Skip to main content

दंगा।

🌹🙏🏼🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊✍🏼🌹
दंगा फसाद उपद्रव भंय विद्वेष घृणा सांप्रदायिकता हिंसा बर्बरता आज कल कुछ आम से शब्द नही हो गए है क्या?जो रोज़ समाचार चैनलों पर देखे सुने बहस का हिस्सा बनते जा रहे है।समाज कुछ तो बीमार हो रहा है।ये बड़ा बुरा विकार है।मुझे अपने जीवन में एक बार इसे बेहद करीब से देखने और उसके भंय के एहसास से गुजरने का आंखों से देखने का एहसास है।1984 के दंगे।हम दिल्ली के श्री निवास पुरी कॉलोनी में रहते थे।हमारे प्रधानमंत्री की हत्या हुई।एक वर्ग आंदोलित हो गया।हमारे घर प्रधानमंत्री जी के लिए प्रार्थना मन ही मन की जाती थी।एक प्यार था।उनके जाने से अजीब से दुख का एहसास हो रहा था।उस समय पंजाब आंतकवाद भी चरम को छू के निकला था।समाज के दो वर्गों में खिचाव लंबे समय से पनप रहा था।मगर दबा रहता था।कुछ राजनीतिक इच्छा शक्ति के चलते कुछ राष्ट्रभक्ति के एहसास के चलते।हम छोटे थे।बिस्कुट खाने का शौक था।इतने पैसे भी नही हर बार होते थे कि बिस्कुट के पैकेट खरीदे जाएं।कॉलोनी में एक गुरुद्वारा था।वहीं सरदार जी की बिस्कुट फैक्ट्री थी।रोज शाम को बिस्कुट पैकिंग के दौरान जो टूटे बिस्कुट बचते थे उन्हें सरदार जी बहुत कम पैसों में बच्चों को बेचते थे।10 पैसे 25 पैसे के बहुत सारे बिस्कुट मिल जाते थे। बच्चे शा्म को लाइन लगा के बिस्कुट लेते थे।हर बार नंबर आता भी नही था।कभी कभी आप के इलावा और कोई ज्यादा बच्चे होते भी नही थे।तो खूब सारे बिस्कुट मिल जाते थे।ऐसी लाटरी भी कभी कभी लगती थी।कोकोनट बिस्कुट ऑरेंज बिस्कुट और भी कई सारे मिक्स चूरा बिस्कुट मिला करते थे।बड़ा मजा आता था। सरदार जी उम्र दराज थे। शायद बच्चों से प्यार करते थे।बिस्कुट पहले बच्चों को बांटते थे अगर बच्चों को बांटने के बाद भी बच जाए तो बड़ों को भी दे देते थे।बड़ा मजा आता था।फिर वो मनहूस दिन भी आया।जब एक उन्माद हुआ एक पलता सामाजिक विकार खूनी खेल में बदल गया।हमे घर में बंद और नज़रों के सामने रखा गया।रेडियो पे कान लगे रहते थे।दिल्ली जलने लगी।डर फैलने लगा।हर वक़्त कहाँ आग लगा दी गयी कहाँ टायर डाल के जला दिया गया बस येही खबर।कॉलोनी में पहरे लगने लगे।अफवाहें उड़ने लगी।पानी की टंकी में कोई जहर डाल गया।नलके का पानी पीने में डर पैदा हो गया।अजीब सा डर का मौहाल।सब तरफ बन्द।पुलिस की गाड़ियां गश्त करने लगी।फ्लैग मार्च पहली बार देखा। फिर वो मनहूस घड़ी भी आ गयी जब दंगा हमारी कॉलोनी को भी लील गया।गुरुद्वारे में आगजनी और हत्या हो गयी।भंयकर तांडव हुआ डर का साया छा गया।एक दो दिन बाद शांति हुई। मन गुरुद्वारे पे जा टिका।सोचिये बच्चा बिस्कुट की फैक्ट्री देखना चाह रहा था।और पहुंच भी गया।दूर दूर तक बिस्कुट फैले थे।फैक्ट्री जला दी गयी थी।तलवारों ने रिश्तों को तार तार कर दिया था।दूर दूर तक सब जगह तोड़ फोड़ आगजनी।घर में कभी दिन में कभी रात में जोर से भीड़ की आवाज़ें आती थी।वो भीड़ किंतनी भयावह थी इसका अंदाज़ा उस मौत और आगजनी को देखकर हुआ।धुंए का गुब्बार और जलते सामाजिक ताने बाने।कुछ समझ नही आया।डरते तो माँ के आगोश में समा जाते । सारा डर माँ ले लेती हम महफूज़ हो जाते। शायद वो सबसे बड़ा दंगा था हजारों के घर के चिराग बुझ गये।आंखों से भीड़ को भागते देखा।हल्ला सुना।दहशत देखी।भीड़ का इंसाफ देखा।पर समझ कुछ भी नही आया।आज बेठे तो समाचार कुछ वैसा ही माहौल पेश करने लगे।भयानक सा माहौल।क्या है ये सब? ये सबसे खतरनाक सामाजिक विकार है जो हित साधने के लिये लंबे समय तक बोया और पनपाया जाता है।उसे भीतर ही भीतर पका के विष बना दिया जाता है।और जहां मौका लगा इस विष को उगल कर भीड़ में बोए बीजों की फसल काट ली जाती है।खाली घूमते हमारे जवान दिमाग जो पूरे शैतान बनने में मात्र एक सेकंड लगाते है इसका पहला शिकार बन जाते है। ये विष जब  धार्मिक रंग ले लेता है तो सामाजिक उन्माद उतपन्न करता है। भीड़ खुद ब खुद शाषन प्रशासन की जगह लेने की कोशिश करती है।सबको न्याय तुरन्त करना होता है।जिसकी भीड़ ताक़त बड़ी उसकी ही अदालत।कोई वकील नही।फैसला तुरन्त।कुछ अपनी भड़ास भी निकाल लेते है।कुछ लूट पाट की मानसिकता के शिकार होते है लूटमार कर डालते है।कुछ  हर वक़्त खून देखते है।खून की होली खेलते है।सारे ही सरसरी तौर से देखा जाये तो बहुत खाली वक़्त लिए होते है।विक्षप्त मानसिकता के शिकार।और मौका मिलते ही भड़ास निकलने लगती है।एक उन्माद दंगे में बदलने लगता है।दंगा मौत के खेल में। ज्यादतर इसमे कट्टरता और अज्ञानता के शिकार लोग ही शामिल होते है।कब्जे और  वर्चस्व की चाह इस भीड़ को चलाने लगती है।लाशें बिछती है।और इंसानी रिश्तों को तार तार कर दिया जाता है। येही दंगा और उसकी फितरत है।इसमें फायदा किसका? ये प्रश्न आप पे छोड़ा।एक प्रण तो कर ही सकते है हमसब की एक सभ्य समाज में रहते हुए हम कभी भी ऐसी भीड़ का हिस्सा नही बनेंगे और भीड़ बनने लगे तो उसे रोकेंगे जरूर और  इंसान ही रहेंगे बस। ये धरती कभी किसी की नही होती पर हम आज यहां बाशिंदे है जरूर।
जय हिंद।
****🙏🏼****✍🏼
शुभ रात्रि।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

