Skip to main content

बैजनाथ।

🌹🙏🏼🎊🎊🎊🇮🇳🎊🎊🎊✍🏼🌹
पालमपुर की चाय की चुस्कियां आप को तरोताज़ा कर देती है।और वहां के बागानों की छटा मंत्रमुग्ध।ऐसे में क्यों न थोड़ी और आगे चलें।चलो पहुंच जाएं  ऊंचे पर्वतों की  तलहटी में।जहां से पर्वतों से लिपटी सफेद चादर का पूर्ण दृश्य नजर आ जाये।जी मैं बात कर रहा हूँ बैजनाथ की।पालमपुर से थोड़ा ही आगे बडा जाये। वैजनाथ की सुंदरता का मजा लिया जाये। भगवान शिव के सुंदर धाम के दर्शन किये जायें।चलो बैजनाथ की यात्रा की जाये।
हिमाचल प्रदेश की हिमाच्छादित धौलाधार पर्वत श्रृंखला के प्रांगण में स्थित है भव्य प्राचीन शिव मंदिर बैजनाथ। वर्ष भर यहां आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। माघ कृष्ण चतुर्दशी को यहां विशाल मेला लगता है जिसे तारा रात्रि के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त महाशिवरात्रि और वर्षा ऋतु में मंदिर में शिवभक्तों की भीड देखते ही बनती है। पुरातत्व विभाग के संरक्षण में यह मंदिर देश के कोने-कोने से शिवभक्तों को आकर्षित करता है। कई विदेशी पर्यटक भी यहां आते है।
बैजनाथ मंदिर की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है कि त्रेता युग में रावण ने हिमाचल के कैलाश पर्वत पर शिवजी के निमित्त तपस्या की। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की। अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हो प्रकट होकर रावण का हाथ पकड लिया। उसके सभी सिरों को पुनस्र्थापित कर शिवजी ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिवजी ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना। अब रावण लंका को चला और रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र (बैजनाथ क्षेत्र) में पहुंचा तो रावण को लघुशंका लगी। उसने बैजु नाम के ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकडा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के वजन को ज्यादा देर न सह सका और उन्हें धरती पर रख कर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था वह चन्द्रभाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था वह बैजनाथ के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते है।
महमूद गजनवी ने भारत के अन्य मंदिरों के साथ बैजनाथ मंदिर को भी लूटा और क्षति पहुंचाई। सन 1540 ई. में शेरशाह सूरी की सेना ने मंदिर को तोडा। क्षतिग्रस्त बैजनाथ मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार 1783-86 ई. में महाराजा संसार चंद द्वितीय ने करवाया था। मंदिर की परिक्त्रमा के साथ किलेनुमा छह फुट चौडी चारदीवारी बनी हुई है जिसे मंदिर और बैजनाथ के ग्रामवासियों की सुरक्षा के लिए बनवाया गया था। यहां के कटोच वंश के राजाओं ने समय-समय पर मंदिर की सुरक्षा का ध्यान रखा। वर्ष 1905 में आए कांगडा के विनाशकारी भूकंप ने फिर से इस पूजा स्थल को क्षति पहुंचाई थी जिसे पुरातत्व विभाग ने समय रहते संभालकर मरम्मत करा दी थी। इस मंदिर के कई अवशेष आज भी धरती में धंसे हुए हैं। मंदिर में स्थित 8वीं शताब्दी के शिलालेखों से प्रमाणित होता है कि तब से दो हजार वर्ष पहले भी यहां मंदिर था। यह भी पता चलता है कि पांडव युग के इस शिव मंदिर का किसी प्राकृतिक आपदा के कारण 2500-3000 वर्ष पूर्व विनाश हो गया था। छठीं शताब्दी में हुए हमलों के पश्चात आठवीं सदी में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। इस सदी में राजा लक्ष्मण चन्द्र के राज्य में दो भाई- मन्युक व आहुक हुए जो व्यापारी थे। इन दोनों शिव भक्तों ने शिवलिंगों के लिए मण्डप और ऊंचा मंदिर बनवाया। राजा और दोनों भाइयों ने मंदिर के लिए भूमिदान किया और धन दिया। इस पुनर्निर्माण का समय शिलालेखों में वर्ष 804 दिया गया है। समुद्रतल से लगभग चार हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के निर्माण को देखकर भक्तगण चकित रह जाते हैं कि शताब्दियों पहले इस दुर्गम स्थान में ऐसे भव्य पूजा स्थल का निर्माण कैसे हुआ। मंदिर के पीछे चंद्राकार पहाडियों और घने जंगलों का नैसर्गिक सौंदर्य हिमाच्छाति धौलाधार पर्वत श्रृंखला की स्वर्गिक सुंदरता में श्रृंगार का काम करता है। कन्दुका बिन्दुका (बिनवा) नदी प्रवाहरत है जो हजारों वर्ष पहले हुई प्राकृतिक आपदा से पहले मंदिर के स्थान से दूसरी ओर बहती थी। बैजनाथ का क्षेत्र भारत वर्ष में ही नहीं अपितु विश्व भर में हैंग ग्लाइडिंग के लिए सबसे उत्तम स्थान माना जाता है।
बैजनाथ पहुंचने के लिए दिल्ली से पठानकोट या चण्डीगढ-ऊना होते हुए रेलमार्ग, बस या निजी वाहन व टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से पठानकोट और कांगडा जिले में गग्गल तक हवाई सेवा भी उपलब्ध है।
ईश्वर का बुलावा आता है।आप का मन बनता है।ये धार्मिक भ्रमण और पर्यटन के लिये उपयुक्त जगह है।आप ट्रेकिंग भी कर सकते है।साइकिलिंग करके और आनंद लिया जा सकता है।सेहत तो आप के हिस्से प्रसाद रूप में आयेगी ही।
जय हिंद।
****🙏🏼 ****✍🏼
शुभ रात्रि।
🌹🌹🌹🌹🌹🏵🌹🌹🌹🌹🌹

