रहते हो। कहने लगा हम किसी से झगड़ा नही करते हमेशा सच बोलते है और कभी धोका नही देते। मेरे सारे आश्चर्य मी सामने थे। मुश्किल हालात में एक खूबसूरत हृदय रूपी फूल पनप है। मैंने कहा भी दुनिया तो बहुत बेईमान धोकेबाज़ फरेबी है। बाद बढ़िया उत्तर मिला। कहा जैसा भी अपने कर्मों का बिल खुसज हो के फाड़ लो साहब पास तो उसके पास हो होने जाना है। पेमेंट वहीं से होगी। उसे सब पता है। ये साई आश्चारियों की हद थी। हमने पूछा तुम्हारी उम्र क्या है । बोला 22 साल। पूछा सब कहाँ से सीखा। फिर उत्तर वही आप सब लोगों से।कहने लगा हमे ये ओला की डिवाइस भी चलानी ढंग से नही आती थी। गलतियों से पैसे भी कटे । फिर एक दिन एक ग्राहक मुझे नेविगेशन समझा गया जो मुझे पहले नही पता थी। मैंने कहाँ सच्चे लोगो को बहुत मुसीबते आयी है। कहा हैं आती है पर अच्छा भी होता रहता है। मैंने कहा कैसे। कहने लगा देखों साहब में छोटा हाथी चलाता था। माल ढोता था। शरीर तक जाता था। डांट खाता था। ड्रावेरी सीखी। पहले कमर्शियल गाड़ी चलाता था और पसीने निकलता था। समय बदला मेहनत रंग लाई गाड़ी चलाने में सिद्धस्त हो गया। आज मैं ऐ सी गाड़ी में चल रहा हूँ। पहले से ज्यादा पैसे ईमानदारी से कमा रहा हूँ। एक ही आदत है रोज़ शाम को दर जाने से पहले एक बियर कैनएटा हूँ।110 रुपया का रोज़ का खर्चा बाकी सारी तनख्वा माँ को घर के लिए द्व देता हूँ। मालिक रोज़ का खर्चा जो देता है मेरा अपना काम हो जाता है। जरूरते कम है तो कभी कभी दोस्त को भी चाय पिला देते है। मजेदार और प्रेरणावादी व्यक्तित्व लिये एक सख्त जिंदगी में सकूं से जी रहा था। तो हमने सोचा क्या इसे समझाया जाये। तो उसकी बियर के कैन पे ध्यान गया । मैन बोला अपनी गाड़ी डाल लो। बोला साहब पैसे कहाँ से आयेंगे। मैने बोला बियर कैन से। हंसने लगा। मेजन कहा जोड़ो कितने पैसे खर्च करते हो। पाता चला हर माह कम से कम 3000 रुपए। 36000 रुपए साल के। हसने लगा। कहा साहब कह तो सही रहे हो। सोचा ही नही था। ममैने कहा आदत भी छूट जाएगी और एक साल में गाड़ी की डाउन पेमेंट देने लायक पैसे भी बन जाएंगे। भाई को कुछ हुआ कहा साहब मोटर साईकल तो अब काम की नही लगती कुयोंकी वक़्त ही नही मिलता। उसे भी बेच के गाड़ी लायक पैसे तो हो ही जायेंगे। 2 से 4 पहिये पे आ जाऊंगा। आप की बात समझ आ गयी। कितना कुछ सीधा आसान है दुनिया में और नज़रिया आप का ज्ञान तेह करता है। जितना ज्ञान का भंडार उतनी सॉज को उड़ान और उतनी ही मुश्किल ज्ञानवान को समझाना है। चतुर अनपढ़ भी हो तो उससे पार पाना मुश्किल है। पर एक सच्चे मजबूत हृदय के अनपढ़ मालिक को शायद पड़ना कुछ आसान कुछ उससे एक साफ सुथरा ज्ञान लेना और देना संभव है। इंसान बहुत फितरती है पर हममें से बहुत लोग शायद बहुत सीधे भी है। और बहुत से सीधे बन के चपत की फिराक में भी रहते होंगे।तो ऐसे में एक पंजाबी कहावत याद आ जाती है " भोले द्व सोलह चंद्रे दे पंद्रह। तो मालको भोला लुट के भी फायदे में ही रहता है और अति चातुर चालक एक कदम पीछे ही रहेगा। मैन तो उस बाईस साल के जवान जीवन से जीवन की लड़ाई में उसके धीरे धीरे अनपढ़ होने के बावजूद सीखते हुए व्यक्तित्व को देखा। एक बेहतरी की तरफ बढ़ते कदम देखे। बातें 45 मिनट में बहुत हुई पर कुछ जो समझ आयी सो लिख दी। अपनी अपनी सब की कहानी है । सब को अपने हिसाब से ही लिखनी है। दर्शन आप को करने है । उन कहानियों का मकसद भी आप ने ढूंढना है। हर कहानी में जीवन का मकसद छुपा ही होता है। ढूंढते ढूंढते न जाने क्या कब हाथ लग जाये। तालाश जारी रहनी चहिये एक बेहतरी के लिये। पग निरंतर अग्रसर रहने चाहिये नई मंज़िलों की तलाश में।शायद कल उसकी भी कोई नई मंज़िल उसे बुला रही है। में एक मंजर हूँ जिसे देख कई निकल जाते है कुछ हमे देख हमे पढ़ा जाते है कुछ गाये बगाहे हमसे भी पड़ जाते है। गुण ज्ञान विज्ञान की खोज जारी है। आप भी जारी रखिये। हो सके तो हमे भी किसी मोड़ पे मिलये और एक सफा निन्दगी का और पढा दिजीये। जीवन किंडगर पे एक आभार हमसे भी लेते जाईये हम तो ज्ञान की भूख के भिखारी है।
🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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