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कल काम के सिलसिले में बिलासपुर हिमाचल प्रदेश जाना हुआ।सुबह का वक़्त मिल जाता है शहर को देखने का।ये मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग पे स्तिथ है।चंडीगढ़ से तकरीबन 90 किलोमीटर दूर।ये सतलुज नदी के किनारे बसा सुंदर शहर है या यूं कहें गोविंद सागर झील के किनारे बसा सुंदर शहर है।आस पास घूमने को काफी कुछ है।मैं आज आपको बेहद खूबसूरत नजारा लेने का रास्ता बताता हूँ। झील का विस्तार भाखड़ा से बिलासपुर तक 50 किलोमीटर के लगभग है।इस मौसम में पानी अपने उच्चतम स्तर से थोड़ा कम होता है।और पानी नीलवर्ण लिये पहाड़ों से घिरी झील का सुंदर नज़ारा पेश करता है।यहां रुकने के लिये हिमाचल पर्यटन का होटल लेक व्यू है।हाईवे के साथ ही बनाया गया है।1450 रुपए में ऐ सी कमरा ऑफ सीजन में मिल जाएगा।कमरे साफ सुथरे ठीक ठीक है।खाना बेहतर है।दूसरा इसकी लोकेशन शानदार है।झील का पूरा नज़ारा।काम खत्म कर रात में पहुंचे तो चारों और पहाड़ शहर के आस पास के गांव की रोशनी से नहाये थे।झील रात में अपने भीतर तारों की रोशनी से नहा रही थी।बेहद मस्त नज़ारा था।शीत लहर जोरो पे थी मगर मैदानी इलाके के मुकाबले ठंड कम लग रही थी।कुछ देर बालकॉनी से झील का नज़ारा लिया। और खाना खा कर सो गए।फिर सुबह जाग मंदिर की घंटियों से खुली। हिमचल के परंपरागत वाद्यों की धुन सुनाई दे रही थी।रात में मंदिर देख नही पाया था।सहसा उठा तो दर्शन अभिलाषा जागी।नहाये धोये और सुबह सुबह बाबा नार सिंह या नाहर सिंह मंदिर धलोरा पहुंच गये। ये मंदिर यहां का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी है।होटल से कुछ ही दूरी पर नीचे उतर कर नदी के किनारे पे स्तिथ था। ये मंदिर सोलहवीं शताब्दी में राजा दीप चंद ( 1650 - 1667) की कुल्लवी रानी कुंकुम देवी ( नागर देई) कुल्लू नगर से आये राजा नार सिंह देव बिलसपुर के आराध्य देव को सम्सर्पित है।इस मंदिर में राजा नार सिंह की प्रतीक उनकी खड़ाऊं की पूजा की जाती है।राजा नार सिंह को मीठी रोटी का भोग यगोपवीत गुग्गल सुपारी श्वेत वस्त्र कपूर पुष्प बेहद पसंद है।यहां ज्येष्ठ माह के हर मंगलवार को मेला लगता है।यहां काली माता व सती माता का मंदिर भी है।मंदिर के द्वार पे ही भगवान भोले विराजमान है।बहुत सुंदर साफ सुथरी जगह है। हर मंगलवार को भंडारा भी होता है।श्रद्धालु वहां दान पुण्य कमा सकते है। कुलदेवी और देवताओं की बालू पत्थर पर उकेरी गई पूजनीय भव्य प्रतिमा के दर्शन भी कर सकते है।मेरे अपने पैतृक निवास पे आज भी ऐसी पूजा होती है।फिर सुबह सुबह का समय था।पास में ही नीचे उतर कर सतलुज के किनारे खड़े हो झील के प्राकृतिक सौंदर्य का नज़ारा लिया। दूर से स्टीमर आता दिखा। थोड़ा दूर स्टीमर एक किनारे लगा।तो कदम वहां उस किनारे की ओर बढ़ लिये।स्टीमर के पास जाकर पूछा दूसरे कोने जाने के पैसे कितने लेते हो। मात्र 6 रुपए किराया।15 मिनट में दूसरी ओर।दूसरी और कई गांव है।चार पांच अलग अलग फेरी चलतीं है । दूसरी तरफ एक गांव था ऋषिकेश।नाम भी मेरी मनपसन्द जगह का।तो एक तरफ का किराया मात्र 6 रुपए ।आना जाना 12 रुपए।40 से 45 मिनट का पूरा सफर।कुछ देर में सतलुज की लहरों पे नाव चल रही थी।शीत लहर चीर रही थी।मगर नज़ारा कैमरे में कैद करने लायक था। कैद किया।इसी झील में बिलासपुर के राजा का महल समा चुका है।कुछ मंदिरों के गुम्बद नदी में दिख रहे थे। कैमरे में कैद कर लिये।आनंद अपने चरम पे था। आनंद की अनुभूति विशेष थी।सतलुज को शायद गंगा मैया की तरह में भीतर जीता हूँ।कुछ जीवन प्रेरणा भी पाता हूँ।12 रुपए में ये आनंद वहां के लोग रोज लेते है।अगर दादाक पुल के रास्ते आना हो तो 25 किलोमीटर का रास्ता है।50 मिनट का सफर और किराया भी ज्यादा।गांव के जीवन के शाश्वत दर्शन।किसी भी इंसान की आंखों के नीचे काले घेरे नही थे।चेहरे नूरानी और खुशदिल लोग।ईमानदार।गर्मियों में पानी काफी उतर जाता है।मंदिर बाहर आ जाते है।बड़े बड़े मैदान हरी घांस लिए अलग ही छटा बिखेरते है।मैंने उसका भी एक समय आनंद लिया है। बिलासपुर अपने आप मे आप के लिये एक दिन का खूबसूरत पिकनिक स्पॉट है।जायें तो एक किनारे कोई गंदगी न फैलायें।और मौका लगे जाने का तो थोड़ा भी प्लास्टिक नज़र आये उसे साफ जरूर करें।आप को प्रकृति अपना आशीर्वाद देगी।सतलुज की आभा में भी चार चांद लगेंगे।और फिर लौटते हुए खट्टे के पेड खटों से लदे पड़े थे।गुलाब महक रहे थे।गुड़हल अपनी आभा बिखेर रहे थे।काम पे जाने का समय होने को था सो हम भी मॉर्निंग वॉक खत्म कर होटल पहुंच गये।आप के लिए एक और जगह रसास्वादन के लिये ढूंढ लाये।जब भी वक़्त मिले तो चलते चलते रसपान कीजियेगा।
जय हिंद।
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शुभ संध्या।
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