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भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 5 अनुच्छेद 225 से 226 तक।

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भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 5 अनुच्छेद 225 से 226 तक।
225:- विद्यमान उच्च न्यायालयों की अधिकारिता—इस संविधान के उपबंधों  के अधीन रहते हुए  और इस संविधान द्वारा समुचित विधान-मंडल को प्रदत्त शक्ति यों के आधार पर  उस विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों  के अधीन रहते हुए , किसी विद्यमान उच्च न्यायालय की अधिकारिता और उसमें प्रशासित विधि तथा उस न्यायालय में न्याय प्रशासन के संबंध में उसके न्यायाधीशों की अपनी -अपनी  शक्ति यां, जिनके अंतर्गत न्यायालय के नियम बनाने की शक्ति  तथा उस न्यायालय और उसके सदस्यों की बैठकों का चाहे वे अकेले बैठें या खंड न्यायालयों में बैठें विनियमन करने की शक्ति  है, वही होंगी जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले  थीं  :
[63][परंतु राजस्व संबंधी अथवा उसका संग्रहण करने में आदि−] या किए  गए किसी कार्य संबंधी विषय की बाबत उच्च न्यायालयों में से किसी की आरंभिक अधिकारिता का प्रयोग, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले , जिस किसी निर्बंधन के अधीन था वह निर्बंधन ऐसी  अधिकारिता के प्रयोग को ऐसे  प्रारंभ के पश्चात्  लागू नहीं  होगा ।]
[64][226. कुछ रिट निकालने की उच्च न्यायालय की शक्ति –(1) अनुच्छेद 32 में किसी बात के होते हुए  भी [65]* * * प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी  अधिकारिता का प्रयोग करता है, [66][भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवार्तित कराने के लिए  और किसी अन्य प्रयोजन के लिए ]उन राज्यक्षेत्रों के भीतर किसी व्यक्ति  या प्राधिकारी को या समुचित मामलों में किसी सरकार को ऐसे  निदेश, आदेश या रिट जिनके अंतर्गत [67][बंदी प्रत्यक्षीकरण, पर मादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, या उनमें से कोई] निकालने की शक्ति होगी ।]
(2) किसी सरकार, प्राधिकारी या व्यक्ति  को निदेश, आदेश या रिट निकालने की खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्ति  का प्रयोग उन राज्यक्षेत्रों के संबंध में,जिनके भीतर ऐसी शक्ति के प्रयोग के लिए वादहेतुक फूर्णत: या भागत:  उत्पन्न होता है, अधिकारिता का प्रयोग करने वाले किसी उच्च न्यायालय द्वारा भी, इस बात के होते हुए  भी किया जा सकेगा कि ऐसी  सरकार या प्राधिकारी का स्थान या ऐसे  व्यक्ति  का निवास-स्थान उन राज्यक्षेत्रों के भीतर नहीं  है ।
5[(3) जहां कोई फक्षकार, जिसके विरुद्ध खंड (1) के अधीन किसी याचिका पर  या उससे संबंधित किसी  कार्यवाही में एयादेश के रूप  में या रोक के रूप  में या किसी अन्य रीति से कोई अंतरिम आदेश—
(क) ऐसे  फक्षकार को ऐसी  याचिका की और ऐसे  अंतरिम आदेश के लिए  अभिवाक् के समर्थन में सभी दस्तावेजों की प्रतिलिपियां, और
(ख) ऐसे  पक्षकार को सुनवाई का अवसर, दिए  बिना किया गया है, ऐसे  आदेश को रद्ध कराने के लिए  उच्च न्यायालय को आवेदन करता है और ऐसे  आवेदन की एक  प्रतिलिपि उस पक्षकार को जिसके फक्ष में ऐसा  आदेश किया गया है या उसके काउंसेल को देता है वहां उच्च न्यायालय उसकी प्राप्ति को तारीख से या ऐसे  आवेदन की प्रतिलिपि इस प्रकार दिए  जाने की तारीख से दो सप्ताह की अवधि के भीतर, इनमें से जो भी पश्चात्वर्ती हो, या जहां उच्च न्यायालय उस अवधि के अंतिम दिन बंद है वहां उसके ठीक बाद वाले दिन की समाप्ति  से पहले  जिस दिन उच्चन्यायालय खुला है, आवेदन को निफटाएगा और यदि आवेदन इस प्रकार नहीं  निफटाया जाता है तो अंतरिम आदेश, यथास्थिति, उक्त  अवधि की या उक्त  ठीक बाद वाले दिन की समाप्ति  पर  रद्द हो जाएगा  ।
[68][(4) इस अनुच्छेद द्वारा उच्च न्यायालय को प्रदत्त शक्ति  से, अनुच्छेद 32 के खंड (2) द्वारा उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त शक्ति  का अल्पीकरण  नहीं  होगा ।]
[69]226क. [अनुच्छेद 226 के अधीन कार्यवाहियों में केन्द्रीय विधियों की सांविधानिक वैधता पर  विचार न किया जाना ।]—संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 8 द्वारा (13-4-78 से) निरसित ।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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