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यादों के झरोखों से--कुछ खास रिश्ते।

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बहुत गुजरी बहुत बीती बहुत सुनाने का मन तो  था मगर सुनाये क्या? जब भी मौका लगता है उस दिन कहीं यह दिल कहीं अपनी पुरानी यादों में कहीं खो जाता है। हम भी जज्बाती हो जाते हैं जब याद उनकी आ जाती है। यह इश्क है कहीं भी होता है किसी से भी होता है। यह हर रिश्ते में होता है हर जगह होता है ।जब यादों में ही दिल के भीतर तक समायी हो तो उसकी याद ना आए ऐसा कैसे हो सकता है। हम भी बहुत चीजों को भूल कर जिंदगी की दौड़ में चलते चले जा रहे हैं। किसी पड़ाव पर कुछ देर रुकते हैं तो उन भूली बिसरी शायद यादों को संजोते जा रहे हैं ।ऐसे ही कुछ अपनों की जुबानी अपनों की कहीं अपने बचपन की कुछ कहानी सुनी। जिन्होंने हमें गोद खिलाया   हमें खूब गोद खिलाया उनके मन की कुछ कहानी हमने अपने मन से सुनी। यादों को जीने का मजा भी अलग है जब याद आ जाए उसको लिख  कर संजोने का मजा भी अलग है।फिर सोचते रहे सोचते रहे सोचा लिखें सोचते सोचते लिखने लगे ।नानाजी ने एक अंगूर की बेल लगाई थी खूब अंगूर उस पर लगे थे ।खूब बाहर आई थी ।दूर रहते थे काम के सिलसिले में परिवार को पालने के लिए खूब मेहनत करते थे। अब उनके भी कुछ नाती नातिन थे उनके भी मन में कुछ अपने बच्चों के बचपन को जीने की तमन्ना थी। घर में बेल लगी थी अंगूर भी पक्क पक्क गिरने लगे थे। इतने में उस समय भी आ गया घर जाने का एक मौका भी बन गया। फिर क्या था जनाब अंगूर प्यार प्यार से तोड़े गये। अंगूरों को प्यार प्यार से अपनी ट्रंकी में डाला गया। पूरे परिवार के लिए कई किलो अंगूरों को ट्रंकी में संवारा गया। साइकिल पर कपड़ा लगाया गया साइकिल भी चमक उठी उस पर लगा डायनेमो भी खूब अच्छे से साफ कर चमकाया गया। साइकिल भी चमका उठी वह भी खुश हो गई चलो आज फिर से घर जाने का दिन आया । मैं भी अपनी तैयारी करती हूं ।साइकिल और वह इंसान चल पड़ते हैं अपने परिवार से मिलने के लिए अंगूरों से भरी टंकी लिए और कुछ ख्वाब संजोए घर की ओर चलते हैं ।100 किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करते हैं। और सुबह घर पहुंचते हैं। सामने देखकर परिवार को दिल खुश हो जाता है ।बेटियों को गले से लगाया जाता है बेटा भी आकर टांग में लिपट जाता है तभी निगाह जमीन पे पड़ती है।देखा कुछ महीनों का नाती जिसके अभी दूध हुए से दो खरगोश  दांत निकले हुए हैं वह भी जमीन पर रिड़ता हुआ हंसता हुआ उनको निहार रहा था। जैसे लगा कोई अपना ही आया था। उसे क्या पता था यह तो अपना ही था उन्होंने उसे देखते ही उठा लिया सीने से लगा लिया ।और फिर जमीन पर बिठा दिया। अब क्या था ट्रंकी उठाई उस छोटे से बच्चे के सामने साइकिल से उतारी। बहुत प्रेम से खोली और अंगूर  निकाले गए । परात मंगाई गई।और परात में पके अंगूरों के गुच्छे रख दिये गए बच्चा सामने बैठा दिया गया। सबको बोला  कोई इसे छेड़ेगा नहीं ।उसके नहाने का टाइम था । बोले अभी इसे नहलाना नहीं। फिर क्या था बच्चे को दिखा कि कुछ खाने को है ।