Skip to main content

राजेन्द्र दा ढाबा।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹
लिखने में रुक तो नही जाता मगर कभी कभी एक अलप विराम सुखद होता है।कल फिर से बापसी हुई।कल दफ्तर के सहयोगियों के साथ दिल्ली की एक मशहूर जगह खाने का मौका मिला।जगह थी सफदरजंग एन्क्लेव क्लब के सामने डी डी ए मार्किट में राजेन्द्र दा ढाबा में। मार्किट में जिधर देखो बस एक ही नाम की दुकानें और खूब सारे लोग मार्किट में वरांडे पार्किंग की दीवार पार्क की दीवार के साथ खड़े होकर खाना खा रहे थे।जवानियों की भीड़ और कुछ परिवार।सब के सब कुछ खास खा रहे थे।हमारे सारे ग्रुप में मुझे छोड़ कर सब मांसाहार के शौकीन थे।वो भी चिकन।भीड़ लगी थी।मगर फिर भी खाना 5 मिनट में मिल गया।पुराने आने जाने वाले अड्डे भी सब जानते है खाने पीने के और कहां खड़े होकर खाना है उसके भी।जैसा ही ढाबे में घुसे बड़ी बडी पतीले उसमे एक तरफ मांसाहार के पकवान दूसरी और शाकाहार।तो हमारे लिए तो दाल आउट बाकी सब चिकन।साथ मे राजिंदर के मशहूर नान।जनाब दाल बेहद स्वादिष्ट और चिकन का मजा शायद चिकन खुराना जैसा। बस फर्क ये था के वहां खुराना साहब पिक्चर में थे यहां दुआ साहब।दोनों पंजाबी।चिकन खाने वाले वैसे हो तारीफें कर रहे थे। कुछ लोग इसे 40 साल पहले से जानते है।मगर शायद 1993 तक राजिंदर दुआ जी मार्किट के सामने एक पेड़ के नीचे अपना पतीला ले कर चिकन बेचा करते थे और नान खुद ही बनाते थे।आज आधी से ज्यादा मार्किट उनकी है।इसी पे लेख ढूंढ रहा था सो मिल भी गया।लीजिये आप के समक्ष है।कुछ जोड़ जाड़ मैंने भी दिया है।मन मे कुछ प्रश्न उठे।प्रश्न ये है के राजिंदर ढाबे के स्वाद में ऐसा क्या था खास कि आज 5 रेस्टोरेंट की मालिक है दुआ फैमिली?
40 साल पहले खोला था एक ढाबा आज ये 5 रेस्टोरेंट के मालिक बन चुके हैं। ऐसा क्या खास है इनके हाथों के स्वाद में कि एक बार इनके यहां जो खाना खाने आता है वो फिर लौटकर बार-बार यहीं आ जाता है। पैसे खर्च करने के बावजूद भी लोग सड़क पर खड़े होकर खाना खाने के लिए तैयार है लोग तो छोड़िए बॉलीवुड के स्टार्स भी यहां का खाना सड़क पर खड़े होकर आराम से खाते हैं। । ये ढाबा पूरी दिल्ली में मशहूर है। जब भी किसी का मन बाहर का स्वादिष्ट खाना खाने का करता है खासकर मांसाहार खाने का मन करता है तो वो सीधा राजेन्द्र के ढाबे पर आ जाते हैं। यहां का चिकन जितना स्वादिष्ट है उससे कही ज्यादा स्वादिष्ट मटन है और सिर्फ मांसाहार खाना ही नहीं बल्कि इनका शाकाहार खाने का स्वाद भी लाजवाब है। शाही पनीर दाल मखनी और सोया चाप के पतीले तो मैंने देखे।राजेन्द्र दा ढाबा नाम से 40-50 साल पहले एक छोटी सी दुकान से राजेन्द्र दुआ जी ने इसकी शुरूआत की थी। सबसे पहले उन्होंने अपने हाथों से लोगों को फिश फ्राई, मटन कोरमा, चिकन करी और नान बनाकर खिलाए। वैसे आपको बता दें कि उसी रेसिपी से आज भी यहां पर चिकन करी बनायी जाती है। पहले यहां पर सिर्फ मांसाहार खाना ही लोगों का खिलाया जाता था। आसपास के लोग उनके ढाबे पर आते और उनके यहां खाना खाकर उनकी खूब तारीफें करते। ये सिलसिला सालों साल चलता रहा और राजेन्द्र दुआ की इस मेहनत का ये नतीजा है कि आज इसी मार्केट में उनके 5 अलग-अलग आलीशान रेस्टोरेंट है। फिल्म दावते ए इश्क के प्रमोशन के दौरान जब परिनीति चोपड़ा और आदित्य रॉय कपूर दिल्ली आए थे तब उन्होंने भी राजेन्द्र के ढाबे के बाहर खड़े होकर खाना खाया था। इस ढाबे के खाने के स्वाद ने बॉलीवुड के इन स्टार्स को भी सड़क पर खाना खाने के लिए मजबूर कर दिया तो ऐसे में अब आप ये समझ ही गई होंगी कि यहां का खाना कितना मशहूर है और इसका स्वाद लोगों को कितना पसंद है। 
राजेन्द्र दा ढाबा में हर तरह का खाना मिलता है लेकिन मांसाहार खाने में यहां पर तंदूरी चिकन, मलाई चिकन, चिकन कोरमा, तंगड़ी कबाब, फिश फ्राई, गोटी कबाब, चिकन करी, मटन कोरमा लोगों को खास पसंद हैं। इसके अलावा इसके साथ जो नान, रोटी और बाकी रोटियां भी पेश की जाती हैं ।वो भी खाने में बहुत स्वादिष्ट होती हैं। ये खाना इतना भारी होता है लेकिन फिर भी इसका स्वाद आपको पेट भरने के बाद भी और खाना खाने के लिए मजबूर कर ही देता है। वैसे मांसाहार के अलावा शाकाहार खाना में भी यहां पर बहुत अच्छे चुनाव हैं ।दही के कबाब, सोया चाप, मलाई चाप, और कई ऐसी चीज़े हैं जिनका स्वाद आपको जरूर पसंद आएगा। 
राजेन्द्र दा ढाबा फैमिली रेस्टोरेंट बन चुका हैराजेन्द्र का ढाबा आज भी इसी सफदरजंग एन्क्लेव मार्केट में है और इसके साथ अब 5 और रेस्टोरेंट भी खुल चुके हैं। हमारी बात जब राजेन्द्र दा ढाबा पर इनके एक मैनेजर से हुई तो उन्होंने हमें बताया कि रेस्टोरेंट के अंदर अगर आप बैठकर ये खाना खा रहै हैं तो इसके लिए आपको 40 प्रतिशत ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेगें। लेकिन स्वाद आपको एक जैसा ही मिलेगा। ऐसा नहीं है कि ढाबे औह रेस्टोरेंट का स्वाद अलग हो। उन्होंने हमें ये भी बताया कि 4 दशक पहले राजेन्द्र दुआ ने अपने नाम से इस बाजार में छोटा सा काम शुरू किया था फिर उनका ढाबा दुकान में बदला और अब यहीं पर उनके 5 रेस्टोरेंट हैं। अब उनका ये काम उनका बेटा भूषण कुमार संभालता है अपने  पिता की इस मेहनत को यहां तक लेकर आने के लिए उनके बेटे ने भी बहुत मेहनत की है। यानि दिल्ली के मशहूर राजेन्द्र दा ढाबा का बिज़नेस अब उनकी दूसरी पीढ़ी संभाल रही है। 
अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो आपको साउथ दिल्ली के इस मशहूर राजन्द्र दा ढाबा के बारे में जरूर पता होगा। आप अगर दिल्ली घूमने आ रहे हैं और अच्छा खाना कहां मिलेगा तलाश रहे हैं तो यहां आकर आपका मन जरुर खुश हो जाएगा। राजन्द्र दा ढाबा का खाना इतना मशहूर है कि यहां पर लोग अपना ऑर्डर देने के बाद कुछ देर इंतज़ार करते हैं। ढाबे के बाहर हमेशा भीड़ लगी रहती है। सड़क पर इतने लोग अगर आपको बाजार में दिखे तो आप समझ जाएंगी कि ये राजेन्द्र दा ढाबा ही है। फिर तिल्ली वाली कुल्फी का आनंद लीजिये।पान खाइये।घर आप बंगाली स्वीट की मिठाई ले जाईये जो यहाँ की सबसे पुरानी दुकान है।रात अभी लंबी थी सफर बहुत पड़ा था।चलिये चलते है।
जय हिंद।
✨💫🌟⚡****🙏****✍
शुभ प्रभात।
❣❣❣❣❣❣🌹❣❣❣❣❣❣