Comments

Popular posts from this blog

रस्म पगड़ी।

🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक  समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस

भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया का वर्णन करता है। ये  सरकार की वित्तीय प्रणाली का महत्वपूर्ण अंग है।हमारे संघ प्रमुख हमारे माननीय राष्ट्रपति इस हर वर्ष संसद के पटल पर रखवाते है।प्रस्तुति।बहस और निवारण के साथ पास किया जाता है।चलो जरा विस्तार से जाने। यहां अनुच्छेद 112. वार्षिक वित्तीय विवरण--(1) राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में संसद के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित  प्राप्ति यों और व्यय  का विवरण रखवाएगा जिसे इस भाग में “वार्षिक  वित्तीय विवरण”कहा गया है । (2) वार्षिक  वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्राक्कलनों में-- (क) इस संविधान में भारत की संचित निधि पर  भारित व्यय के रूप में वार्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित   राशियां, और (ख) भारत की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थाफित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां, पृथक –पृथक दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा   । (3) निम्नलिखित व्यय भारत की संचित निधि पर भार

दीपावली की शुभकामनाएं २०२३।

🌹🙏🏿🔥❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🔥🌹🙏🏿 आज बहुत शुभ दिन है। कार्तिक मास की अमावस की रात है। आज की रात दीपावली की रात है। अंधेरे को रोशनी से मिटाने का समय है। दीपावली की शुभकानाओं के साथ दीपवाली शब्द की उत्पत्ति भी समझ लेते है। दीपावली शब्द की उत्पत्ति  संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। कुछ लोग "दीपावली" तो कुछ "दिपावली" ; वही कुछ लोग "दिवाली" तो कुछ लोग "दीवाली" का प्रयोग करते है । स्थानिक प्रयोग दिवारी है और 'दिपाली'-'दीपालि' भी। इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली जिसे दिवाली भी कहते हैं उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकार जाता है जैसे : 'दीपावली' (उड़िया), दीपाबॉली'(बंगाली), 'दीपावली' (असमी, कन्नड़, मलयालम:ദീപാവലി, तमिल:தீபாவளி और तेलुगू), 'दिवाली' (गुजराती:દિવાળી, हिन्दी, दिवाली,  मराठी:दिवाळी, कोंकणी:दिवाळी,पंजाबी),