उसे क्या पता क्या है।अंगूरों भरी परात सामने थी। फिर क्या था बच्चा परात में हाथ मारता। हाथ मारते ही कुछ अंगूर उसके हाथ आते कुछ इधर उधर गिरते।कुछ बच्चे की मुठी में कुचले जाते।नाना जी ठहाका मार के हंसते । दृश्य का आनंद लेते। फिर बच्चे के हाथ अंगूरों का रस लगता बच्चा उसे अपने मुंह को लगाता उसका  स्वाद लेता।उसे कुछ लगता कि यह तो बहुत स्वादिष्ट सुंदर चीज है खाने की चीज है। मम्मा के दूध से सुंदर और मीठा ज्यादा मीठा है। बच्चा  फिर हाथ मारता कुछ दाने हाथ में लगते मुंह में डाल लेता ।वह छोटे से खरगोश के दांतों से काट देता। उनका रस अपने मुंह में भी लेता।लार टपकती और मीठी लार से बच्चा नहाने लगता।परिवार हंसता।आनंद लेता उसे सब एक टक निगाह से निहारते।नाना नाती का आनंद लेता।बच्चा उस परात में भरे अंगूरों से खेलने लगा। कुछ भी करने लगा कुछ तोड़ने लगा कुछ कुचलने लगा कुछ भी करने लगा ।और फिर अपने नंगे बदन पर वह जो मीठा-मीठा रस बिखेर उससे नहाने लगा ।कुछ देर बाद वह बच्चा अंगूरों के रस से पूरा नहा गया। बहुत खूब मजे से परात से खेलने लगा ।बहुत देर हुई सब उसके नजारे परिवार देखने लगा ।चारों तरफ उसके खाने के अंदाज को उसकी शैतान नजरों को उसके प्यारे दांतो को सारे परिवार वाले निहारते रहे ।और वह भी मजे लेता रहा ।नाना जी ने बोला आज तो मेरी सारी थकावट दूर हो गई जो मैं 100 किलोमीटर साईकल चला कर आया ।देखो किस तरह थकावट फुर्र हो गई नाती में भी खूब रंग लगाया ।जी भर के खाया जी भर के लुटाया और अपने को खूब अंगूर के रस में नहाया। कुछ महीने का अबोध  बालक आनंद से खेलता हुआ श्री कृष्ण के मजे देता हुआ अपने परिवार के संग हंसता खेलता मुस्कुराता हुआ उस परात को कभी जोर से हाथ मारता कभी उसमें से रस को अपने शरीर पर लगाता कुछ अंगूरों को तोड़ता हुआ।बच्चा जब रस संग खूब नहा लिया खूब खा लिया खूब मजे ले लिए फिर वहां से अपने आप हट गया ।और बेटी को बोला अब उठा ले इसे और नहला दे इसे।  नाना जी ने बोला अब इतनी मेहनत वसूल हो गई ।मेरी इन्हें लाने की जो मेरे मन में इच्छा थी वह पूरी हो गई ।मेरे नाती में जी भर के खाया है देखो कितना आनंद आया है ।क्या वक्त था क्या रिश्ते थे क्या मोहब्बतें थी क्या इज़हार था। मेहनत की मगर आसान सी जिंदगी थी मधुर से रिश्ते थे।कौन सी  सफाई ?इस मिट्टी संग एक उम्र हमने अपने गांव में बिताई। पिता की  इच्छा थी बेटी के छोटे से बालक को प्यार से अंगूरों को खाते हुए देखने की। खुद भी आनंद लिया और इतना आनंद मन मे बना दिया  कि जब तक जिंदा रहे उनकी प्यारी यादें उनतक बस खींच ले जाती । एक नज़र भर देख जिंदगी सकूं पा जाती। उनकी यादें  मुझे हरदम बुलाती । रिश्तों की मिठास और महक भीतर समा जाती।
हम सब के जीवन की कुछ खास यादें है।जब भी ये दिल उदास से होता है।बस इनसे बहला लेते है।सोचा आज बचपन की झलक देख ले। कुछ खुश हो ले। रिश्तों की सचमुच समझ ले लें।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
'निर्गुणी"
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