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कभी सोचते है के हम क्या कर रहे है।
लगता गुजरता वक़्त ही पास कर रहे है।
जिंदगी उलझा ली बिना मंज़िलों के हमने।
किस राह दौड़ रहे है कोई खबर नही हमे।
किधर उड़ाये ले जा रही हमे ये इसे ही पता।
हम कल भी बेखबर थे आज भी बेखबर है।
सुबह होते ही रोजमर्रा की राह हो लेते है।
अपने समय से कुछ कीमत निकाल लाते है।
बहुत बार राहों में कुछ मंज़िलों की धुंधली सी आवाज़ आती है।
हम नासमझ उसे हवा की गूंज समझ कही और निकल जाते है।
बहुत बार ये सपनो में आ जोश भर जाती है।
आंख खुलते ही पता नही कहाँ नदारद हो जाती है।
कुछ छोटी सफलता मिलती तो मंज़िल मान लेते है।
थोड़ी दूर निकलते वो एक पड़ाव हो रहती बस।
फिर जिंदगी की उलझनों से सामना होता है बेवक़्त।
फिर न कोई मंज़िल समझ आती है ना कोई राह ही पहचान होती है।
ये बहुत विचारने को मन कई बार करता है।
मगर वो जगह नही मिलती जहां कुछ देर ठहर सकें।
कभी सोचते है के हम क्या कर रहे है।
लगता है गुजरता वक़्त बस हम पास कर रहे है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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