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समाज को जरूरत है!

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अज्ञानता अनभिज्ञता असिहष्णुता अन्धकीश्वास वाचालता सब मिल के किसी भी समाज में एक बहुत नकारत्मक स्तिथि और भाव पैदा करते है।इसे चेहरे से नही पढ़ा  जा सकता।शब्दो के होते इस्तेमाल से बस अंदाजा लगाया जा सकता है।उन्माद के वक़्त इसे साक्षात देखा जा सकता है।ये सब चीजों का जो मिश्रण है वो एक ससुप्त विष को समय के साथ जन्म देता है। शाब्दिक ज्ञान शायद हमे स्कूल की देन हो पर व्यवहारिक ज्ञान हमे घर से लेकर समाज के सब हिस्सों से लेना पड़ता है।फिर अपनी जमीन के इतिहास को सही रूप में जानना अत्यंत आवयश्क है।अज्ञानता किसी भी तरह के विध्वंस का कारण हो सकती है। सबसे पहला बताया मिश्रण जो वक़्त के साथ जहर रूप ले लेता है उसमे शालीनता का ह्रास होता है।उग्रता भीतर ही भीतर शालीनता को निगल लेती है।एक अजीब सी खूंखार अवस्था मन के भीतर घर कर लेती है।दूसरे की आप से असहमति आप के भीतर पल रहे विष को जागृत करती है। इस अज्ञानता वश जन्मे  विष के द्वारा वैमनस्य समाज के पतन का सबसे बड़ा कारण है। ये वैमनस्य इंसानों के बीच विद्वेष फैलाता है।ये विद्वेष विध्वंस विनाश का कारण बनता है।समाज उत्कृष्ट बौर समृद्ध सकारात्मक और समृद्ध सोच से होता है।समाज में प्रेम उसके सहने की क्षमता से जुड़ा है।जो समाज जितना सहष्णुता और विचारशीलता लिए होगा उसमे सहमति और सुनने की गुंजाइश उतनी ही अधिक होगी।एक समरसता का संचार सदा बने रहना इसका बेहतरीन उधाहरण है।जो समाज ज्ञानशीलता के साथ परिपक्कव होता है और जिसमे उभरती पीढ़ी में आज के समाज के प्रति विश्वास पढ़ाया और जगाया  जाता है वो सदैव प्रगतिशील रहता है।हमारी धरती कबिलों कुनबों के राह तेह करती आज बहुत से देशों के रूप में विकसित कर ली गयी है।और ये देश कुछ खास पहचान की मंशा लिये अपने अपने उथान का कार्य करते है।जो देश सामाजिक समरसता को समझ गए है वो आज बहुत विकसित हो गये है।इस विकास और उसके क्रम को एक ही चीज बचा के रख सकती है वो है समाज की उसमे पल रहे सभी विचारों के प्रति आदर सम्मान और नजरिये की कद्र।और ये कद्र एक संवाद स्थापित रखती है।जहां संवाद की जगह है वहां सहमति असहमति के निराकरण के साधन व्यस्थाएँ अपने आप पनप जाती है।समाज अपने विष को खुद ही खत्म करने की क्षमता रखता है।और संवाद ज्ञान का दीपक जलाये रखता है।उसकी रोशनी में विरोध को सुना समझा जाता है।निराकरण होता है।भीतर पलने वाले अज्ञानता अनभिज्ञता असहनष्णुता अविश्वास अंधविश्वास रूपी विष का नाश होता रहता है।विष पनपाता रहेगा जागृत समृद्ध समाज उसको मारता रहेगा।येही शायद आज हमारी सबसे बड़ी जरूरत है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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