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रंगशाला।

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एक शब्द आप ने सुना होगा रंगशाला।इंग्लिश में आज कल की जनता को ये आसानी से समझ आता है।हिंदी जरा औखी होती है।खैर रंगशाला को दो रूपों में जान सकते है। रंगशाला का हिंदी में मतलब:
1.भोग विलास का स्थान।
2.वह स्थान जहाँ दर्शकों को अभिनेतागण या नट लोग अपना अभिनय या करतब दिखाते हों।रंगशाला के बहुत सुंदर रूप पौराणिक काल से उपस्थित है।आज कल बहुत सुंदर अत्याधुनिक ऑडोटोरियम बन गए है।रंगमंच (थिएटर) वह स्थान है जहाँ नृत्य, नाटक, खेल आदि हों। रंगमंच शब्द रंग और मंच दो शब्दों के मिलने से बना है। रंग इसलिए प्रयुक्त हुआ है कि दृश्य को आकर्षक बनाने के लिए दीवारों, छतों और पर्दों पर विविध प्रकार की चित्रकारी की जाती है और अभिनेताओं की वेशभूषा तथा सज्जा में भी विविध रंगों का प्रयोग होता है और मंच इसलिए प्रयुक्त हुआ है कि दर्शकों की सुविधा के लिए रंगमंच का तल फर्श से कुछ ऊँचा रहता है। दर्शकों के बैठने के स्थान को प्रेक्षागार और रंगमंच सहित समूचे भवन को प्रेक्षागृह, रंगशाला, या नाट्यशाला (या नृत्यशाला) कहते हैं। पश्चिमी देशों में इसे थिएटर या ऑपेरा नाम दिया जाता है। आप को समय से कुछ उदाहरण बताता हूं।क्योंकि रंगशाला विशेष तरीक़ों से बनाई जाती है।आधुनिक रंगशाला में एक तल फर्श से नीचे होता है, जिसे वादित्र कक्ष कहते हैं ।ऊपर मंचन स्थल।विसेंजा की ओलिंपियन अकादमी में एक सुंदर रंगशाला सन् 1580-85 में बनी, जिसपर छत भी थी।यह ज्ञातव्य है कि रंगशाला खुली होती थी और पात्रों को संवाद जोड़ने घटाने में स्वतंत्रता थी ।चेन्नई में रंगशाला संस्कृति भी अच्छे स्तर पर है और यह भरतनाट्यम का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है ।16वीं शताब्दी के अंत तक केवल एक रंगशाला ब्लैकफ्रायर्स में स्थित थी और वह व्यक्तिगत कहलाती थी । रंगशाला मेंदर्शकों के बैठने के स्थान को प्रेक्षागार और रंगमंच सहित समूचे भवन को प्रेक्षागृह, रंगशाला, या नाट्यशाला कहते हैं।इसी प्रकार महाभारत में रंगशाला का उल्लेख है और हरिवंश पुराण तथा रामायण में नाटक खेले जाने का वर्णन है। रंगशाला में जो मंचन होता है उसका ज्वलन्त उद्धाहरण हमारे यहां होने वाली रामलीला है।बनारस में तो बहुत बड़ा खुला रंगमंच है जहां रामलीला हर वर्ष खेली जाती है।हरदिन के लिये जगह मुकर्रर है।राजघराने के लोग आज भी इसका आनंद लेते है।ये एक समय सामाजिक संस्कृति को सहेजेने का उत्तम साधन था।नाटक लिखे व मंचन किये जाने थे।पौराणिक कथाओं का मंचन होता था।लोगो के मनोरंजन से लेकर ज्ञान का एक साधन भी था।अनपढ़ जनता भी बहुत से ज्ञान की भागी होती थी।बहुत बातें सालों में कंठट्स हो जाती थी।रंगशाला का जीवन मे अपना महत्व था।राजे इसे भोग विलास के लिए वनवाते थे।जिससे नृत्यकला भी सहेज ली गयी।समय समय पे रंगशालाओं का रूप बदला।मगर आज भी अपना अस्तित्व बचाए जनता के कुछ वर्ग का प्रिय मनोरंजन का स्थान बनी हुई है। देवता ऋषि मुनि भी इसका इस्तेमाल करते थे।ऐसा समझा जाता है कि नाट्यकला का विकास सर्वप्रथम भारत में ही हुआ। ऋग्वेद के कतिपय सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं। इन संवादों में लोग नाटक के विकास का चिह्न पाते हैं। अनुमान किया जाता है कि इन्हीं संवादों से प्रेरणा ग्रहण कर लागों ने नाटक की रचना की और नाट्यकला का विकास हुआ। यथासमय भरतमुनि ने उसे शास्त्रीय रूप दिया। भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में नाटकों के विकास की प्रक्रिया को इस प्रकार व्यक्त किया है:
नाट्यकला की उत्पत्ति दैवी है, अर्थात् दु:खरहित सत्ययुग बीत जाने पर त्रेतायुग के आरंभ में देवताओं ने स्रष्टा ब्रह्मा से मनोरंजन का कोई ऐसा साधन उत्पन्न करने की प्रार्थना की जिससे देवता लोग अपना दु:ख भूल सकें और आनंद प्राप्त कर सकें। फलत: उन्होंने ऋग्वेद से कथोपकथन, सामवेद से गायन, यजुर्वेद से अभिनय और अथर्ववेद से रस लेकर, नाटक का निर्माण किया। विश्वकर्मा ने रंगमंच बनाया आदि आदि।
मन मे आया तो सोचा आज आप से सांझा कर लूं।रामायण में आज का दिन भी खास है। रामायण में दीवाली मंचन देखने की इच्छा रहेगी।
जय हिंद।
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शुभ प्रभात एंव दिवस।

दीपावली के शुभ अवसर पर आप सब को परिवार सहित ढेर सारी शुभकामनायें।
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