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जम्मू शहर अब एक केंद्रशासित राज्य का भाग बन गया है।बहुत पुराना इतिहास है इस शहर का।जम्मू क्षेत्र कश्मीर घाटी के पड़ोस में एवं दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इस क्षेत्र में डोडा, कठुआ, जम्मू, उथमपुर, राजौरी एवं पुंछ जिले आते हैं।इसके इतिहास के अनुसार जम्मू की स्थापना राजा जम्बुलोचन ने १४वीं शताब्दी ई.पू. में की थी और नाम रखा जम्बुपुरा जो कालांतर में बिगड़ कर जम्मू हो गया। राय जम्बुलोचन राजा बाहुलोचन का छोटा भाई था।बाहुलोचन ने तवी नदी के तट पर बाहु किला बनवाया था और जम्बुलोचन ने जम्बुपुरा नगर बसवाया था। राजा एक बार आखेट करते हुए तवी नदी के तट पर एक स्थान पर पहुंचा जहां उसने देखा कि एक शेर व बकरी एक साथ एक ही घाट पर पानी पी रहे हैं। पानी पीकर दोनों जानवर अपने अपने रास्ते चले गये। राजा आश्चर्यचकित रह गया और आखेट का विचार छोड़कर अपने साथियों के पास पहुंचा व सारी कथा विस्तार से बतायी। सबने कहा कि यह स्थान शंति व सद्भाव भरा होगा जहां शेर व बकरी एक साथ पानी पी रहे हों। तब उसने आदेश दिया कि इस स्थान पर एक किले का निर्माण किया जाये व उसके निकट ही शहर बसाया जाये। इस शहर का नाम ही जम्बुपुरा या जम्बुनगर पड़ा और कालांतर में जम्मू हो गया। आज भी यहां बाहु का किला एक ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल है। इतिहास में दर्ज कुछ शासक जम्मू के इस प्रकार रहें है।
राजाओं की सूची
राय सूरज देव 850-920
राय भोज देव 920-947
राय अवतार देव 947-1030
राय जसदेव 1030-1061
राय संग्राम देव 1061-1095
राय जसास्कर 1095-1165
राय ब्रज देव 1165-1216
राय नरसिंह देव 1216-1258
राय अर्जुन देव 1258-1313
राय जोध देव 1313-1361
राय मल देव 1361-1400
राय हमीर देव (भीम देव) 1400-1423
राय अजायब देव
राय बैरम देव
राय खोखर देव (देहान्त 1528)
राय कपूर देव 1530-1570
राय समील देव 1570-1594
राय संग्राम, जम्मू राजा 1594-1624
राजा भूप देव 1624-1650
राजा हरि देव 1650-1686
राजा गुजै देव 1686-1703
राजा ध्रुव देव 1703-1725
राजा रंजीत देव 1725-1782
राजा ब्रजराज देव 1782-1787
राजा सम्पूर्ण सिंह 1787-1797
राजा जीत सिंह 1797-1816
राजा किशोर सिंह 1820-1822
इसके बाद जम्मू का शासन जम्मू एवं कश्मीर के डोगरा शासकों के पास चला गया।
महाराजा गुलाब सिंह 1822-1856
महाराजा रणबीर सिंह 1856-1884
महाराजा प्रताप सिंह 1884-1925
महाराजा हरि सिंह 1925-1948
कर्ण सिंह (जन्म 1931) भारत के राजनयिक
अंतिम शाही शासन डोगराओं का रहा।इसका भी रोचक इतिहास है।डोगरा शसकों से जम्मू का शासन 1 9वीं शताब्दी में महाराजा रंजीत सिंह जी के नियंत्रण में आया और इस प्रकार जम्मू सिख साम्राज्य का भाग बना। महाराजा रंजीत सिंह ने गुलाब सिंह को जम्मू का शासक नियुक्त किया। किन्तु ये शासन अधिक समय नहीं चल पाया और महाराजा रंजीत सिंह के देहान्त के बाद ही सिख साम्राज्य कमजोर पड़ गया और महाराजा दलीप सिंह के शासन के बाद ही ब्रिटिश सेना के अधिकार में आ गया और दलीप सिंह को कंपनी के आदेशानुसार इंग्लैंड ले जाया गया। किन्तु ब्रिटिश राज के पास पंजाब के कई भागों पर अधिकार करने के कारण उस समय पहाड़ों में युद्ध करने लायक पर्याप्त साधन नहीं थे। अतः उन्होंने ।महाराजा गुलाब सिंह को सतलुज नदी के उत्तरी क्षेत्र का सबसे शक्तिमान शासक मानते हुए जम्मू और कश्मीर का शासक मान लिया। किन्तु इसके एवज में उन्होंने महाराज से 75 लाख रुपए नकद लिये। यह नगद भुगतान महाराजा के सिख साम्राज्य के पूर्व जागीरदार रहे होने के कारण वैध माना गया और इस संधि के दायित्त्वों में भी आता था। इस प्रकार महाराजा गुलाब सिंह जम्मू एवं कश्मीर के संस्थापक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।उन्हीं के वंशज महाराजा हरिसिंह भारत के विभाजन के समय यहां के शासक थे और भारत के अधिकांश अन्य रजवाड़ों की भांति ही उन्हें भी भारत के विभाजन अधिनियम 1947 के अन्तर्गत्त ये विकल्प मिले कि वे चाहें तो अपने निर्णय अनुसार भारत या पाकिस्तान से मिल जायें या फ़िर स्वतंत्र राज्य ले लें; हालांकि रजवाड़ों को ये सलाह भी दी गई थी कि भौगोलिक एवं संजातीय परिस्थितियों को देखते हुए किसी एक अधिराज्य में विलय हो जायें। अन्ततः जम्मू प्रान्त भारतीय अधिराज्य (तत्कालीन) में ही विलय हो गया। डोगरा राजाओं ने यहां बहुत मंदिरों का निर्माण करवाया।आज मेरा रुकना हरि सिंह पैलेस होटल में हुआ।ये तवी नदी के तट पर स्तिथ है।बहुत ही नयनाभिराम नज़ारा हैं तवी के छोर से।बगल में ही अमर महल है।जो अब संग्राहलय बना दिया गया है। जम्मू बहुत खूबसूरत है।जरा बढ़ती गाड़ियों की नज़र लग गयी है।शहर में भीड़ बड़ गयी है। शहरी विकास बेहतर हुआ है।धर्मिक नगरी के साथ साथ उद्योग नगरी के रूप में भी जम्मू का अच्छा विकास हुआ है।
जय हिंद।
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सुप्रभात एंव शुभ दिवस।
🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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