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बच्चे खेल और पार्क।

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बच्चे हमारे साथ साथ हमारे देश की धरोहर है।ये हमारा हमारे समाज का सुंदर भविष्य और उसकी कल्पना संजोय हुए है।इनसे ही हम अपना और अपने देश का बेहतरीन कल देखते है।इनका स्वस्थ शरीर और स्वस्थ बौद्धिक क्षमता देश के सकारत्मक विकास में सबसे महत्वपूर्ण है।जिसके लिए इसकी सांझी जिम्मेदारी हम सब की है।सरकार स्कूल घर ये सब इनके सतत विकास के लिये सुविधाएं मोहिया कराने के साधन है।जहां जहां ये तीनों अंग साथ मिल के काम करते है वहाँ विकास की धारा बह निकली है।विकसित देश इसकी कहानी कहते है। हमारे देश में खेल आज भी समाज को जागरूक करने में असफल रहे है।क्योंकि ये हमारे मनोरंजन का साधन मात्र है।और हम इन्हें किसी सिनेमा की तरह देखते है। अपने पे लागू करने के भावना से दूर।हमारे शहर बेतरतीब तरीके से विकसित हो गये है और हो रहे है। बच्चों के विकास के साधन कहीं भी देखने को नहीं मिलते। शहरी विकास मंत्रालय हर जगह है।शहर बसाता है।और कुछ आधारभूत सुविधाओं के ध्यान के बिना।हम छोटे थे।घर के आस पास पार्क खेलने की लिए मिलते थे।हमें खेलता देख बड़े बूढे खुश होते थे।जम कर वर्जिश और जम के खेलते थे।पार्क के सारे रूप देख के खुश होते थे।कही फूलों का कोना था।कुछ पेड़ हमने भी लगाये थे।उनको बड़ा होता देख खुशी होती थी।एक हिस्से में खेलते दौड़ लगाते थे।फुटबॉल क्रिकेट सब खेलते थे।एक कोने में बैडमिंटन भी था।एक पीढ़ी बचपन से आज जवान हो अधेड़ उम्र में आ गयी और हमारे समय की अधेड़ पीढ़ी आज बजुर्ग हो गयी।कुछ अजीब सी सोच लिये ये आज़ाद भारत के समय पैदा हुई पीढ़ी है।काम और कमाई के इलावा ज्यादा जान नही पाये।और धीरे धीरे पार्कों पे बुढ़ापे में अधिकार जमा लिए।कुछ बुद्धिजीवी इन्हें सैर गाह और सुंदर फुलवारी में बदलने को अजीब दकियानूसी सोच का शिकार हो गए है।अपनी आने वाली पीढ़ियों को ख़िला पिला पढा के ही अपना फर्ज पूरा समझते है। ज्यादतर शहरी बच्चे अजीब सा डील डोल लिए बड़े हो रहे है।ये हमारे चारों तरफ हों रहा है।खेल कहीं पीछे छूट गया है।पार्क बूढों की ताश पत्ती का अड्डा बना हुआ है।बच्चे खेलने कहाँ जायें बड़ा प्रश्न बनता जा रहा है।सड़क गाड़ियों के आवाजाही से बहुत भर गई है।सरकारों से खुले मैदान बड़े बड़े बिज़नेस घरानों ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पे हथिया ली है।खेल स्टेडियम दूर दूर हैं।घर के आस पास जो पार्क है वो बड़ों बजुर्गों ने अपनी बपौती समझ सैरगाह बना ली है।और आये बगाहे बच्चों को खेलने से टोकते नज़र आते है।बच्चे बेचारे कभी डांट खा के भाग जाते है तो कभी सुना के भी भागते है।जो इतनी ऊर्जा बच्चों के भीतर पनप रही है और जो मित्रों के साथ खेल से रिश्ते बनाते सही राह पकड़ती है वो घर में टेलीविज़न देखने में उलझती जा रही हैं।छोटी उम्र में बच्चे गम्भीर बीमारियों का शिकार हो रहे है। शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता कम हो रही है। भावी पीढ़ी किताबी और बस पैसा मशीन बनने को है ।और जमीन पे कब्जा जामते स्कूल और हस्पताल इन मशीनों को दुह कर अपनी जेब भरने को।ये देश का भविष्य कैसे लिखेंगे कोन कैसे इन्हें समझाये?पढ़ाई के साथ खेल आप को सारी पढ़ाई के  मानसिक दबाब से निजात दिलाते है।स्वस्थ शरीर ,सद विचार, स्वस्थ दिमाग एक बेहतर समाज के निर्माण की पूरी संभावनाएं लिए है।पार्कों को केवल सैरगाह न बना के खेल के लिए भी पूरा इस्तेमाल बच्चे कर सकें इसकी व्यवस्था समाज की सांझी जिम्मेदारी है।इसे आप सब मिल के निभायें।जहां बच्चों को खेले जाने से बेवजह रोका जाता हो तो आप हस्ताक्षेप करें।उनको उनके बचपन से जवानी की दहलीज तक स्वस्थ ले कर जाएं।ये समस्याएँ शहरों में विकराल रूप ले रही है।और इसकी आहट से हम अनभिज्ञ। और देर करेंगे तो बहुत बड़ा वर्ग स्वास्थ्य सेवाओं के लाभ के लिये ही कमायेगा।गोर कीजियेगा अपनी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करने का प्रयत्न।बहुत समय बाद आज मुझे कुछ क्रोध आया।अपने से ही उसके लिए क्षमा याचक हूँ। बच्चों से उनका बचपन न छीना जाये खूब जी भर खेलने दिया जाये। ये स्वस्थ विकास का उत्तम साधन है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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