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भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 4 – राज्यपाल  की विधायी शक्ति अनुच्छेद 213 तक।

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भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 4 – राज्यपाल  की विधायी शक्ति अनुच्छेद 213 तक।
213. विधान–मंडल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राज्यपाल  की शक्ति –(1) उस समय को छोड़ कर जब किसी राज्य की  विधान सभा सत्र में है या विधान परिषद  वाले राज्य में विधान-मंडल के दोनों सदन सत्र में है, यदि किसी समय राज्यपाल  का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी  परिास्थितियां विद्यमान हैं जिनके कारण तुरंत कार्रवाई करना उसके लिए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उन परिास्थितियां में अपेक्षित प्रतीत हों :
परंतु  राज्यपाल , राष्ट्रपति  के अनुदेशों के बिना, कोई ऐसा  अध्यादेश प्रख्याफपित नहीं  करेगा यदि–
(क) वैसे ही उपबंध  अंतर्विष्ट करने वाले विधेयक को विधान-मंडल में पुर : स्थाफित किए  जाने के लिए राष्ट्रपति  की पूर्व  मंजूरी की अपेक्षा  इस संविधान के अधीन होती ;या
(ख) वह वैसे ही उपबंध  अंतर्विष्ट करने वाले विधेयक को राष्ट्रपति  के विचार के लिए  आरक्षित रखना आवश्यक समझता ; या
(ग) वैसे हर उपबंध  अंतर्विष्ट करने वाला राज्य के विधान-मंडल का अधिनियम इस संविधान के अधीन तब तक अविधिमान्य होता जब तक राष्ट्रपति  के विचार के लिए  आरक्षित रखे जाने पर  उसे राष्ट्रपति  की अनुमति प्राप्त नहीं  हो गई होती ।
(2) इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो राज्य के विधान-मंडल के ऐसे अधिनियम का होता है जिसे राज्यपाल ने अनुमति दे दी है, किंतु  प्रत्येक ऐसा अध्यादेश–
(क) राज्य की विधान सभा के समक्ष और विधान परिषद वाले राज्य में दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा तथा विधान-मंडल के पुनः समवेत होने से छह सप्ताह की समाप्ति  पर  या यदि उस अवधि की समाप्ति  से पहले विधान सभा उसके अननुमोदन का संकल्प  पारित  कर देती है और यदि विधान परिषद  है तो वह उससे सहमत हो जाती है तो, यथास्थिति, संकल्प  के पारित  होने पर या विधान परिषद  द्वारा संकल्प  से सहमत होने पर  प्रवर्तन में नहीं  रहेगा ;और
(ख) राज्यपाल  द्वारा किसी भी समय वापस  लिया जा सकेगा । 
स्पष्टीकरण —जहां विधान परिषद  वाले राज्य के विधान-मंडल के सदन, भिन्न-भिन्न तारीखों को पुनः समवेत होने के लिए , आहूत किए  जाते हैं वहां इस खंड के प्रयोजनों के लिए  छह सप्ताह की अवधि की गणना उन तारीखों में से पश्चातवर्ती तारीख से की जाएगी  ।
(3) यदि और जहां तक इस अनुच्छेदके अधीन अध्यादेश कोई ऐसा उपबंध करता है जो राज्य के विधान-मंडल के ऐसे  अधिनियम में जिसे राज्यपाल  ने अनुमति दे दी है, अधिनियमित किए जाने पर विधिमान्य नहीं होता तो और वहां तक वह अध्यादेश शून्य होगा : परंतु राज्य के विधान-मंडल के ऐसे  अधिनियम के, जो समवर्ती सूची में प्रगणित किसी विषय के बारे में संसद् के किसी अधिनियम या किसी विद्यमान विधि के विरुद्ध है, प्रभाव से संबंधित इस संविधान के उपबंधों के प्रयोजनों के लिए यह है कि कोई अध्यादेश, जो राष्ट्रपति के अनुदेशों के अनुसरण में इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित किया जाता है, राज्य के विधान-मंडल का ऐसा  अधिनियम समझा जाएगा  जो राष्ट्रपति  के विचार के लिए  आरक्षित रखा गया था और जिसे उसने अनुमति दे दी है ।
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कर्नाटक में राज्यपाल शांत रहे।जरूर जानना चाहिये आपको।राज्यपाल की विधायी शक्तिओं को समझ के हमे अपने विवेक से सरकारों में हो रहे असंवैधानिक बदलावों को समझना चहिए।कहाँ को ठीक है ये हम ही तह कर सकते है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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