Comments

Popular posts from this blog

रस्म पगड़ी।

🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक  समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस

भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया का वर्णन करता है। ये  सरकार की वित्तीय प्रणाली का महत्वपूर्ण अंग है।हमारे संघ प्रमुख हमारे माननीय राष्ट्रपति इस हर वर्ष संसद के पटल पर रखवाते है।प्रस्तुति।बहस और निवारण के साथ पास किया जाता है।चलो जरा विस्तार से जाने। यहां अनुच्छेद 112. वार्षिक वित्तीय विवरण--(1) राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में संसद के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित  प्राप्ति यों और व्यय  का विवरण रखवाएगा जिसे इस भाग में “वार्षिक  वित्तीय विवरण”कहा गया है । (2) वार्षिक  वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्राक्कलनों में-- (क) इस संविधान में भारत की संचित निधि पर  भारित व्यय के रूप में वार्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित   राशियां, और (ख) भारत की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थाफित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां, पृथक –पृथक दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा   । (3) निम्नलिखित व्यय भारत की संचित निधि पर भार

दीपावली की शुभकामनाएं २०२३।

🌹🙏🏿🔥❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🔥🌹🙏🏿 आज बहुत शुभ दिन है। कार्तिक मास की अमावस की रात है। आज की रात दीपावली की रात है। अंधेरे को रोशनी से मिटाने का समय है। दीपावली की शुभकानाओं के साथ दीपवाली शब्द की उत्पत्ति भी समझ लेते है। दीपावली शब्द की उत्पत्ति  संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। कुछ लोग "दीपावली" तो कुछ "दिपावली" ; वही कुछ लोग "दिवाली" तो कुछ लोग "दीवाली" का प्रयोग करते है । स्थानिक प्रयोग दिवारी है और 'दिपाली'-'दीपालि' भी। इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली जिसे दिवाली भी कहते हैं उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकार जाता है जैसे : 'दीपावली' (उड़िया), दीपाबॉली'(बंगाली), 'दीपावली' (असमी, कन्नड़, मलयालम:ദീപാവലി, तमिल:தீபாவளி और तेलुगू), 'दिवाली' (गुजराती:દિવાળી, हिन्दी, दिवाली,  मराठी:दिवाळी, कोंकणी:दिवाळी,पंजाबी),