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ज्योति कलश छलके।

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मैं एक गाने पे बहुत बार लिखना चाहता हूँऔर हर बार फैल हो जाता हूँ। सोचा आज लिख ही दूं।ये रह रह कर मेरे मन में गूंजता रहता है।पंडित नरेन्द्र शर्मा ने शब्दो को इतनी खूबसूरती से पिरोया है के आंख बंद कर गुनगुनाने का आनंद ही अलग है।में ग्रामीण जीवन से बहुत प्रभवित रहा हूँ।एक मेरी पैदाइश और दूसरा कुछ बेहद करीब से देखा जीवन वहां की खुली खुली धरती शुद्ध शीतल हवा और वहां कि सुंदरता मुझे आकर्षित करती रही है।वहां की सुबह का आनंद बड़ा सुख दायी है।वहाँ की छोटी छोटी चीज़े बातें मेरे मन में सदा समाई रही है।चूल्हा लीपना घर में रोज गोबर मिट्टी से लिपाई।उसकी महक ।चूल्हे पे बनती गरम गरम मकई की रोटी।मखन के साथ लस्सी ग्लास।हरी मिर्च अदरक की चटनी।ये सब नहाने और पूजा के बाद।और नहा के मन्दिर जा के जल चढ़ाना ।भगवान के सुंदर प्राकृतिक निवास का आनन्द लेना। कनेर के फूलों से भगवान का श्रृंगार।  ये मेरे गाँव और जन्मस्थान का मेरे अंदर जीता एहसास है।उस मिट्टी की भीनी भीनी सुबह की खुशबू मुझे बहुत भाती है।फिर जब सूरज निकलने को होता है और पंछी चहचाहट करते झुंडों में उड़ते है तो उन्हें निहारने का आनंद लेना बहुत सुखदायी एहसास है। और ये में आज भी निहार लेता हूँ।गगन पे सूर्य देव के प्रागट्य के साथ बदलती लालिमा का आनंद लेता हूँ।फिर जीवन में कुछ बदलाव हुए और हम कुछ बड़े हुए।पहली पहली बार टी वी देखा।उसपे देखा चित्रहार   । एक दिन एक गाना बजा।             
ज्योति कलश छलके - ४
हुए गुलाबी, लाल सुनहरे रंग दल बादल के ज्योति कलश छलके

घर आंगन वन उपवन उपवन करती ज्योति अमृत के सींचन मंगल घट ढल के - २ ज्योति कलश छलके

पात पात बिरवा हरियाला धरती का मुख हुआ उजाला सच सपने कल के - २ ज्योति कलश छलके

ऊषा ने आँचल फैलाया फैली सुख की शीतल छाया नीचे आँचल के - २ ज्योति कलश छलके

ज्योति यशोदा धरती मैय्या नील गगन गोपाल कन्हैय्या श्यामल छवि झलके - २ ज्योति कलश छलके

अम्बर कुमकुम कण बरसाये फूल पँखुड़ियों पर मुस्काये बिन्दु तुहिन जल के - २ ज्योति कलश छलके

ये गाना पहली बार जब सुना तो सीधा हृदय में उतर गया। इस गाने के शब्द मेरे भीतर हमेशा गूंजते रहते है।जब भी सुबह जल्दी उठ अपने नित्य कर्म पे निवृत हो अपनी दिनचर्या शुरू करता हूँ तो भोर के इस रंग को पूरा जीत हूँ।जो नही हो सकता उसे अपनी कल्पना में संजोय वक़्त पे छोड़ देता हूँ।बहुत से संदेश देता हमारी मन की कोमलतां को छूता और प्राकृतिक चक्र से रूबरू होता ये मुझे आनंदित कर देता है।में इसे पढ़ के गुन गुना के और अपने फ़ोन वीडियो के माध्यम से इसे देख के जब भी मौका लगता है प्रसन्तता का भागी होता हूँ। ये मेरे जीवन शैली के बेहद करीव है।आप भी शोक फरमाएं।वक़्त लगे तो सुबह के इस एहसास को जरूर जियें।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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