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कुछ अनचाहा और कुछ हम।

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बहुत बार जीवन मे अनचाहे मोड़ और परिस्थितियों से हमे गुजरना पड़ता है।हम अपने आराम की दुनिया के आदी होते है और थोड़ा सा बेआराम बर्दश्त के बाहर समझ लेते है।ये हमारे भीतर एक तो कमजोरी का प्रदर्शन बनता है दूसरा हम परिस्थितियों से भागते है।इस दौरान हमारे भीतर क्रोध जन्म लेता है।जो हमे जाने अनजाने अपने कब्जे में ले हमारे आस पास के माहौल को प्रतिकूल परिस्थितियों में बदल देता है।हम अनजाने में ही अपनेे द्वारा उतपन्न प्रस्थिति से अनजान हो इसे दुश्मन समझ उससे उलझने लगते हूं।ये हर इंसान के साथ रोज हर समय घटित होता रहता है। हर चीज़ तो खुदा मन माफिक देता नही है।और इसकी समझ हमे बहुत कच्ची उम्र में आ जाती है।बचपन मे ही।शुरुआत माता पिता से भी हो जाती है फिर अपने और पनपते रिश्तों से और कभी कभी गुरबत से।गुरबत भी कई तरह से जीवन मे आ धमकती है चाहे अनचाहे।फिर हम बड़े होने लगते है और दुनिया की समझ पैदा होने का समय आ जाता है।बस यहीं कुछ दुनियादारी सही समझ लेते है और कुछ के लिये जीवन बचपन से जवानी के सफर तक बदलता ही नही है और समझ पैदा नही होती। एक बेहद खराब स्तिथि है ये।फिर नये रिश्ते बनने लगते है और यहां ये समझ नाकाम ही रहती है।जीवन दो जगह घेरता है एक सामाजिक स्तर पे और दूसरा आप को आप के घर पे।समाज आप को आज में जीने का मंत्र दिए रहता है और आप के समर्थ होने का एहसास जगाता रहता है।घर आप को दूरदर्शिता से लंबे जीवन का सफर समझाता है और आप को समाज मे मजबूत बने रहने की  और अग्रसर कर प्रेम से पूर्ण कर समर्थता देता है।मतलब आप सब अनचाहे मोड़ो को अपनी इच्छाशक्ति के चलते समझ के पनपते अपनी समर्थता से साध लेने की काबलियत पैदा कर लेते है।कुछ असफ़लताएँ भी होती है।मगर ये जीवन का सबक बन कर आप को और मजबूती प्रदान करती है।मगर एक बड़ा तबका समाज मे इसे समझने में कामयाब नही होता।जिंदगी सुबह से शुरू हो रात को पूरी कर ली जाती है। अपना संसार खूबसूरत बना रहे और इसे हर अनचाही तकलीफों से दूर कैसे रखा जाए समझ नही पाते।सोचना गुनाह लगता है।बातों को तोलना बेहद मुश्किल महसूस होता है। आसपास पनपती इच्छाओं को महसूस करना गुनाह।अपनी चलाना अधिकार ।सुनना बेकार लगता है।अपनी सबसे प्यारी चीज़ चीज मखौल लगने लगती है। अनचाहे मोड़ और प्रतिकूल प्रस्थितियाँ  सुधरने की बजाए बिड़गने लगती है।बुरा और तब होता है जब एक आप नासमझ हों और दूसरे आप के विश्वासपात्र इसका सहारा ले आग में घी डालें।आप के जलते अरमानो से अपना सकून हांसिल करें।आप फस जाते जाते है।मगर ईश्वर ने इंसान ऐसी चीज बनाई है जहां आंख खुले सवेरा कर लेता है।हज़ार गलतियां कर भी सुधार कर लेता है।बस कुछ चीजों की जरूरत होती है ।सबसे पहले भीतर का इत्मीनान कायम रहे।दूसरा आप हर अनचाही और प्रतिकूल प्रस्थिति में आपा बनाये रखें।सब और ध्यान से सुने और आंखों से देख भली भांति सबको समझने का प्रयास करें।चुप्प रहें और समय को थोड़ा बीतने दें।अपने मूक जबाब की तैयारी करें।मूक जबाब जबरदस्त कला है।जब सुनने की आदत पड़ेगी चुप रहने की ताकत आयेगी तो ये अपने आप आप मे पनप जायेगी।आप भीतर से मजबूत हो अपना सामाजिक स्तर भी सुधारने में अग्रसर होंगे और अपने सबसे कीमती रिश्ते को समझने के काबिल।और अपनों से मिली पनपी समर्थता से सब अनचाही और प्रतिकूल प्रस्थतिओं से पार पा जाएंगे।जीवन के कठिन दिन प्रेम के चलते कब बीते पता भी नही चलेगा।समय बदलता रहता है कभी एक सा नही होता।बस कभी हारिये मत और जहां आंख खुल जाए जिस दिन खुल जाये अपनी दुनिया अपनी से बनाने में लग जाइये जहां प्यार का पूरा वास हो विश्वास साथ हो तो कोई मुश्किल क्यों पास हो।कोई स्तिथि प्रस्थिति आप की पहुंच से बाहर नही है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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