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बहुत लोग जीवन में आते जाते रहते है। बहुतों के साथ हम चलने लगते है। कुछ उम्र भर साथ रहते है। कुछ दो कदम ही बस चलते है। बड़ी बिडम्बना है कभी जिनका साथ चाहते हैं वो छूट जाते है कभी जिनसे दूर भागते है वो सबसे लंबा साथ देते है। जीवन बहुत संभावनाओं से भरा पड़ा है। हमे इनका कभी ज्ञात नही होता। हम चलते चले जाते है और लोग जुड़ते। कोन कब कहाँ किस वक़्त मिलेगा ये किसी को पता नही। कोन क्यों कैसे किसलिये मिलेगा इसका कोई अंदाज़ा नही। बस एक बात पक्की है जो आप के संग चलेगा उसमे आप से मिलता जुलता कुछ तो होगा। जो आप को जोड़ के रखेगा। बचपन से बड़े हुए ।जब हम आंगन बाड़ी में पड़ते थे या यूं कहें आज के बच्चों की नर्सरी केजी क्लास हमारी पसंद न पसंद रिश्तों की वहां से ही शुरू हो गयी थी। में आंगनबाड़ी जाया करता था। मेरे बैठने की विशेष जगह तह थी। अपनी बोरी वही बिछाता था। एक दोस्त था।मिले उससे बरसों हुऐ यू कहें कोई तीस बरस। तीस बरस पहले भी केवल कुछ वक्त के लिए मिला था । उसके बीच भी शायद 9 साल का फासला था। उसके शहर या यूं कहें मेरे पुराने शहर एक शादी में जाना हुआ। तो सोचिये ख्याल किसका आया। उसका ख्याल आया।नाम था अरुण। मेरे बचपन का दोस्त। उससे मिलकर बहुत खुशी हुई थी। अब भी कभी कभी उसकी भूली बिसरी याद आ जाती है। बचपन का बिताया वक़्त। बचपन में साथ खेलना और शायद वो सब पल वैसे ही ताज़ा है जैसे हमने बिताये। और भी बहुत से बच्चे थे गली में मोहल्ले में पर दोस्ती उसी से हुई। हम अपने आप उनके करीब आ जाते है जिनसे हमारी आदतें आपस में मेल खा जाती है। बचपन अल्हड़ नादान होता है । सिर्फ साफ सुथरा। कोई कपट नही। अपने बचपन के बारे में शायद ये में कह सकता हूँ। बाकी सब का भी ऐसा होगा ये उम्मीद करता हूँ। जगह बदली लोग बदले कुछ नये दोस्त बने। स्कूल पहुंचे। एक बाल स्कूल छोड़ा दूसरे में आ गए।नए अपने कुछ मन के दोस्त बने। मनोज रमेश। अब फेस बुक ने लंबे समय के बाद फिर कहीं मिला दिया।हम लोग खूब साथ साथ खेलते थे। बेर खाते थे । मौसम भी आ रहा है। नमूने इकठ्ठे करते थे। लट्टू खेलते थे। कंचे खेलते थे।डब्बा आइस पईस खेलते थे। घर के दरवाज़े के सामने ईंट लगा कर टेबल टेनिस खेलते थे। जनष्टमी कि झांकी अपने अपने घर के आगे बनाते थे।दीवाली का घर। मेहंदी बनाते थे। मोमबत्ती बनाते थे। जामुन के पेड़ पे चड़ते थे। शहतूत पेड़ पे चड़ के तोड़ते थे। किराये की साईकल चलाते थे। किराये पे कॉमिक्स खरीद के पड़ते थे। बैट बॉल खेलते थे। दौड़ लगाते थे। लग्गे बना के पतंग लूटते थे। क्या दिन थे क्या दोस्त थे।क्या मंडली थी। मजा ही मजा था। क्लास में खास दोस्त भी था प्रदीप। प्यार से पांचू बुलाते थे। लास्ट बेंच बे बैठ के जोर जोर आए गाना गाते थे।'जिया हो जिया ओ जिया कुछ बोल दो दिल का पर्दा खोल दो'। स्कूल में क्लास में आगे बढे कुछ और दोस्त बने दिनेश ,प्रताप । फेस बुक ने फिर उनसे मिला दिया। दिल्ली से फरीदाबाद पहुंच गए।नेता जी बबलू अश्वनी फिर नए दौर में ले आये। बहुत आनंद रहा।मन के दोस्त बनते चले गए कारवां आगे बढ़ गया। कॉलेज पहुंच गए। नए दोस्त फिर साथ आ गए। समीर ,मनोज मनमोहन ,इकबाल बिल्लू , सोनू , यादवेंद्र। फिर एक नई शख्शियत ने भीतर ही भीतर जन्म ले लिया। बुद्धि कुछ परिपक्कव होने लगी। समझ बढ़ने लगी। कुछ मन के भीतर की सफाई कम हुई। बुद्धि निर्मल रही।कारवां बढ़ने लगा । समय बलवान है। कॉलेज खत्म। जिंदगी की भाग दौड़ शुरू। यादें भीतर सिमट गई। दोस्त कहीं अपने में व्यस्त हम अपने मैं। वक़्त ने दूरियाँ बड़ा दी। समय भागने लगा। नए सफर पे नए दोस्त आ मिले। संजय नीरज दीपक अमित कही धीरे धीरे अपने जैसे ही महसूस हुए। बातें बहुत हैं करें तो किंतनी। आज ऐसे ही सब का ख्याल आया। उनके नाम का ये बस छोटा सा नोट बनाया। संभाल के रख रहा हूँ। के यादें बड़ी है हसीन है।हम बहुत छोटे। आंकलन कर रहा था ये ही क्यों बने दोस्त और कोई क्यों नही। बस बात इतनी सी थी इन सब में शायद में अपने को देख सकता था और वो भी शायद मुझमे बिना हिचक झांक सकते थे। येही बचपन से बडे होने के सफर के करीब के साथी रहें है। इन्होंने ही सोच को बहुत हद तक एक दिशा दी है। एक उनके होने का एहसास कहीं दिल के कोने में जगा में रखा है। दोस्त वही बनते है जिनसे दिल से दिल मिलते है। जीवन मैं अपने जैसे कुछ दोस्त होने चाहिये जो साथ निभा सके आप के हर खुशी गम में बिना दिमाग लगाए शामिल हो सकें। इन सब में कुछ कुछ समय तक साथ थे और कुछ खास आज मेरे बिल्कुल पास हैं ही।आप भी कुछ ऐसे दोस्त जरूर बनाईए जो आप के पास केवल आप की वजह से हों। दोस्तों में शायद दिमाग कम दिल ज्यादा होता है। इसिलये शायद जुड़ाव अधिक होता है। अपने अब तक के सफर के सब साथियों को तहे दिल से शुक्रिया।फेहरिस्त लंबी है बहरहाल शुक्रिया सब कबूल कीजये।
धन्यवाद
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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