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

रस्म पगड़ी।

🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक  समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस

भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया का वर्णन करता है। ये  सरकार की वित्तीय प्रणाली का महत्वपूर्ण अंग है।हमारे संघ प्रमुख हमारे माननीय राष्ट्रपति इस हर वर्ष संसद के पटल पर रखवाते है।प्रस्तुति।बहस और निवारण के साथ पास किया जाता है।चलो जरा विस्तार से जाने। यहां अनुच्छेद 112. वार्षिक वित्तीय विवरण--(1) राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में संसद के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित  प्राप्ति यों और व्यय  का विवरण रखवाएगा जिसे इस भाग में “वार्षिक  वित्तीय विवरण”कहा गया है । (2) वार्षिक  वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्राक्कलनों में-- (क) इस संविधान में भारत की संचित निधि पर  भारित व्यय के रूप में वार्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित   राशियां, और (ख) भारत की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थाफित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां, पृथक –पृथक दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा   । (3) निम्नलिखित व्यय भारत की संचित निधि पर भार

दीपावली की शुभकामनाएं २०२३।

🌹🙏🏿🔥❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🔥🌹🙏🏿 आज बहुत शुभ दिन है। कार्तिक मास की अमावस की रात है। आज की रात दीपावली की रात है। अंधेरे को रोशनी से मिटाने का समय है। दीपावली की शुभकानाओं के साथ दीपवाली शब्द की उत्पत्ति भी समझ लेते है। दीपावली शब्द की उत्पत्ति  संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। कुछ लोग "दीपावली" तो कुछ "दिपावली" ; वही कुछ लोग "दिवाली" तो कुछ लोग "दीवाली" का प्रयोग करते है । स्थानिक प्रयोग दिवारी है और 'दिपाली'-'दीपालि' भी। इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली जिसे दिवाली भी कहते हैं उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकार जाता है जैसे : 'दीपावली' (उड़िया), दीपाबॉली'(बंगाली), 'दीपावली' (असमी, कन्नड़, मलयालम:ദീപാവലി, तमिल:தீபாவளி और तेलुगू), 'दिवाली' (गुजराती:દિવાળી, हिन्दी, दिवाली,  मराठी:दिवाळी, कोंकणी:दिवाळी,पंजाबी),