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अभिनव चतुर्वेदी उर्फ " नन्हे "।

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इतेफाक़ होते रहते है।काम भी चलते रहते हैं।काम करते करते कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो जाती है।भूले बिसरे गीतों की तरह भूले बिसरे लोग याद आ जाते है।और अगर सामने आ जाये तो हम लोग थोड़ा आश्चर्य महसूस करते है।खैर हम छोटे थे। उम्र भी तक़रीबन 11-12 साल रही होगी।भारत मे एशियाड खेलो ने टेलीविज़न को घर घर तक ले जाने की मुहिम शुरू कर दी थी।ब्लैक एंड वाइट टी वी का जमाना था।हमारे घर भी पहला टेलीविज़न ओनिडा का शटर वाला टी वी आया था।दूरदर्शन पे समाचार से पहले बजती संगीत की धुन बड़ी भाती थी।और रोज शाम को टेलीविज़न के सामने कुछ देर जरूर बैठते थे।उस वक़्त अशोक कुमार जी टी वी पी आया करते थे।एक सीरियल दिखाने देखने की दुनिया बन रही थी।टीवी इतिहास बनाने पे उतारू था।जी एक सीरियल बन रहा था " हम लोग" । मेरी उम्र के लोगो को याद आ रही होगी अशोक कुमार जी की "छन्न पकैया छन्न पकैया की"।
"हम लोग" भारतीय टेलीविजन पर प्रसारित होने वाला पहला सोप-ओपेरा था। यह भारत के एक-मात्र टेलीविज़न चैनल दूरदर्शन पर प्रसारित किया जाता था। इसका प्रसारण 7 जुलाई 1984 को प्रारम्भ हुआ व यह शीघ्र ही अत्यंत लोकप्रिय हो गया। भारतीय दर्शकों को यह धारावाहिक इतना पसन्द आया कि इसके चरित्र विख्यात हो गए व लोगों कि रोज़-मर्रा की बातचीत का मुद्दा बन गए। हम लोग 1980 के दशक के भारतीय मध्यम-वर्गीय परिवार व उनके दैनिक संघर्ष और आकांक्षाओं की कहानी है। हम लोग का विचार तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री वसंत साठे को उनकी 1982 की मेक्सिको यात्रा के बाद आया। हम लोग की योजना का विकास लेखक मनोहर श्याम जोशी, जिन्होनें इस धारावाहिक की पटकथा लिखी व पी. कुमार वासुदेव, एक फ़िल्मकार जिन्होनें इसका निर्देशन किया, की सहायता से किया गया।
और इसके पात्र मशहूर हो गये। विनोद नागपाल बसेसर राम , जयश्री अरोड़ा भागवंती , सीमा भार्गव बड़की , लवलीन मिश्रा चुटकी, दिव्या सेठ मंझली , राजेश पूरी लल्लू , कमिया मल्होत्रा कमिया लाल , सुषमा सेठ दादी , अशोक कुमार सूत्रधार , लहरी सिंह दादा जी , आसिफ शेख प्रिंस अजय , कविता नागपाल संतो ताई , सुचित्रा चितले लाजवंती , रेणुका असरानी आशा रानी , मनोज पाहवा टोनी और एक खास खूबसूरत अभिनेता अभिनव चतुर्वेदी उर्फ नन्हे। सबसे हैंडसम अभिनेता पूरे सीरियल का। आज इनसे मुलाकात हुई।एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के साथ  जुड़े है।भाषा पे अमिताभ जी जैसा कंट्रोल।चलिये पहले इन्हें थोड़ा जान ले।आप को भी भूली बिसरी यादों में बापिस ले जाये।खेल के प्रेमियों को भी कुछ सुनायें। इनका जन्म 1964 में  एक पत्रकार और क्रिकेट कमेंटेटर अभय चतुर्वेदी के घर हुआ।कॉलेज की पढ़ाई दिल्ली के कॉलेज सेंट स्टीफेन से इतिहास में स्नातक की डिग्री ले कर पूरी की।इन्होंने दिल्ली की अंडर नाइनटीन में कप्तानी की। और स्कूल की टीम में वेस्टइंडीज के दौरा भी किया।थाईलैंड में हमारे ब्रांड एम्बेसडर भी रहे।अपनी फिल्म कंपनी भी खोली। तक़रीबन दस फिल्मों में काम किया।दो सीरियल में काम किया।एक वक्त था जब सब की जुबान पे इनका नाम रहता था।अपने कॉलेज के समय इनको कालका जी मे देखा था एक शूटिंग के सिलसिले में। वक़्त वक़्त की बात है।आज ललित होटल की भीड़ में कितने थे जिन्होंने उन्हें पहचाना या याद किया? मुझे एक भी नजर नही आया।ब्लैक एंड वाइट टीवी के तरह इतिहास से हो गये।आज की युवा पीढ़ी से वहुत दूर कहीं गुमनाम हो गए।आज की पीढ़ी के लोग उनको मास्टर ऑफ सेरेमनी या विधि नायक बना दिया।जो एक वक्त जवान लोगो के हीरो हुए करते थे आज कही गुमनाम से है। इनसे मिला बात हुई संक्षिप्त सी।पूछा सर फ़िल्म लाइन क्यों छोड़ दी।बोले बॉम्बे तो गये थे पर पिता जी बीमार हो गये और घर बापिस आना पड़ा।एक बात नज़रों से बहुत कुछ कह गयी और बहुत कुछ बयां कर गयी।सोचा आप से आज की मुलाकात ही सांझा कर लूं आप को कुछ अतीत में ले चलूं।कुछ अतीत के झरोखे से आप से बात करूं।कुछ भूली बिसरी यादें ताजा कर दूं।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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